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________________ जिन सूत्र भाग : 2 लो। कान हों तो सुन लो। फिर पीछे मुझसे मत कहना। उनके यह ऐसा ही है, कभी तुमने अगर साइकिल चलानी सीखी हो, सभी की आंखें थीं, सभी के कान थे, यह बात क्या? बार-बार या मोटर कार चलानी सीखी हो-साइकिल चलानेवाले जीसस कहते हैं, कान हो तो सुन लो, आंख हो तो देख लो। वे सीखनेवाले को जो अड़चन आती है, वह यही। पैर पर ध्यान ही कान, वे ही आंख तुम्हारे भीतर जन्म ले रहे हैं। जन्म की इस रखे, तो हैंडिल भूल जाता। सड़क पर देखे, तो पैडिल भूल | घड़ी को लोभ की घड़ी मत बनाओ। कभी आंख बंद कर ली जाता। बड़ी दुविधा खड़ी होती है। कार चलानेवाले को भी वही और सुनने का रस ले लिया। क्योंकि सुन भी तुम मुझ ही को रहे | अड़चन होती है। एक्सीलेटर को सम्हाले, सड़क को देखे, ब्रेक हो। उससे भी तुम मुझसे ही जुड़ रहे हो। वह भी एक द्वार से मेरे को देखे, गियर को बदले, तो एक चीज की तरफ तो लग जाता पास आना है। फिर कभी आंख खोल ली, देखने का रस ले है; लेकिन जैसे ही दूसरे की तरफ जाता है, पहली चीज चूक लिया। छोड़ दिया सुनने को। तब भी तुम मुझसे ही जुड़े हो। जाती है। लेकिन धीरे-धीरे, जैसे-जैसे कशलता आने लगती है. और शुरू-शुरू में अलग-अलग ही करना होगा। क्योंकि आत्मविश्वास बढ़ता है, अपने पर श्रद्धा बढ़ती है कि ठीक है, मैं एक-एक इंद्रिय जब पहली दफा पूरी तरह से आंदोलित होती है, चला लेता हूं, फिर कोई याद रखने की जरूरत नहीं रह जाती। तो सारी ऊर्जा वहीं चली जाती है। फिर वह रेडियो भी सुनता रहता है, गीत भी गुनगुनाता रहता है, तुमने देखा? अंधे आदमियों के कान बड़े प्रबल हो जाते हैं, | कार भी चलाता रहता है; बात भी करता रहता है। एक दफा बड़े कुशल हो जाते हैं। अंधा आदमी जिस कुशलता से सुनता | तुम्हारी कुशलता के बढ़ जाने की बात है। है, आंखवाले कभी सुनते ही नहीं। __ तो शुरू में तो तुम ऐसा ही करो। जब सुनने का मन हो, सुन इसलिए गैर-आंखवालों का सुर-बोध गहन हो जाता है। अंधे लिये। जब देखने का मन हो, देख लिये। अभी दोनों को साथ संगीतज्ञ हो जाते हैं। अंधे की वाणी मधुर हो जाती है। क्योंकि साधने की कोशिश मत करना। धीरे-धीरे अपने आप सध अंधे की सारी ऊर्जा आंख से हटकर कान पर बहने लगती है। जाएगा। धीरे-धीरे तुम पाओगे कि सुनते-सुनते आंख बंद है, जैसे-जैसे उसका स्वर-बोध गहरा होता है, वह छोटी-छोटी लेकिन मैं दिखायी भी पड़ने लगा। मुझे देखने के लिए आंख का चीजों को भी स्वर से पहचानता है। वह लोगों के पैरों की खुला होना जरूरी नहीं है। फिर तुम पाओगे कि आंख खुली है, आवाज से भी लोगों को पहचानने लगता है-कौन आ रहा है। तुम मुझे देख भी रहे हो, और सुनायी पड़ने लगा। और यहां ही आंखवाले नहीं पहचान सकते। आंखवालों ने कभी इतने गौर से नहीं, तुम अपने घर लौट जाओगे, अगर मेरे चित्र पर भी तुम सुना ही नहीं। आंखवालों को पता ही नहीं कि पैर भी लोग आंख खोलकर बैठ गये, तो तुम्हें मेरी आवाज सुनायी पड़ने अलग-अलग ढंग से रखते हैं। चलते भी लोग अलग-अलग लगेगी। लेकिन यह घटित होगा। थोड़ी प्रतीक्षा करो, और / जैसे अंगूठों के निशान अलग-अलग हैं, ऐसे ही हर जल्दी मत करो। अभी तो जिस तरह डूबना हो जाए, डूबो! चीज अलग-अलग है। अंधा तुम्हारी आवाज सुनकर ही अभी तो डूबना सीख लो। पहचान लेता है कौन हो। वर्षों बाद भी मिलने जाओ उससे, फिर मेरे लब पे कसीदे हैं लबो-रुखसार के आवाज पहचानते ही पहचान लेता है। क्योंकि उसकी पहचान फिर किसी चेहरे पे ताबानी सी ताबानी है आज ही आवाज से है। चेहरे का उसे कुछ पता नहीं। अर्जिशे-लब में शराबो-शेर का तूफान है। तो जब तुम सुनते हो पूरी तरह से, तो स्वभावतः आंख बंद हो जुबिशे-मिजगां में अफसूने-गजलख्वानी है आज जाएगी। क्योंकि सारी ऊर्जा कान ले रहा है। आंख को देने को है | वो नफस की जमजमा-संजी नजर की गुफ्तगू नहीं। अगर तुमने सुनने और देखने की एक-साथ कोशिश की, सीना-ए-मासूम में इकतर्फा तुगयानी है आज तो आधी-आधी बंट जाएगी। तो न तो तम ठीक सेसन पाओगे, वो इशारे हैं बहक जाना ही ऐने-होश है न ठीक से देख पाओगे। जब तुम देखोगे, सारी ऊर्जा आंख पर | होश में रहना यकीनन सख्त नादानी है आज आ जाएगी। शुरू में ऐसा होगा। अभी होश की बात ही मत करो। अभी तो बेहोश हो लो। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340141
Book TitleJinsutra Lecture 41 Dukh ki Swikruti Mahasukh ki Nimv
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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