SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र भाग: 2 क्या रखा है इस संसार को जीत लेने में। सिकंदर, नेपोलियन स्वास्थ्य नहीं है, कोई संगी-साथी नहीं है! अगर इससे संतोष हो कहें; ठीक। अभी संसार को जीता नहीं, | रहा है, तो यह संतोष तो बीमारी है। इसे तोड़ो। असंतुष्ट बनो, किससे कह रहे हो, क्या रखा है संसार को जीत लेने में? कहीं | अगर यह संतोष है तो। खोजो।। मन को समझा तो नहीं रहे। कहीं मन चाहता तो नहीं है कि जीत हां, मैं भी कहता हूं एक दिन प्रेमी के भी पार जाता है प्रेम, लें संसार को, लेकिन देखते हैं अपनी असामर्थ्य, जीतना तो लेकिन पहले प्रेमी तो हो। प्रेमी से कुछ भी न मिलेगा। प्रेम की कठिन है, तो अहंकार अपने को बचा लेता है। अहंकार कहता और बड़ी प्यास मिलेगी, और बड़ा असंतोष मिलेगा, परमात्मा है, जीतना ही कौन चाहता है! को पाने की जलती हुई प्यास मिलेगी। प्रेमी की मौजूदगी से तुम्हें तुमने कभी खयाल किया, तुमने अपने जीवन में कितनी पर्ते पता चलेगा कि नहीं, इस दिशा से कुछ मिलनेवाला नहीं। मगर सांत्वना की बना ली हैं। उन सांत्वनाओं के कारण ही तो तम | प्रेमी की मौजदगी के बिना यह पता नहीं चल सकता है। आबद्ध हो गये हो, बंध गये हो, जकड़ गये हो। तोड़ो | एक आदमी रास्ते पर खड़ा है भिखारी की तरह। और फिर सांत्वनाएं! यह संतोष नहीं है। | महावीर भी रास्ते पर आकर खड़े हो गये भिखारी की तरह। तुमने कहावत सुनी है—'संतोषी सदा सुखी।' गलत है। समझ लो कि दोनों भिखारी साथ-साथ चल रहे हैं। क्या ये दोनों, 'सुखी सदा संतोषी।' संतोष से कभी सुख नहीं आता, सुख से एक ही जैसे हैं? एक महावीर हैं जिन्होंने महल देखे, महलों का जरूर संतोष आता है। संतोष तो सिर्फ अपने को समझा लेने सुख देखा, सुख की व्यर्थता देखी, महलों की असारता देखी। जैसा है। नहीं है हालत आगे बढ़ने की, क्या करें, तो तुम समझा राज्य देखा, साम्राज्य देखा, राख देखी सब। और एक दूसरा. लेते हो। तुम कहते हो, हम जाना नहीं चाहते, पाने योग्य कुछ है भिखारी चल रहा है। उसने कुछ भी नहीं देखा। उसके मन में ही नहीं, हमें तो पहले से पता है वहां कुछ भी नहीं रखा है। | अभी भी सपने हैं। अभी भी कोई उसे राजा बना दे तो वह तत्क्षण लेकिन जरा गौर से अपने मन का निरीक्षण करना। और अगर | तैयार हो जाएगा। हालांकि वह भी कहता है, कुछ सार नहीं। यह संतोष हो, तब तो ठीक है। फिर तो प्रश्न पूछने की जरूरत महावीर भी कहते हैं, कुछ सार नहीं। दोनों एक ही तरह के शब्दों ही नहीं। अगर यह संतोष होता तो प्रश्न उठता ही नहीं। संतोष का उपयोग करते हैं। लेकिन क्या दोनों के अर्थ एक ही हो सकते से कभी प्रश्न उठा है? संतोष तो ऐसा परितृप्त है, ऐसा परितृप्त हैं? दोनों के अर्थों में जमीन-आसमान का फर्क है। है, कि कहां प्रश्न की गुंजाइश! यह सांत्वना है। और स्त्रियां | महावीर कहते हैं जानकर। वह दूसरा आदमी कह रहा है सांत्वना में बड़ी कुशल हैं। क्योंकि संघर्ष में बड़ी कमजोर हैं। मानकर। अगर धन पड़ा मिल जाए तो महावीर उसके पास से 'लेकिन उसके न मिलने पर भी संतोष ही होता है।' यह | ऐसे ही गुजर जाएंगे जैसे मिट्टी पड़ी है। वह दूसरा आदमी न संतोष मुर्दा है। इस लाश को हटाओ! अन्यथा तुम भी इस लाश | गुजर सकेगा। वह कहेगा छोड़ो बकवास, हो गयी ज्ञान की बहुत के साथ मर जाओगे। मुर्दो की दोस्ती ठीक नहीं। मुर्दो के साथ बातचीत! अब मिल ही गया, तो अब इसका उपभोग कर लें। ज्यादा देर रहना भी ठीक नहीं। क्योंकि जिनके साथ हम रहते हैं, | ‘कम से कम अपना दुख और किसी की उपेक्षा तो साथ में वैसे ही हो जाते हैं। है। यह भी खूब धन! इसको धन कहते हो? इस धन को, इस 'संतोष होता है कि कम से कम अपना दुख और किसी की | धन के भ्रम को तोड़ो। उपेक्षा तो साथ में है।' यह भी कोई बात हुई! यह तो ऐसा हुआ बिना प्यार के चले न कोई आंधी हो या पानी हो कि सोये हैं जमीन पर और सोच रहे हैं कि कम से कम बिस्तर नयी उमर की चुनरी हो या कमरी फटी-पुरानी हो नहीं है यह भी तो संतोष है। बैठे हैं जमीन पर और सोच रहे हैं तपे प्रेम के लिए धरित्री जले प्रेम के लिए दीया उस कुर्सी की बात, जो नहीं है कमरे में। इससे संतोष होता है कि कौन हृदय है नहीं प्रेम की जिसने की दरबानी हो कुर्सी नहीं है! इससे संतोष होता है, कि बिस्तर नहीं है! इससे तट-तट रास रचाता चल संतोष होता है कि भोजन नहीं है। इससे संतोष होता है कि पनघट-पनघट गाता चल Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340139
Book TitleJinsutra Lecture 39 Prem hai Dwar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy