________________ सा प्रश्न : यहां आते ही बद्धि हृदय में और शब्द बहत उपाय करते हैं। इस उपाय को छोड़ो। यही उपाय घर मौन में रूपांतरित हो गये। आपको सुनते समय जाकर रोकने का कारण बन जाएगा। मेरा हृदय कभी-कभी आंसू बनकर बहने लगता। यहां मेरे पास हो, यहां एक और तरह की हवा है। यहां सब है। संदेह है कि यहां से घर लौटने पर भी यह अवस्था बनी स्वीकार है। यहां तम रोओगे, तो कोई तम् रहेगी अथवा नहीं। कृपापूर्वक समझाएं कि किस तरह यह रोओगे, तो शायद दूसरे तुम से ईर्ष्या करें। सोचें कि तुम अवस्था स्थिर हो? धन्यभागी हो कि रो पाते हो, पीड़ित हों अपने मन में कि हम नहीं रो पाते। तुम्हारे आंसू यहां संपदा की तरह स्वीकार किये जाएंगे। पहली बात, आंसुओं से ज्यादा पवित्र मनुष्य के पास और कुछ घर लौटकर नहीं। दूसरी ही हवा होगी। दूसरा संयोग होगा भी नहीं है। आंसुओं से बड़ी कोई प्रार्थना नहीं है। आंसुओं का | आंसुओं के साथ। केवल एक रूप ही लोगों ने जाना है। वह रूप है-दुख-रूप। तो अगर चाहते हो कि यह परम आंसू सदा बहते रहें, तो भीतर आंसुओं का एक और रूप है-आंनद-रूप। उसे बहुत कम कुछ स्मरण करने का है। और वह स्मरण यह है कि आंसुओं का लोग जान पाये। बहुत कम लोग जान पाते हैं। दुख से कुछ लेना-देना नहीं है। अन्यथा तुम खुद ही रोक लोगे, * किसी को तुम रोते देखते हो, तो सोचते हो दुखी होगा। किसी कोई और नहीं रोकेगा। कौन रोकता है! कोई किसी को रोक नहीं को तुम रोते देखते हो, तो सोचते हो कुछ पीड़ा होगी। कुछ चुभन | सकता! लेकिन तुम्ही रोक लोगे। तुम्हीं सकुचा जाओगे। तुम्हीं होगी, जलन होगी। जरूरी नहीं। आंसू तो तभी बहते हैं जब सोचोगे, कोई क्या कहेगा! घर में बच्चे होंगे तुम्हारे, पत्नी होगी, कोई भी भावदशा इतनी ज्यादा हो जाती है कि तुम संभाल नहीं पिता-मां होंगे, क्या कहेंगे! दुकान पर बैठे रोने लगोगे, ग्राहक पाते। कोई भी भावदशा। दुख बहुत हो जाए तो आंसुओं से क्या कहेंगे! दफ्तर में बैठे रोने लगोगे, दफ्तर के लोग क्या बहता है। सुख बहुत हो जाए तो भी आंसुओं से बहता है। पीड़ा कहेंगे! रास्ते पर रोने लगोगे, राह चलते लोग क्या कहेंगे! बहुत हो, तो आंसुओं से बहकर हल्का हो जाता है मन। आनंद आंसुओं के साथ दुख जुड़ा है। क्योंकि हमने एक ही तरह के बहुत हो, तो आंसुओं से बह जाता है। आंसू अब तक जाने हैं, वे दुख के आंसू हैं। कोई मरा, तो हम तो पहली तो बात, आंसुओं के साथ दुख का अनिवार्य संबंध रोये। कोई जीवन में विषाद आया, तो हम रोये। हम कभी मत जोड़ना। गहरे में हमारे मन में यह बात बनी ही हुई है कि आनंद से रोये नहीं। हम कभी उत्फुल्लता से रोये नहीं। हमारे आंसू दुख के कारण आते हैं। तो हम आंसुओं को छिपाते भी हैं। आंसू कभी नृत्य नहीं बने। इसलिए एक गलत संयोग आंसुओं आंसू आते हों तो रोकते भी हैं। आंसू आ न जाएं, इसका हम से जुड़ गया है। अब तो ऐसे भी लोग हैं पृथ्वी पर, जो दुख में भी |105 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org