________________ जिन सूत्र भागः 2 और एक अजीब आनंद से भर जाता हूं। यह सब क्या है? जायेंगे। लेकिन तत्क्षण प्रश्न खड़ा हो जाता है। प्रश्न यह है कि | पता नहीं यह मामला क्या है? कुछ धोखा है, कुछ जादू है, या जीवन में कुछ भी हम सहजता से स्वीकार नहीं करते। | मेरा मन सम्मोहित हो गया, या मेरी कल्पना है, या मैं कोई सपना बड़ा चित्रकार हुआ पिकासो। एक चित्र बना रहा था। किसी | देख रहा हूं? लेकिन तुमने कभी खयाल किया कि जब तुम यह ने पूछा, यह क्या है? पिकासो ने अपने सिर से हाथ मार लिया। प्रश्न बनाओगे, वह इंद्रधनुष तुम्हारे लिए रुका न रहेगा। जब और कहा कि कोई नहीं पूछता जाकर फूलों से और कोई नहीं तुम प्रश्न बना रहे हो, इंद्रधनुष खो जाएगा। वह जो घडीभर के पूछता पक्षियों से, मेरे पीछे क्यों पड़े हो? कोई नहीं पूछता लिए झरोखा खुला था और अतींद्रिय दर्शन की संभावना बनी इंद्रधनुषों से कि क्या है? क्यों? | थी, वह तुम चूक गये। तुम सोच-विचार में खड़े रह गये। पिकासो की बात में अर्थ है। पिकासो यह कह रहा है, यह मेरे प्रश्नों से थोड़ा अपने को बचाओ। फुर्सत के समय कर लेना, आनंद का उद्भव है। क्या है, क्यों है, मुझे कुछ पता नहीं। जब कुछ भी न घट रहा हो जीवन में तब खूब प्रश्न कर लेना। पश्चिम का एक बहुत बड़ा विचारक कवि हुआ, कुलरिज। जब कुछ घटता हो, तब प्रश्न को बीच में मत लाओ। क्योंकि कुलरिज से किसी ने पूछा--एक प्रोफेसर ने—कि तुम्हारी उसके कारण दीवाल खड़ी हो जाती है। वही दीवाल तुम्हारी कविता को मैं पढ़ाता हूं यूनिवर्सिटी में, अर्थ मेरी पकड़ में नहीं | आंख पर पर्दा बन जाएगी। जो है, है। जो जैसा है, वैसा है। आते, अर्थ क्या है? कूलरिज ने कहा तुम जरा देर से आये। जब तथ्यों के आगे-पीछे मत जाओ, तथ्यों में प्रवेश करो। मैंने इसे लिखा था, तो दो आदमियों को पता थे इसके अर्थ। अब | ये रूपहली छांव, ये आकाश पर तारों का जाल केवल एक को पता है। तो उसने कहा कि निश्चित वह एक तुम जैसे सूफी का तसव्वुर, जैसे आशिक का खयाल हो। तुमने ही यह कविता लिखी, तम तो मझे बता दो। कलरिज आह लेकिन कौन जाने, कौन समझे जी का हाल ने कहा, वह एक मैं नहीं हूं। जब मैंने लिखी तो मुझे और ऐ गमे-दिल क्या करूं, ऐ वहशते-दिल क्या करूं परमात्मा को पता था। अब केवल परमात्मा को पता है। अब ये रूपहली छांव, ये आकाश पर तारों का जाल। जैसे सूफी मुझे भी पता नहीं। मैं खुद ही सोचता हूं कि इसका अर्थ क्या है? | का तसव्वुर... जैसे कोई सूफी ध्यान की मस्ती में डूबा कई बार खुद ही मैं चकित हो जाता हूं। तुम भले आ गये। कई | हो।...जैसे आशिक का खयाल जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेयसी दफा मैं सोचता था जाकर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों से पूछ आऊ, | की भावना में डूबा हो। ऐसा ही है। ये रूपहली छांव, ये वे तो अर्थ लोगों को समझाते हैं। आकाश पर तारों का जाल। यह सब रहस्यमय है। यह सब अगर तुम्हें मुझे सुनते-सुनते मेरे चारों तरफ एक आभा का परम रहस्य है। तुम प्रश्न मत उठाओ। तुम धीरे-धीरे रहस्य को अनुभव हो, तो क्या जरूरी है कि प्रश्न बनाओ ही? तो क्या चखो। स्वाद लो। तुम्हें हैरानी होगी। अगर मैं यहां बैठा-बैठा जरूरी है कि तुम उसका उत्तर खोजो ही? क्या इतना काफी नहीं क्षणभर को तुम्हारे लिए खो जाता हूं और एक रंगों का जाल यहां है कि तुम उस आभा को पीओ और उसमें डूबो और तल्लीन हो प्रगट होता है, तो तुम प्रश्न मत उठाओ, यह मौका प्रश्न का नहीं जाओ? अगर तुम्हें मेरे आसपास रंगों का एक इंद्रधनुष दिखायी है। यह मौका तो इन रंगों में उतर जाने का है। पूछ लेना पीछे, पड़े, तो क्यों जल्दी से उसे तुम प्रश्न बना लेते हो? प्रश्न का कल। कह दो मन को कि बाद में सोच लेंगे। अभी तो स्वाद ले अर्थ है, संदेह। निष्प्रश्न का अर्थ है, श्रद्धा। लें। और उसी स्वाद में उत्तर मिलेगा। कल पूछने की जरूरत न अगर तुम्हारे मन में श्रद्धा हो, तो तुम जो देखोगे उसे तुम | रह जाएगी। स्वीकार कर लोगे कि ठीक है, ऐसा है, इंद्रधनुष बना। और तुम | और एक बार अगर तुम्हें उन रंगों में उतरने का पाठ पकड़ आह्लादित होओगे। और तुम्हारे आह्लाद की कोई सीमा न होगी। | जाए, तुम एक सीढ़ी भी इस गहराई में उतर जाओ, तो जरूरत और तुम प्रफुल्लित होओगे। और तुम किसी दूर की दूसरी | नहीं है कि फिर तुम मेरे पास ही उन रंगों को देखो। अगर तुम दुनिया में उड़ने लगोगे। एक नये आकाश में तुम्हारे पंख खुल किसी वृक्ष को भी इतनी ही शांति और प्रेम से देखोगे, जैसा तुमने 76 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org