SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन ही है गुरु - चरित्रवान के लिए भी समाज जरूरी, चरित्रहीन के लिए भी | है। तरकीब क्या है, मशीन काम कैसे करती है? मशीन का समाज जरूरी; जो समाज को छोड़कर गया, वह चरित्रशून्य हो काम बड़ा सीधा-सरल है। जब तुम सच बोलते हो, तब तुम जाएगा। लेकिन महावीर चरित्र की दूसरी ही व्याख्या करते हैं। एकस्वर होते हो। किसी ने पूछा, कितना बजा है घड़ी में? तुमने महावीर की व्याख्या के हिसाब से हिमालय की गुफा में बैठा कहा, नौ बजे हैं। तो तुम्हारे भीतर एकस्वरता होती है। कहीं कोई हुआ योगी भी चरित्रवान होगा, अगर वह अपनी आत्मा में रम खंड नहीं होता। कहीं कोई विपरीतता नहीं होती। तुम्हारा हृदय रहा है। अगर आत्मा से इधर-उधर हट गया है, स्वप्न जग गये, एक धुन में रहता है, एक लय में रहता है। विचार उठ गये, तो चरित्रहीन हो गया। - फिर किसी ने तुमसे पूछा, तुमने चोरी की? तो तुम जानते तो बना रहे हैं। क्योंकि जो चरित्र समाज से बंधा हो, उसको क्या | और बाहर कहते हो, नहीं की। द्वंद्व पैदा हुआ। तो हृदय की चरित्र कहना! जो बाहर पर निर्भर है, उस पर अपनी क्या धड़कन चूक जाती है। एक धड़कन भी चूक जाती है हृदय की, मालकियत! महावीर कहते हैं, अपने पूरे मालिक हो जाना है। वह नीचे मशीन पकड़ लेती है। बस उसका काम इतना ही है कि इसलिए चरित्र की उन्होंने एक बड़ी अनूठी व्याख्या की। तुम वह पकड़ ले कि तुम्हारा हृदय लयबद्ध चलता रहा, कि उसकी अकेले भी चरित्रवान हो सकते हो। तुम अपने कमरे में बैठे हो, लय छूटी-टूटी। जैसे ही लय छूटी-टूटी, घंटी बजती है। कोई भी नहीं है, तो भी तुम चरित्रवान हो सकते हो, चरित्रहीन हो | तत्क्षण तुम पकड़े गये। तुम झूठ बोल ही नहीं सकते, बिना लय सकते हो। चरित्रवान, अगर तुम शांत हो, निर्मल हो; कोई तरंग को तोड़े। क्योंकि तुम्हें तो पता है सत्य का कि चोरी तुमने की है। नहीं उठती, मन की झील पर कोई लहर नहीं है; सब मौन, / इसको तुम कैसे झुठलाओगे? निस्तब्ध, तो तुम चरित्रवान हो। तुम दूसरों से कह दो मैंने नहीं की है चोरी, और तुम कितने ही इसलिए महावीर ने ध्यान को एक नया शब्द दिया H जोर से कहो कि मैंने चोरी नहीं की है, तुम्हारा हृदय तो कहे ही सामायिक। यह शब्द बड़ा प्यारा है। ध्यान से भी ज्यादा प्यारा चला जाएगा भीतर कि की है, की है। जितना हृदय कहेगा की है। महावीर ने आत्मा को कहा है, समय। वह उनका आत्मा का है, उतने ही जोर से तुम कहोगे नहीं की है। तुम्हारे ऊपर का जोर नाम है। और समय में डूब जाना, सामायिक। वह ध्यान का इतना ही बतायेगा कि भीतर तुमने की है। और हृदय में खंड हो उनका नाम है। शुद्ध समय में डूब जाना, सामायिक। 'अप्पा | जाएंगे। हृदय दो आवाजों से भर जाएगा। उन्हीं दो आवाजों को अप्पमि अप्पणे सुरदो।' आत्मा का आत्मा में आत्मा के लिए | यंत्र पकड़ लेता है। हृदय की धड़कन की लयबद्धता टूट जाती वन्मय हो जाना। बस तुम ही बचो। कुछ और न बचे। शुद्धतम | है। तुम्हारा तार डगमगा जाता है। तुम, तुम ही बचो। कोई विजातीय तत्व न रह जाए। तुम्हारा | झूठ तुम शांत रहकर नहीं बोल सकते। अशांत हो जाओगे। स्वभाव ही स्वभाव शेष रहे। बस वहीं से चारित्र्य शुरू होता है। झूठ बोलते ही बेचैनी पैदा होगी। चैन से झूठ नहीं बोल सकते। फिर ऐसा व्यक्ति बाहर तो चरित्रवान होता ही है, क्योंकि | और जो आदमी निरंतर झूठ बोल रहा है, उसकी बेचैनी का तो जिसने स्वयं का आनंद ले लिया, वह अब ऐसा कुछ भी न कर | | तुम हिसाब लगाओ! उसको कितनी याद रखनी पड़ती है, सकेगा जिससे स्वयं से दूरी बढ़े। जब भी तुम झुठ बोलते हो, | किससे क्या बोला, किससे क्या नहीं बोला। आज क्या बोला, स्वयं से दूरी बढ़ जाती है। कल क्या बोला। हजार झूठों का हिसाब रखना पड़ता है। झूठ इसे समझो। बोलनेवाले के पास अच्छी स्मृति होनी चाहिए। अगर स्मृति अभी तो पश्चिम में उन्होंने अदालतों में यंत्र लगा रखे हैं। ठीक न हो, तो बड़ी गड़बड़ हो जाती है। 'लाई-डिटेक्टर्स।' झठ को पकडनेवाले यंत्र। आदमी अब एक बहत बडा वैज्ञानिक जीवन झूठ भी नहीं बोल सकता। मशीन पर आदमी को खड़ाकर देते भुलक्कड़ था। किसी ने उससे पूछा कि तुमने विवाह क्यों न हैं, और जैसे ही वह झूठ बोलता है, मशीन घंटी बजाने लगती | किया? उसने कहा मैं एक लड़की के प्रेम में था। और मैंने उससे 93 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340136
Book TitleJinsutra Lecture 36 Jivan hi Hai Guru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy