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________________ जिन सत्र भागः2 मेरे लब पे लबे-लालीने निगार आ ही गया मुतरिबे-फर्दा हूं 'सागर' माजी के अजादारों में नहीं तृष्णा स्वर्ग की अमृत-नदी से कृतज्ञ हो गयी, प्रिय के ओंठ मेरे | है कुफ्रोशर तबियत में मेरी टूटे हुए साजों का मातम—जो टूट ओंठों पर आ गये चुके साज, अतीत जो बीत चुका, उसे तो मैं पाप समझता हूं। हो गयी तश्ना-लबो आज रहीने-कौसर | उसकी बात ही उठानी व्यर्थ है। जो जा चुका, जा चुका। मेरे लब पे लबे-लालीने निगार आ ही गया है कुफ्रोशर तबियत में मेरी टूटे हुए साजों का मातम वह तो ऐसा है जैसे परमात्मा ने आलिंगन किया। परम वैराग्य मुतरिबे-फर्दा हूँ सागर—मैं भविष्य का गायक हूं। का आह्लाद तो ऐसे है जैसे परमात्मा के ओंठ तुम्हारे ओंठ पर आ | माजी के अजादारों में नहीं—मैं अतीत के लिए रोनेवालों में गये। रागी तो असंभव चेष्टा में लगा है। रागी तो ऐसी चेष्टा में | नहीं। लगा है, जैसे कोई रेत से तेल निचोड़ रहा हो। रागी तो ऐसी विरागी, वीतरागी, स्वयं में थिर हुआ संन्यासी कोई धूल लेकर चेष्टा में लगा है कि नीम के पौधों को सींच रहा हो और आम की नहीं चलता। वह कोई संग्रह लेकर नहीं चलता। जो बीत गया, आशा कर रहा हो। बीत गया। जो बीत रहा है, बीत रहा है। वह सदा नया है। आग को किसने गुलिस्तां न बनाना चाहा सुबह की ओस की भांति ताजा। सदा स्वच्छ है। क्योंकि मन का जल बुझे कितने खलील आग गुलिस्तां न बनी संग्रह ही अस्वच्छ करता है, अपवित्र करता है, बासा करता है। रागी तो आग को फुलवाड़ी बनाने में लगा है। अंगारों को फूल | तुमने कभी खयाल किया, जो तुम अनुभव कर चुके बार-बार, बनाने में लगा है। वे बासे हो जाते हैं। छोटे बच्चे को देखा, तितलियों के पीछे आग को किसने गुलिस्तां न बनाना चाहा भागते! तुम नहीं भाग सकोगे। क्योंकि तुम कहते हो तितलियां जल बुझे कितने खलील आग गुलिस्तां न बनी हैं, देख लीं बहुत। छोटे बच्चे को देखा, छोटी-छोटी चीजों से कभी आग फुलवाड़ी बनी है? कभी अंगारे फूल बने? | चमत्कृत होते हैं! छोटी-छोटी चीजें उसे आश्चर्य से भर जाती साधारण आदमियों से लेकर सिकंदरों तक चेष्टा करते हैं और हैं। घास का फूल, और छोटे बच्चे को ऐसा आंदोलित कर देता हार जाते हैं। पराजय संसार का निचोड़ है। इसीलिए तो हमने है, ऐसा रस-विभोर कर देता है कि वह खड़ा है और देख रहा है, महावीर को जिन कहा। जिन अर्थात जिसने जीत लिया। जिन आंखों पर उसे भरोसा नहीं आता कि ऐसा चमत्कार हो सकता अर्थात जिसने पा लिया। जिन अर्थात जो वस्तुतः सफल हुआ। है! छोटे बच्चे को देखा, सागर के किनारे कंकड़-पत्थर-सीपी सफल ही नहीं सुफल भी हुआ। जिसके जीवन में फल लगे। बीन लेता है, ऐसे जैसे कि हीरे-जवाहरात हों, कोहिनूर हों! क्या 'जैसे-जैसे अश्रुतपूर्व का अवगाहन करता है, वैसे-वैसे मामला है? इस छोटे बच्चे के पास ताजा मन है। इसके पास नितनूतन...।' और वैराग्य भी नितनूतन फूल खिलाता है। तुम | कुछ अतीत का संस्मरण नहीं है। इसलिए ये यह नहीं कह यह मत सोचना कि वैराग्य एक बंधी-बंधायी रूढ़ि है। तुम यह सकता कि यह पुराना है। इसके पास तौलने का कोई उपाय ही मत सोचना कि विरागी बस उसी-उसी ढांचे में बंधा हुआ रोज नहीं है कि कह सके पुराना है। जीता है। वस्तुतः रागी जीता है ढांचे में, वैरागी तो प्रतिपल नये, वैराग्य नया जन्म है। फिर से छोटे बच्चे की भांति हो जाना है। और नये में प्रवेश करता है। विरागी का न तो कोई अतीत जीसस ने कहा है, जो छोटे बच्चों की भांति होंगे, वे ही केवल मेरे है—वह अतीत को नहीं ढोता-और न उसकी कोई अतीत को प्रभु के राज्य में प्रवेश कर सकेंगे। हिंदू कहते हैं द्विज होना होगा, पुनरुक्त करने की आकांक्षा है। इसलिए कुछ भी पुनरुक्त नहीं दुबारा जन्म लेना होगा। एक जन्म तो मां-बाप से मिलता है। होता। वैरागी की सुबह हर रोज नयी है। वैरागी की सांझ हर | वह जन्म शरीर का है। एक जन्म तुम्हें स्वयं ही अपने को देना सांझ नयी है। वैरागी का हर चांद नया है, हर सूरज नया है। वह होगा। वह आत्मसृजन है। वही आत्मसाधना है। तब फिर धूल को संभालता ही नहीं, इसलिए प्रतिपल ताजा है, निर्मल है। व्यक्ति सदा ताजा रहता है। रोज-रोज आह्लाद से भरा हुआ। है कफ्रोशर तबियत में मेरी टूटे हुए साजों का मातम ऐसी कथा है, रामकृष्ण को छोटी-छोटी चीजों में रस था। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340132
Book TitleJinsutra Lecture 32 Satya ke Dwar ki Kunji Samyak Shravan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
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