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________________ - किनारा भीतर है करता रहूं। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। कृपया बतायें कि मैं पीओ। डरो मत। यह होश की बात बुद्धिमानी की बात है। तुम होशपूर्वक आपको किस प्रकार सुनूं? घबड़ा रहे हो कि यह क्या हो रहा है? आंख बंद हो रही है ? कान बहरे हो रहे? तुम घबड़ा रहे हो कि यह क्या हो रहा है? होशपूर्वक का प्रश्न ही कहां है! बेहोशी से सुनो। होश की तुम पागल तो नहीं हो रहे। पागल हुए बिना कोई कभी परमात्मा बात ही क्यों लाते हो! मस्त होकर सुनो। सम्हालने की जरूरत | तक पहुंचा? पागल होने की हिम्मत चाहिए ही। कहां है? शराबी की तरह डगमगाते हुए सुनो। जिसने पूछा है, | दिल धड़क उठता है खुद अपनी ही आहट पर उसे होश की बात काम में नहीं आएगी। उसे तो बेहोशी की ही | अब कदम मंज़िले-जाना से बहुत दूर नहीं बात काम आएगी। वही तो घट रहा है-अपने-आप। तुम लाख छुपाते हो मगर छुप के भी मस्तूर नहीं नाहक बुद्धि से एक बिबूचन पैदा कर रहे हो। तुम अजब चीज हो, नज़दीक नहीं दूर नहीं सुनते-सुनते आंख बंद होने लगती है, इसका अर्थ साफ है कि परमात्मा कुछ दूर थोड़े ही है। और ऐसा भी मत मान लेना कि सुनायी पड़ रहा है और आंखें बंद हो रही हैं, क्योंकि जो मैं कह नज़दीक है। न नज़दीक है, न दूर है। क्योंकि परमात्मा तुममें है। रहा हूं, वह भीतर ही देखा जा सकता है। अगर तुम मुझे देखना नज़दीक होने में भी तो थोड़ी दूरी रह जाती है। नज़दीक से चाहते हो तो आंख बंद करके ही देख पाओगे। आंख खुली नज़दीक होने में भी तो फासला रहेगा। परमात्मा तुम हो। तुम्हारा रखी, तो डोला दिखायी पड़ेगा, दुल्हन दिखायी नहीं पड़ेगी। सुन होना परमात्मा है। रहे हो, इसीलिए आंख बंद हो रही है। अब तुम कहीं चेष्टा आंख बंद होती है, तो इसका अर्थ हुआ कि भीतर की यात्रा करके आंख मत खोलना। जबर्दस्ती आंख खोलना चाहो तो। शुरू हुई। पर्दे उठते हैं। संसार को देखना हो, तो आंख खोलकर खोल सकते हो, लेकिन तुम चूक जाओगे। अमृत हाथ में | देखना पड़ता है। स्वयं को देखना हो, तो आंख बंद करके देखना आते-आते वंचित हो जाओगे। सुन रहे हो, इसीलिए कान बहरे | पड़ता है। वास्तविक दर्शन तो आंख बंद करके ही उपलब्ध होते होने लगते हैं। क्योंकि जो मैं तुम्हें कह रहा हूं, वह शब्द ही नहीं | हैं। महावीर की प्रतिमाएं देखीं? अगर महावीर की ठीक प्रतिमा मा शून्य भी है। कान बहरे होने लगते हैं, देखनी हो तो श्वेतांबर मंदिर में मत देखना, वहां कुछ भूल हो उसका अर्थ है कि कान कह रहे हैं, शब्द को रहने दो बाहर, सिर्फ | गयी है। दिगंबर मंदिर में देखना। वहां महावीर की आंख बंद शून्य को जाने दो। कान बड़ी होशियारी से, बड़ी सावधानी से है। श्वेतांबर मंदिर में महावीर की आंख खुली है। वहां कुछ काम कर रहे हैं। आंख भी बड़ी होशियारी, सावधानी से काम भूल हो गयी है। हो सकता है जिसने महावीर की आंख खोल कर रही है। अब तुम अपनी बुद्धि को बीच में मत लाओ। बंद रखी है श्वेतांबर मंदिर में, वह तुम जैसा आदमी रहा हो। मुझे होने दो आंख, बंद होने दो कान। यही तो मेरा इशारा है कि भीतर सुनकर तुम्हारी आंख बंद हो रही है, तुम खोलने की कोशिश कर जाओ। तुम कहीं मुझे पकड़कर मत बैठ जाना। कहीं तुम यह रहे हो। लेकिन महावीर के सत्य को समझना हो तो आंख बंद ही मत सोचना कि यह तो आंख बंद होने लगी, कान बंद होने लगे, होनी चाहिए। क्योंकि महावीर जिस परमात्मा की तरफ जा रहे यह तो सहारा बाहर से छूटने लगा। नहीं, यही तो तुम किनारे के हैं, वह भीतर है। करीब आ रहे हो। भीतर जा रहे हो, वहीं किनारा है। आंख बंद हो जाती है तो बाहर की तरफ सारी यात्रा समाप्त और होश से क्या सुनोगे? ये बातें कुछ होश से सुनने की थोड़े | हुई। सारी ऊर्जा भीतर लौटी। गंगा चली गंगोत्री की तरफ। ही हैं। ये बातें तो मदमस्त होकर सुनने की हैं। ये तो मतवाला मूलस्रोत की तरफ यात्रा हुई। खुली आंख—हो सकता है होकर सुनने की हैं श्वेतांबरों को महावीर की आंख बड़ी प्यारी लगी हो, प्यारी रही मुझे पीने दे, पीने दे कि तेरे जामे-लाली में होगी वह आंख-श्वेतांबरों की बात भी मेरी समझ में आती है। अभी कुछ और है, कुछ और है, कुछ और है साकी वह आंख इतनी प्यारी रही होगी कि उन्होंने चाहा होगा कि देखते अभी तो पीओ। अभी तो प्याली में कुछ भी न बचे, ऐसा ही रहें। बंद आंख में तो तुम क्या देखोगे? तो उन्होंने महावीर Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.340135
Book TitleJinsutra Lecture 35 Kinara Bhitar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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