________________ णेण जाणई भावे-ज्ञान से मनुष्य जानता है। रखना। अधिक लोगों ने जीवन के आधार ज्ञान पर रख लिए हैं। / दंसणेण य सद्दहे-दर्शन से श्रद्धा उत्पन्न होती है। तर्क से, विचार से, बुद्धि से जो बात ठीक लगी है-सोचा, उसे चरित्तेण निगिण्हाइ-चरित्र से निरोध होता है, स्वीकार कर लें। लेकिन जो तर्क से ठीक लगा है वह हृदय तक निषेध होता है। | न जा सकेगा, क्योंकि तर्क की पहुंच हृदय तक नहीं। तर्क तो तवेण परिसुज्झई-और तप से मनुष्य विशुद्ध होता है। सिर्फ खोपड़ी की खुजलाहट है; बहुत ऊपर-ऊपर है। प्राणों को ज्ञान से हम जानते हैं। लेकिन जानना काफी नहीं है। जानना आंदोलित नहीं करता तर्क। बहुत ऊपर-ऊपर है। मात्र जान लेने से श्रद्धा पैदा नहीं होती। तर्क के लिए कभी किसी ने प्राण दिये? तर्क के लिए कभी जब तक कि स्वयं दर्शन न हो जाये, जब तक कि खुद की आंखों कोई शहीद हुआ? तुम जिसके लिए मर सको, वही तुम्हारी से हम न देख लें-तब तक श्रद्धा नहीं होती। श्रद्धा है। तुम जिसके बिना जी न सको, वही तुम्हारी श्रद्धा है। महावीर ने देखा; हमने सुना। जो सुनकर जान लिया, उससे तुम कहो जीयेंगे तो इसके साथ, इसके बिना तो मृत्यु हो श्रद्धा पैदा नहीं होगी। कृष्ण ने कहा; हमने सुना। मान लिया जायेगी वही श्रद्धा है। जो जीवन से भी बड़ी है, वही श्रद्धा सुनकर। उससे श्रद्धा पैदा नहीं होगी। और अगर तुमने श्रद्धा | है। जिसके लिए जीवन भी निछावर किया जा सकता है, वही किसी भांति आरोपित कर ली तो तुम भटक जाओगे। क्योंकि | श्रद्धा है। झठी श्रद्धा जीवन को रूपांतरित नहीं करती। वही लक्षण है झठी तर्क के लिए तुमने कभी किसी को जीवन निछावर करते श्रद्धा का, कि जीवन तो कहीं और जाता है, श्रद्धा कुछ और देखा? दो और दो चार होते हैं—इस सत्य का अगर कोई कहती है। श्रद्धा कहती है, त्याग; और जीवन धन को इकट्ठा प्रतिपादन करता हो और तुम तलवार लेकर खड़े हो जाओ, तो करता चला जाता है। तो श्रद्धा झूठी है, मिथ्या है। क्या वह सत्य की रक्षा के लिए अपने जीवन को देना चाहेगा? जब जीवन और श्रद्धा साथ-साथ चलने लगे, जब जीवन मूढ़तापूर्ण मालूम पड़ेगा। श्रद्धा के पीछे छाया की भांति चलने लगे, तभी जानना की श्रद्धा दो और दो चार होते हैं, इसके लिए मरने में कोई सार न मालूम सच्ची है। होगा। वह कहेगा कि तुम्हारी मर्जी, दो और दो पांच कर लो कि तो महावीर कहते हैं, श्रद्धा मौलिक है। श्रद्धा से जो ज्ञान दो और दो तीन कर लो; लेकिन दो और दो चार कोई ऐसी बात आविर्भूत हो, वही ज्ञान है। और जब श्रद्धा से ज्ञान आविर्भूत नहीं जिसके लिए मैं जीवन को गंवा दूं। होगा तो ज्ञान से चारित्र्य अपने-आप निष्पन्न होता है। प्रेम के लिए कोई जीवन को गंवा सकता है। इसलिए श्रद्धा जीवन का आधार ज्ञान पर मत रखना-दृष्टि पर, दर्शन पर प्रेम की भांति है। महावीर कहते हैं, श्रद्धा पर जीवन को खड़ा 537 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org