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________________ M ग हला प्रश्न : प्रवचन में आप एक हाथ से हम पर सम्हालो ही, ताकि तुम्हारे सामने मेरी स्थिति साफ-साफ हो न करारी चोट करते हैं और दूसरे हाथ से फूल और जाए। मैं दोनों करता हूं तो तुम्हारे सामने मेरी स्थिति साफ नहीं सुगंध बांटते हैं। बांटते क्या हैं, लुटाते हैं! क्या होती। तुम मुझे छोड़कर भी नहीं भाग सकते, क्योंकि सहारा भी आपको इन दोनों से एक-साथ गुजरने में कठिनाई नहीं होती? | देता हूं। तुम मेरे साथ पूरे खड़े भी नहीं हो पाते, क्योंकि चोट भी करता हूं। तुम्हारे मन में मेरे प्रति स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाती, दोनों में विरोध नहीं है, दोनों में सहयोग है। दोनों एक-दूसरे के रहस्य बना रहता है। विपरीत नहीं हैं, एक-दूसरे के परिपूरक हैं। कुम्हार को देखा | अगर मैं सहारा ही दूं तो तुम मेरे साथ हो जाओ। लेकिन वह है? एक हाथ से सम्हालता है और दूसरे हाथ से थपकी देता है। साथ होना किस काम का! तुम मुर्दे की तरह साथ हो जाओगे। एक हाथ से मिट्टी को सम्हालता है, गिर न जाए, भीतर से तुम्हें मैंने चुनौती न दी। तुम अनगढ़ पत्थर रह जाओगे, मूर्ति न सम्हालता है, बाहर से चोट देता है। भीतर से न सम्हाले तो बनोगे। क्योंकि मूर्ति बनाने के लिए तो छेनी उठानी ही पड़ेगी। मिट्टी की देह निर्मित न हो पायेगी, गिर जाएगी। बाहर से चोट न तुम्हें काटना ही होगा। और अगर मैं सिर्फ चोट ही करूं, तो तुम्हें दे, तो भी न सम्हल पायेगी, तो भी घड़ा बन न पायेगा। भागने में सुविधा हो जाए। चोट खाने को कौन बैठा रहता है? | - जो कुम्हार कर रहा है, वही मैं भी कर रहा हूं। वह मिट्टी के तुम या तो भाग जाओ या तुम सुनो ही न, या सुनते हुए भी तुम साथ कर रहा है, मैं आत्मा के साथ कर रहा हूं। सहारे की भी बहरे बने रहो। लेकिन संबंध टूट जाए। जरूरत है, चोट अकेली काफी नहीं। अकेला सहारा भी काफी मैने तुम्हें दुविधा में डाला। न तुम छोड़कर भाग सकते हो, नहीं, चोट की भी जरूरत है। सहारे देनेवाले तुम्हें बहुत मिल क्योंकि एक हाथ से मैं तुम्हें बुला भी रहा हूं; और तुम मेरे पास जाएंगे, लेकिन वे चोट नहीं करते। कुछ चोट करनेवाले भी हैं, आने में भी डरते हो, क्योंकि मैं चोट भी कर रहा हूं। लेकिन यही लेकिन वे सहारा नहीं देते। दोनों ही हालत में तुम्हारी आत्मा का एकमात्र उपाय है तुम्हें निर्मित करने का। बस, तुम कुम्हार को पात्र निर्मित न हो पायेगा। | जाकर देख आना-घड़ा बनाते कुम्हार को-तुम्हें मेरी बात मेहर बाबा सहारा देते हैं, चोट नहीं करते। कृष्णमूर्ति चोट समझ में आ जाएगी। कुम्हार के लिए विरोध नहीं है। शायद करते हैं, सहारा नहीं देते। ये अधूरे उपाय हैं। घड़े को अड़चन भी होती हो कि क्या कर रहे हो, उल्टी बातें मैं दोनों को एक-साथ सम्हाल रहा हूं। मुझे अड़चन नहीं है एक-साथ कर रहे हो? सहारा देते हो तो सहारा दो, चोट करते सम्हालने में, क्योंकि मेरे लिए दोनों परिपूरक हैं। अड़चन तुम्हें | हो तो चोट करो, यह तुम क्या कर रहे हो? बड़ी विसंगति है, | होगी। वह मैं जानता हूँ। तुम चाहते हो या तो चोट ही करो, या बड़ा विरोध है। 183 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340141
Book TitleJinsutra Lecture 41 Dukh ki Swikruti Mahasukh ki Nimv
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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