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________________ जिन सूत्र भाग: 2 होता। वह जानता है, कुत्ते हैं, भौंकेंगे। चुपचाप अपनी मंथरगति | जिसका अभ्यास नहीं किया गया। स्वाभाविक। तुम अभ्यास से चलता है। महावीर कहते हैं, हाथी-सा स्वाभिमान। / कर सकते हो। __ 'वृषभ-सा भद्र....।' बैल से ज्यादा भद्र कोई प्राणी नहीं। हम सबने बहत-सी बातों के अभ्यास किये हैं। आस्कर वाइल्ड ने कहीं लिखा है कि अगर बैलों को पता चल | राह पर कोई मिल जाता है तो मुस्कुराते हो, चाहे भीतर आंसू जाए कि उनकी शक्ति कितनी है, तो वे मनुष्य-जाति को घुमड़ रहे हों, चाहे भीतर दुख के बादल घिरे हों। चाहे भीतर उखाड़कर फेंक दें। लेकिन बैलों के बल पर ही मनुष्य-जाति | प्राणों को कौंधनेवाली पीड़ा चौंक रही हो। चाहे रो-रोआं रोना फलती-फूलती रही है। इसीलिए तो हिंदू गाय की पूजा करते हैं। चाहता हो, लेकिन राह पर कोई मिल गया है, तो तुम मुस्कुराते उसी से खेती है, उसी से दूध है, उसी से ईंधन है, उसी से खाद | हो। अभ्यास कर लिया। ओंठों का अभ्यास। मुस्कुराहट आती है। और वृषभ गाड़ियां खींचता, बोझ ढोता, कोल्हू चलाता। नहीं हृदय से। आयेगी कैसे? लेकिन ओंठों को फैला लेने का | मनुष्य-जाति का पूरा का पूरा अब तक का इतिहास, सौ वर्ष अभ्यास तुमने कर लिया है-वह कोई कठिन नहीं है। ओंठों पहले तक जब तक कि मशीनों का ईजाद न हुआ था और बैल | को फैला लेने से भ्रांति पैदा होती है कि मुस्कुराये। यह कैसी की जगह यंत्रों ने न ली थी, मनुष्य ने जो भी सभ्यता खड़ी की थी, मुस्कुराहट! जिसकी जड़ें हृदय तक न गयी हों, वह मुस्कुराहट वह बैलों के कंधों पर है। अगर बैल को हटा लो, आदमी की | झूठी है। आरोपित है। सरल मुस्कुराहट तो छोटे बच्चे में सारी सभ्यता गिर जाती है। आज भी मनुष्य-जाति का बड़ा मिलेगी। जिसने अभी दांव-पेंच नहीं सीखे। हिस्सा बैलों के सहारे ही जी रहा है। इसलिए महावीर कह रहे हैं कि दांव-पेंच भूलो तो सरल 'वृषभ-सा भद्र...।' बैल की भद्रता बड़ी अदभुत है। उसने | होओगे। और तुम्हारा जो साधु है, वह तुमसे भी ज्यादा दांव-पेंच कोई बगावत नहीं की कभी। उसने कोई क्रांति नहीं की। वह में है। उसको सरल कहना असंभव है। और सरल ही साधु है। चुपचाप सेवा करता रहा है। उसका व्यवहार बड़ा सज्जनोचित | सीधा, छोटे बच्चे-जैसा। स्वभाव से जो जी रहा है, वही साधु है। महावीर कहते हैं, वृषभ-सा भद्र। है। अगर तुम अभ्यास करो, तो उपवास का अभ्यास हो सकता 'मृग-सा सरल...।' मृग की आंखों में कभी झांकना। वैसी | है। तुम अभ्यास करो, तो रात जागते रह सकते हो। तुम सरल आंखें फिर और कहीं नहीं हैं। ऐसा भरोसा, ऐसी श्रद्धा | अभ्यास करो, तो धूप में खड़े रह सकते हो, कांटों पर सो सकते जैसी मृग की आंखों में है, फिर और कहीं नहीं है। इसीलिए तो | हो। लेकिन इसमें सरलता नहीं होगी। इस सब के पीछे अभ्यास किसी अति सरल क्वांरी स्त्री की आंखों को हम मृगनयनी, | होगा। तुम साधु नहीं बन रहे, तुम किसी सर्कस के योग्य बन रहे मृगनयन, कहते हैं। जिसने कभी कुछ पाप नहीं जाना है। पाप हो। साधु का लक्षण महावीर कहते हैं, मृग-सा सरल, सहज। की रेखा जिसकी आंख पर नहीं है। मृग जैसी कोरी, क्वांरी | इसी को कबीर ने कहा है-'साधो, सहज समाधि भली।' आंखें। भरोसा ही भरोसा। एक तो समाधि है, जो चेष्टा कर-कर के लायी जाती है। और महावीर कहते हैं, मृग-सा सरल। खयाल रखना, महावीर के एक समाधि है जो सब चेष्टा छोड़ देने से आती है। हो रहो छोटे प्रतीक सोचने जैसे हैं। पशुओं से प्रतीक ले रहे हैं महावीर। | बच्चे की भांति। जो भीतर हो, वही बाहर हो। चाहे कुछ भी आदमी सरल भी होता है तो उसकी सरलता में जटिलता होती | कीमत चुकानी पड़े। चाहे कोई भी मूल्य मांगा जाए, लेकिन जो है। सरलता में भी पाखंड होता है। सरलता में भी दिखावा होता| भीतर हो, वही बाहर हो। भीतर और बाहर में भेद न हो. द्वंद्व न है, प्रदर्शन होता है। सरलता में भी दांव-पेंच होते हैं। तुम | हो। बाहर भीतर की छाती पर न चढ़े। बाहर भीतर की ही खबर जिसको साधु कहते हो, उसको महावीर साध नहीं कहेंगे।। हो। बाहर भीतर का ही स्वर गूंजे। बाहर भीतर की ही तरंगें क्योंकि वह मृग-सा सरल नहीं है। उसकी सरलता बड़ी चेष्टित | आयें। जो भीतर है, वही बाहर हो। तब तो कोई सरल होता है। है, बड़ी अभ्यासजन्य है। साधी गयी है। महावीर कहते हैं, लेकिन वैसी सरलता तथाकथित साधुओं में नहीं पायी जाती। अनसाधी सरलता। मृग-सी सरलता का अर्थ है-अनसाधी। इधर मेरे अनुभव ये हैं—पश्चिम से लोग आते हैं, वे पूरब के 128 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340138
Book TitleJinsutra Lecture 38 Dhyan ka Dip Jalalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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