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________________ जिन सूत्र भाग 2 मेरी बातें तुम्हें विसंगतिपूर्ण मालूम पड़ेंगी। आज कुछ कहता अंकुरित होता है। कच्चा बीज तो अंकुरित नहीं होता। चोट न हूं, कल कुछ कहता हूं। क्योंकि जब सहारा देना होता है, तब खायी, पकोगे नहीं; कच्चे रह जाओगे। जिनके जीवन में चोटें तुम्हें पुचकार लेता हूं; जब चोट करनी होती है, तब फिर नहीं पड़तीं, वे सदा कच्चे रह जाते हैं। धन्यभागी हैं वे जिन्हें निर्ममता से चोट भी करता हूं। तुम तय नहीं कर पाते कि जिसके | जीवन बहुत चोट देता है। अभागे हैं वे जिन्हें जीवन सिर्फ सहारा पास आये हो वह मित्र है, या शत्रु है ? जिसके साथ चल पड़े देता है, चोट नहीं देता। वे नपुंसक रह जाते हैं। इसीलिए तो हो, वह पहुंचायेगा या भटकायेगा? तुम साफ नहीं कर पाते। बहुत सुविधा में, संपन्नता में पले हुए लोगों में प्रतिभा नहीं होती। तुम्हारी दुविधा साफ है। मुझे कोई दुविधा नहीं है। मैं जो कर रहा प्रतिभा के लिए थोड़ी चोट चाहिए। जीवन का तप, जीवन का हूं बिलकुल स्पष्ट है, संगतिपूर्ण है। | ताप चाहिए। तूफान और आग चाहिए। और अगर तुम्हें मेरी बात समझ में आ जाए, तो तुम्हारे लिए भी | मैंने सुना है, एक किसान ने बड़े दिन तक परमात्मा से पूजा संगति का दर्शन हो जाएगा। उस दर्शन से बड़ा लाभ होगा। की, प्रार्थना की। परमात्मा ने दर्शन दिये, तो उसके सामने कहा फिर तुम चोट में भी छिपे सहारे को देखोगे। सहारे में भी छिपी कि बस, मुझे एक ही बात तुमसे कहनी है। तुम्हें किसानी नहीं चोट को देखोगे। अकेली करुणा से न होगा। करुणा को कठोर आती। बेवक्त बादल भेज देते हो। जब बादल की जरूरत होती होना होगा, तो ही काम हो सकेगा। तुम्हें बनाना भी है, बहुत है, हम तड़फते हैं, चीखते-चिल्लाते हैं, तब बादलों का कोई कुछ तुम में मिटाना भी है। तुम एक जीर्ण-जर्जर भवन की तरह पता नहीं! कभी ऐसी वर्षा कर देते हो कि बाढ़ आ जाती है, कभी हो। एक खंडहर! पहले तुम्हें मिटाना भी है, फिर नये भवन की ऐसा खाली छोड़ देते हो कि पानी को तरस जाते हैं। फसल खड़ी नींव भी रखनी है। तुम जैसे हो ऐसे ही परमात्मा के योग्य नहीं होती है-तूफान, आंधी, ओले! तुम्हें कुछ पता है? खेती हो। तुम परमात्मा के योग्य हो सकते हो। लेकिन उसके पहले तुमने कभी की नहीं। तो कम से कम खेती के संबंध में तुम मेरी बड़ी अग्नियों से गुजरना होगा। संभावना है तुम्हारी परमात्मा, | सलाह मानो। परमात्मा हंसा उस भोले किसान पर। उसने कहा, सत्य नहीं। तुम बीज हो अभी। टूटोगे, तोड़े जाओगे, मिट्टी में ठीक! तो तू क्या चाहता है ? एक साल तेरी मर्जी से होगा। गिरोगे, बिखरोगे, तो ही किसी दिन फूल खिल पायेगा। किसान ने कहा, तब ठीक है। पुष्ट बीज, एक साल किसान ने मर्जी से जो चाहा, जिस दिन चाहा, वैसा सुष्ट खेत, हुआ। जब उसने पानी मांगा, पानी गिरा। जब उसने धूप मांगी, साथी संगी समेत, तब धूप आयी। गेहूं की बालें इतनी बड़ी कभी भी न हुई थीं। सुसमय बोइये, आदमी ढंक जाए, खो जाए, इतनी बड़ी गेहूं की बालें हुईं। उसने सींचिए सुसाध से, कहा, अब देख! सोचा मन में, अब दिखाऊंगा परमात्मा को। रात दिन बालें तो बहुत बड़ी हुई, लेकिन जब फसल काटी, तो बालों के बात बिन भीतर गेहूं बिलकुल न थे, पोच थे। बहुत परेशान हुआ। खेत को रखाइये। परमात्मा से कहा, यह क्या हुआ? क्योंकि मैंने इतनी सुविधा काल थक जाए जब, दी। जब पानी की जरूरत थी, तब पानी; जब धूप की जरूरत धान पक जाए जब, थी, तब धूप। आंधी, तूफान, ओले इत्यादि तो मैंने काट ही होकर इकडे फिर, दिये। कोई तकलीफ तो दी ही नहीं। लेकिन बीज आये ही नहीं! काटिये कटाइये। हुआ क्या है? पुष्ट बीज-पहले तो बीज को पुष्ट होना पड़ता, पकना | परमात्मा ने कहा, पागल! सिर्फ सुविधा से कहीं कोई चीज पड़ता। कच्चे बीज को बोने से कुछ सार न होगा। धूप में, | बनी है, निर्मित हुई है? सुविधा के साथ साधना भी चाहिए। तूने सूर्य-आतप में, तप में बीज को पकना होता है। पका बीज ही सुविधा तो दे दी, लेकिन साधना का कोई अवसर न दिया। तूने 184 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340141
Book TitleJinsutra Lecture 41 Dukh ki Swikruti Mahasukh ki Nimv
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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