SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र भाग: 2 रहे हैं। हमारी चेष्टा है कि घर मंदिर हो जाए। तो कितनी देर तू देख के कुछ मुश्किल क्यों हार गया हिम्मत, लगेगी उनको समझाने में? जल्दी ही वे समझ जाएंगे। और देहरी को बिना लांघे आंगन है मिला किसको? अगर तुम्हारे व्यवहार ने उन्हें प्रमाण दिया, तो दुबारा जब तुम | आओगे, वे भी संन्यास लेने आ जाएंगे। रस्सी मैं उनको दूंगा। तीसरा प्रश्न : मा योग लक्ष्मी ने कहा है कि भगवान श्री ने उनको क्यों...। माला यानी रस्सी! फांसी है। तो उनको कुछ पुतलियां, कठपुतलियां बनायी हैं खेल के लिए। तो क्या समझाना कि अगर रस्सी ही लेनी है, तो माला ले लो। जब मरने हम लोग भगवान के हाथ की कठपुतली भर हैं? की ही तैयारी हो गयी, तो फिर संन्यास में ही मर जाओ। संन्यास की मृत्यु महाजीवन का द्वार है। हो तो नहीं; हो जाओ तो तुम्हारा बड़ा सौभाग्य! मगर ध्यान रखना, अपने हृदय पर। तुम अगर स्वयं भयभीत कठपुतली होना कुछ आसान बात नहीं। कठपुतली होना इस हो और मां-बाप का सिर्फ बहाना खोज रहे हो, तो फिर अभी संसार में सबसे कठिन बात है। वही तो कृष्ण का पूरा उपदेश है संन्यास मत लेना। फिर अभी आओ, ध्यान करो, जाओ। अर्जुन को, कठपुतली हो जा। धीरे-धीरे रस को गहन होने दो। सदा अपने ही हृदय के ठीक से अगर गीता को एक शब्द में रखना हो, तो इतना ही कहा जा निरीक्षण और निदान के बाद कुछ करना। दूसरे के कारण सकता है-कठपुतली हो जा। तू सिर्फ निमित्त मात्र हो जा। आंदोलित और परेशान होने की कोई भी जरूरत नहीं है। उपकरण मात्र। करने दे उसे जो कर रहा है। खींचने दे उसे धागे, रजकण को बिना चूमे कंचन है मिला किसको? तु नाच। उसकी मर्जी जैसा नचाये। आंगन टेढ़ा हो, तो ठीक। रजकण को बिना चूमे कंचन है मिला किसको? ठीक हो, तो ठीक, न ठीक हो तो ठीक। जैसी उसकी मर्जी। तू कांटों में बिना घूमे मधुवन है मिला किसको? बीच में बाधा मत डाल। शरणागति का और अर्थ क्या है? तू देख के कुछ मुश्किल क्यों हार गया हिम्मत, समर्पण का और अर्थ क्या है? समर्पण का इतना ही अर्थ है कि देहरी को बिना लांघे आंगन है मिला किसको? अब मैं अपनी मर्जी छोड़ता। थोडी कठिनाइयां स्वाभाविक हैं। वे चनौतियां हैं। वे न होतीं, लक्ष्मी ने ठीक ही कहा है। लेकिन होना आसान नहीं है। तो बरा होता। वे हैं. तो अच्छा है। उन्हीं चनौतियों से पार होकर आमतौर से लोग सोचते हैं, कठपतली होने में क्या रखा है, तो जीवन उठता है। राह पर जो पत्थर पड़े हैं, वे ही तो सीढ़ियां बिलकुल आसान बात है। सबसे कठिन बात अहंकार का बन जाते हैं। समर्पण है! अपने को हटाकर रख देना! अपने हृदय के मंदिर में पत्थरों से घबड़ाओ मत, सीढ़ियां बनाओ। अच्छा है कि किसी और को विराजमान कर लेना! अपने अतिरिक्त! मां-बाप ने एक चुनौती दी। अब इस चुनौती को समझो। इस सिंहासन से स्वयं उतर जाना और किसी और को बैठ जाने देना चुनौती के योग्य अपने को बनाओ। इस चुनौती को स्वीकार सिंहासन पर! बहुत कठिन है, इसीलिए तो प्रेम कठिन है। करो। एक मौका मिला। एक संघर्ष हुआ। इस संघर्ष से कैसे क्योंकि प्रेम में हम किसी को अपने सिंहासन पर विराजमान करते ऊपर जाओ, इसका मार्ग खोजो। इसका कैसे अतिक्रमण हो, हैं। फिर प्रार्थना तो और भी कठिन है। क्योंकि प्रेम में तो हम इसकी विधि खोजो। इससे घबड़ाकर बैठ मत जाओ। इससे आधा-अधूरा विराजमान करते हैं, प्रार्थना में पूरा विराजमान घबड़ाकर डर मत जाओ। अन्यथा तुम सदा के लिए मुर्दा रह करते हैं। प्रार्थना में हम पूरे मिट जाते हैं। / जाओगे। जीवन चुनौतियों को स्वीकार करने से आगे बढ़ता है। कठपुतली हो जाओ, फिर कुछ करने को नहीं बचता। धन्यभागी हैं वे जिन्हें बहुत चुनौतियां मिलीं। क्योंकि उन्हीं के आखिरी करना कर लिया। कठिन से कठिन बात जीत ली। छ जीवन में निखार आया। लिया गौरीशंकर का शिखर। ऐसे हो जाओ जैसे नहीं हो। जहां रजकण को बिना चूमे कंचन है मिला किसको? ले जाये प्रभु, चलो। अपनी मर्जी अलग हटा लो। जैसे कोई नदी कांटों में बिना घूमे मधुवन है मिला किसको? में बहता हो। देखा है, जिंदा आदमी कभी-कभी डूब जाता है, Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340137
Book TitleJinsutra Lecture 37 Karna hai Sansar Hone Hai Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy