________________ / प्रेम है द्वारा Marwanama प्यासी है हर गागर दृग की हो। यही संघर्ष है। जहां भी दूसरा परमात्मा से थोड़ा नीचे पड़ता गंगाजल ढलकाता चल है, कलह शुरू हो जाती है। पति भी यही चेष्टा कर रहा है कि कोई नहीं पराया, सारी धरती एक बसेरा है पत्नी परमात्मरूप हो, दिव्य हो। जैसे ही उससे नीचे पड़ती है, इसकी सीमा पश्चिम में तो मन का परब डेरा है अड़चन होती है। पत्नी भी यही सोच रही है कि पति परमात्मा श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुंदर या कि असुंदर हो जैसा हो। दोनों की खोज सही है। और इसीलिए संघर्ष है। सभी मछलियां एक ताल की क्या मेरा क्या तेरा है धीरे-धीरे यह अनुभव में आता है कि आदमी की सीमा है। तब गलियां-गांव गुंजाता चल नाराजगी चली जाती है। तब यह खयाल उठता है कि हम खोज पथ-पथ फूल बिछाता चल ही गलत जगह रहे हैं। हमें थोड़े और ऊंचाई पर आंख उठानी हर दरवाजा राम-दुवारा सबको शीश झुकाता चल होगी। आदमी के पार देखना होगा। या आदमी के गहरे में हर दरवाजा राम-दुवारा सबको शीश झुकाता चल–अगर | देखना होगा। | प्रेम किसी से किया तो राम-दुवारा खुला। जहां प्रेम ने दस्तक तुमने यह भी कभी खयाल किया कि जैसे ही तुम किसी के प्रेम दी, वहीं राम-दुवारा खुला। | में पड़ते हो, तुम वही नहीं रह जाते जो तुम अब तक थे। तुम्हारे | प्रेम से कभी बचना मत। प्रेम में उतरना। प्रेम से डरना मत। भीतर कुछ नया उठने लगता है, कोई पंख खोलने लगता है। प्रेम बड़ी पीड़ा देगा, प्रेम जलायेगा, प्रेम अग्नि बन जाएगा, कोई आकाश की तरफ उड़ने के लिए तत्पर हो जाता है। तुमने लेकिन अग्नि से ही गुजरकर कोई कुंदन बनता है, कोई शुद्ध कभी खयाल किया कि प्रेम के साथ, जो भी श्रेष्ठ भावनाएं हैं स्वर्ण बनता है। प्रेम की अग्नि से घबड़ाना मत, भागना मत, | अचानक तुममें जगने लगती हैं। घृणा के साथ जो-जो अशुभ है, अन्यथा अधकचरे, अधूरे, मिट्टी से भरे रह जाओगे। | तुम्हारे भीतर घना होने लगता है। घणा उठी कि हिंसा उठी। तो मैं यह नहीं कहता कि प्रेम तुम्हें सुख ही सुख देगा। प्रेम घृणा उठी कि क्रोध उठा। घृणा उठी कि तुम मरने-मारने को, कोई फूलों-बिछी सेज है, ऐसा मैं नहीं कहता। प्रेम बड़ी पीड़ा मिटाने को तत्पर हुए। प्रेम उठा कि सृजन उठा। प्रेम उठा कि तुम की डगर है। लेकिन उससे गुजरना जरूरी है। और उससे बनाने को, संवारने को, शृंगार करने को राजी हुए। इधर प्रेम उठा गुजरकर ही तुम प्रार्थना के योग्य बनोगे, प्रार्थना के लिए परिपक्व कि शुभ भावनाओं का जन्म उसके साथ-साथ होने लगता है। बनोगे। जैसे ही कोई व्यक्ति किसी के प्रेम में डूबा, स्वाद मिलना प्रेम जितना ऊंचा उड़ता है, उतनी ही शुभता भी तुम्हारे भीतर शुरू होता है। बहुत पर्दो के पार से परमात्मा की पहली झलक ऊंची उठती है। जितने तुम प्रेम में जाते हो, उतने ही तुम दिव्य मिलनी शरू होती है। इस पृथ्वी पर प्रेम से ज्यादा परमात्मा की होने लगते हो। झलक देनेवाली कोई अनुभूति नहीं है। नया-नया प्रेम तुम्हारे चेहरे पर एक ऐसी गरिमा दे जाता है, जो प्रेम इस जगत में उस जगत की किरण है। प्रेम इस अंधेरी रात | तुमने पहले कभी न जानी थी। एक आभामंडल, एक ऊर्जा, एक में दूर परमात्मा का चमकता हुआ सितारा है। बहुत दूर है, | नया प्रकाश तुम्हारे चेहरे को घेर लेता है। तुम्हारी चाल बदल लेकिन इस अंधेरे को पार करके एक किरण आ रही है। तुम उस जाती है। तुम्हारी चाल में मीरा का थोड़ा नाच आ जाता है। माना किरण का सहारा पकड़ लो। ऐसा तो मैंने कभी नहीं देखा कि कि वह परम प्रेमी की खोज पर थी, इसलिए पूरा नाच तो नहीं हो प्रेम से कोई तृप्त हुआ हो। इसलिए डर कुछ भी नहीं है। प्रेम सकता, लेकिन थोड़ी घुघर तो बजती है। रुक-रुककर बजती तुम्हें और अतृप्त करेगा। नये शिखरों की चुनौती मिलेगी। नयी है। थोड़ी बूंघर तो बजती है। पायल की वैसी धुन नहीं होती कि ऊंचाइयां खोजने के भाव मिलेंगे। आकाश को गुंजा दे, लेकिन आंगन को तो गुंजाती है। छोटा-सा प्रेमियों में जो संघर्ष है, उसका कारण तुमने कभी सोचा? कोने में दीया तो जलता है। महासूरज नहीं निकलता, जैसा प्रेमियों में सदा संघर्ष बना रहता है, उसका कुल कारण इतना है कबीर कहते हैं कि हजार-हजार सूरज पैदा हो रहे हैं, लेकिन एक कि हर प्रेमी यह कोशिश कर रहा है कि दूसरा परमात्मा की तरह छोटा-सा दीया तो जलता है। दीया भी तो सूरज का ही प्रतिनिधि 155 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrar.org