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________________ जिन सत्र भाग: 2 SECRE SUNAMIRIKARAN पूछेगा, इसका मतलब क्या है? गड्डा किसलिए खुदवाया? | मत पूछो आगे क्या होता है! आगे की चिंता भी क्या! जो इस गुरजिएफ ने कहा इतना अगर तू पूछ लेता, तो यह घड़ी न | घड़ी हो रहा है, उसे भोगो। जो इस घड़ी मिल रहा है, उसे आती। फिर तूने गड्डा भी भर दिया। फिर तू बिलकुल पीओ। जो इस घड़ी तुम्हारे पास खड़ा है, उसे मत चूको। जो थका-मांदा था, फिर भी तूने इनकार न किया, मैंने कहा लकड़ी | नदी सामने बह रही है, झुको, डूबो, आगे क्या होता है। आगे काट, तो तूने यह न कहा, यह अब न हो सकेगा, कल सुबह | का खयाल आते ही, जो मौजूद है, उससे आंख बंद हो जाती है। करूंगा। यह तेरा जो सहज समर्पण था, यह तुझे उस जगह ले और चिंतन, चिंता, विचार, कल्पना, स्वप्न, चल पड़े तुम फिर। गया; जहां तक तेरी सामर्थ्य थी तूने किया, और जहां तेरी फिर चले दूर सत्य से। फिर छूटे वर्तमान से। फिर टूटे सत्ता से। समार्थ्य समाप्त हो गयी, वहीं तेरा अहंकार भी समाप्त हो गया। सत्ता से टूटने का उपाय है, आगे का विचार। वहीं तुझे गहरी तंद्रा आ गयी। ऐसी तंद्रा समाधि की पहली अगर थोड़ा-सा सुख मिल रहा है, उसे भोगो। तुम इस क्षण झलक है। ऐसी तंद्रा में पहली दफा आदमी को पता चलता है कि अगर सुखी रहे, तो अगला क्षण इससे ज्यादा सुखी होगा, यह समाधि जब पूरी होगी तो कैसी होगी। एक बूंद टपकती है अमृत निश्चित है। क्योंकि तुम सुखी होने की कला को थोड़ा और की, सागर का फिर हम अनुमान लगा सकते हैं। ज्यादा सीख चुके होओगे। अगर इस क्षण तुम आनंदित हो, तोतो मैं तुमसे कहता हूं: हो तो नहीं कठपुतली, हो जाओ तो अगला क्षण ज्यादा आनंदित होगा, यह निश्चित है। क्योंकि धन्यभागी हो! जिसने पूछा है, उसने तो बेचैनी से पूछा है। उसने अगला क्षण आयेगा कहां से? तुम्हारे भीतर से ही जन्मेगा। तो पूछा है, इसका क्या मतलब? क्या हम कठपुतली हैं? हो तुम्हारे आनंद में ही सराबोर जन्मेगा। अगला क्षण भी तुमसे ही सको, तो तुम्हारे जीवन में ऐसा द्वार खुल सकता है, जिसे तुम निकलेगा। अगर यह फूल गुलाब के पौधे पर सुंदर है, तो अहंकार के कारण कभी भी न खोल पाओगे। अहंकार के हटते अगला फूल और भी सुंदर होगा। पौधा तब तक और भी ही खुलता है। अहंकार ताले की तरह पड़ा है। अहंकार गिरा कि अनुभवी हो गया। और जी लिया थोड़ी देर। जीवन को और ताला गिरा। द्वार खुलता है। तुमने जितना अपने को जाना है, समझ गया। जीवन को और थोड़ा परिचित हो गया। उससे तुम बहुत बड़े हो। उससे तुम बहुत ज्यादा हो। तुम्हें तुम्हारा अगला क्षण तुमसे निकलेगा। तुम अगर अभी दुखी अपना कुछ भी पता नहीं है कि तुम कौन हो। जिस छोटे से टुकड़े हो, अगला क्षण और भी ज्यादा दुखी होगा। तुम अगर अभी को तुमने समझ रखा है यह मैं हूं, वह तो कुछ भी नहीं है। वह तो परेशान हो, अगले क्षण में परेशानी और बढ़ जायेगी, क्योंकि एक लहर है। सागर का तो तुम्हें स्मरण ही नहीं रहा है। जब तुम एक क्षण की परेशानी तुम और जोड़ लोगे। तुम्हारी परेशानी का इस लहर की पकड़ से छूट जाओगे, तो सागर में उतरोगे। संग्रह बड़ा होता जाएगा। इस क्षण की चिंता करो, बस उतना समर्पण है सागर में उतरने का सूत्र। काफी है। इस क्षण के पार मत जाओ। क्षण में जीओ। क्षण को जीओ। क्षण से दूसरा क्षण अपने-आप निकलता है, तुम्हें आखिरी प्रश्न H सभी प्रश्न गिर गये। उत्तर की भूख नहीं, / उसकी चिंता, उसका विचार, उसका आयोजन करने की कोई प्यास नहीं, चाह नहीं। तो फिर आगे क्या करें? सुख-प्राप्ति, | जरूरत नहीं है। और अगर तुमने आयोजन किया, तो तुम यहां महासुख-प्राप्ति की एक झलक मिल जाए तो आगे क्या होता चूक जाओगे। चूक से निकलेगा अगला क्षण, महाचूक होगी | फिर। अगले क्षण तुम फिर और अगले क्षण के लिए सोचोगे, | तुम ठहरोगे कहां? तुम घर कहां बनाओगे? आज तुम कल के आगे के खयाल से मन पैदा होता है। आगे के विचार से मन लिए सोचोगे, कल जब आयेगा तो आज की भांति आयेगा, फिर पैदा होता है। वर्तमान में जीने से मन समाप्त हो जाता है। आगे तम कल के लिए सोचोगे। कल कभी आया? का विचार उठते ही मन फिर निर्मित होने लगता है। फिर चित्त जिसे तुम आज कह रहे हो, यह भी तो कल कल था। इसके तना। फिर चित्त की यात्रा शुरू हुई। लिए तुम कल सोच रहे थे, आज यह आ गया है, अब तुम फिर 116 Jair Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340137
Book TitleJinsutra Lecture 37 Karna hai Sansar Hone Hai Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size45 MB
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