________________ किनारा भीतर है | पाया है-न आयुर्वेद, न एलोपैथी, न यूनानी, कोई नहीं बता पर प्रश्नचिह्नों की कतार लगी है, 'क्यू' लगा है, वह आदमी पाया कि आदमी स्वस्थ क्यों होता है? स्वस्थ तो आदमी होता | नर्क में जीता है। उसका जीवन एक दुख-स्वप्न है। है। हां, जो स्वस्थ नहीं है, वहां कोई कारण होगा। झरना तो प्रश्नों को हटाते जाओ, गिराते जाओ। और बहुत से लोग तो बहता है। नहीं बहता, तो कोई पत्थर पड़ा होगा। बीज तो फूटता व्यर्थ के प्रश्न इकट्ठे किये हुए हैं...संसार को किसने बनाया? है। वृक्ष बनता है। न फूट पाये, न वृक्ष बन पाये, तो कोई | क्या लेना-देना है! अड़चन होगी-जमीन पथरीली होगी, कि पानी न मिला होगा। इसलिए महावीर ने नहीं पूछा यह प्रश्न कि संसार को किसने बच्चा तो बड़ा होता है, बढ़ता है, जवान होता है। न बढ़ पाये, बनाया। उन्होंने कहा, सदा से है, यह बनाने की बकवास बंद तो कुछ गड़बड़ है। करो। क्योंकि तुम पछो, किसने बनाया, इससे कुछ हल न आनंद स्वाभाविक है। आनंद के लिए कोई प्रश्न नहीं है। दुख होगा। बता दें कि 'अ' ने बनाया, तो तुम पूछोगे 'अ' को अस्वाभाविक है। दुख का अर्थ ही है, जो नहीं होना चाहिए था। | किसने बनाया? तो 'ब' ने बनाया। तुम पूछोगे, 'ब' को सुख का अर्थ है, जो होना ही चाहिए। सुख का अर्थ है, जिसे | किसने बनाया? यह कुछ हल न होगा। कार करते हैं। और दख का अर्थ है, जिसे | तो महावीर कहते हैं. अनादि है. अनंत है। किसी ने नहीं हम कारण के सहित भी स्वीकार नहीं कर पाते। कोई कारण भी बनाया, इस झंझट में पड़ो मत। उनका कुल मतलब इतना है कि बता दे तो क्या सार है! तुम गये डाक्टर के पास, उसने कहा कि झंझट में पड़ो मत। है। इससे राजी हो जाओ। इसके रहस्य को कैंसर हो गया है। कारण भी बता दे कि इसलिए कैंसर हो गया | जानो, इसके रहस्य को जीओ। इसको प्रश्न मत बनाओ। है, तो भी क्या सार है! कारण को भी क्या करोगे? इसको जीओ। इसमें डूबो, इसमें उतरो। जीवन एक समस्या न सुख तो अकारण भी स्वीकार होता है। दुख कारण सहित भी हो, एक रहस्य हो। एक प्रश्न न बने, प्रार्थना बने। जीवन को स्वीकार नहीं होता। फिर कारण की खोज हमें करनी पड़ती है कोई एक दर्शनशास्त्र नहीं बनाना है, जीवन को प्रेम का मंदिर दुख के लिए, क्योंकि कारण का पता न चले तो दुख को मिटाएं बनाना है। कैसे? जिसे मिटाना हो, उसका कारण खोजना पड़ता है। जिसे | इसलिए महावीर ने कहा मत पूछो यह। आत्मा कहां से मिटाना ही न हो, उसके कारण की खोज की कोई जरूरत ही नहीं आयी? महावीर कहते हैं, सदा से है। तुम व्यर्थ के प्रश्न मत है। उसे हम जीते हैं। पूछो। सारे सत्पुरुषों ने व्यर्थ के प्रश्नों को काटना चाहा है। प्रेम परम स्वास्थ्य है। प्रेम परमात्मा की झलक है तुम्हारे दर्पण अगर उन्होंने उत्तर भी दिये हैं, तो इसीलिए दिये हैं ताकि तुम व्यर्थ में। कोई पळता नहीं कि प्रेम क्यों है? प्रेम बस होता है। के प्रश्नों से छटो। अगर वे चुप रहे, तो इसीलिए चुप रहे कि तुम स्वीकार है। सहज स्वीकार है। न कोई उत्तर है, न कोई प्रश्न है। व्यर्थ के प्रश्नों से छूटो। न कुछ बोलना है, न कुछ बोला जा सकता है। लेकिन इसका बुद्ध तो उत्तर ही न देते थे, कोई पूछता था प्रश्न तो चुप रह जाते यह अर्थ नहीं है कि प्रेम कोई रिक्तता है। प्रेम बड़ा भराव है। थे। वे कहते कि तुम भी चुप हो जाओ। ऐसे चुप होकर मैंने | परम भराव है। पात्र पूरा भर जाता है। पात्र खाली हो तो आवाज पाया, चुप होकर तुम भी पा लोगे। होती है। अधूरा भरा हो, तो आवाज होगी। पात्र पूरा भर जाए, मन जब बिलकुल शांत होता है, कोई प्रश्न नहीं उठाता, तो तो आवाज खो जाती है। ऐसे ही जब कोई प्रेम से भर जाता | सब द्वार खुल जाते हैं। प्रश्न ही तालों की तरह लगे हैं तुम्हारे है--कोई प्राण का पात्र-सब खो जाता है। जीवन के द्वारों पर! प्रेम हो, इसकी ही चिंता करो। तुम ऐसे भर जाओ कि कहने | को कुछ न रहे। पूछने को कुछ न रहे। तुम ऐसे शांत हो जाओ पांचवां प्रश्न H आपको सुनते-सुनते कई बार आप रंगीन कि कोई प्रश्नचिह्न तुम्हारे भीतर न बचे। क्योंकि प्रश्नचिह्न एक | दिखायी पड़ने लगते हैं, और फिर भी एक खालीपन की भांति। तरह की बीमारी है। कांटे की तरह चुभता है प्रश्न। जिसके हृदय | आपकी कुर्सी के पीछे की दीवाल भी रंगीन दिखायी पड़ती है, ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org