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________________ दर्शन, ज्ञान, चरित्र-और मोक्ष चेष्टा कर रहा है। वह जो भीतर है, वैसा ही बाहर प्रगट हो रहा | पहली मुलाकात में क्या तमाशा खड़ा करें? और भीड़ लगी है, है। इसलिए महावीर नग्न खड़े हुए। मौलवी है, समाज है, विवाह हो रहा है, गठबंधन डाला जा रहा नग्न खड़े होना बड़ा प्रतीकात्मक है, कि जैसा मैं भीतर हूं वैसा है-अब इसमें कहां तमाशा खड़ा करो बीच में—इसलिए! बाहर। कपड़े भी क्यों पहनं? मैं वैसा क्यों दिखलाऊं जैसा कि जिंदगी में तुम्हारी कसमें, तुम्हारे व्रत, तुम्हारे चरित्र, अगर मैं नहीं हूं? किसी कारण से हैं तो ऊपर-ऊपर होंगे। तुमने देखा! कपड़े के पीछे सिर्फ शरीर को ढांकने की ही पत्नी बहुत नाराज हो गयी–यह मौलवी की और विवाह की आकांक्षा थोड़े ही है। अगर सिर्फ शरीर को ढांकने की आकांक्षा बात उठते देखकर। और उसने कहा कि मेरे मन में कई दफे ऐसा हो तो ठीक। कपड़े के पीछे शरीर को वैसा दिखाने की आकांक्षा लगता है कि तुम बार-बार सोचते होओगे कि मैं अगर किसी है जैसा वह नहीं है। तो महावीर का नग्न खड़े हो जाना कपड़ों और को ब्याही गई होती तो अच्छा था। का विरोध नहीं है; लेकिन तुम्हारी गहरी आकांक्षा का विरोध है। मुल्ला ने कहा, 'नहीं, कभी नहीं! मैं किसी का भला...किसी देखा स्त्रियां या पुरुष! पुरुष कोट बनवाते हैं तो कंधों पर रुई का बुरा क्यों चाहने लगा! हां, यह भावना जरूर मन में भरवा लेते हैं, क्योंकि छाती उभरी हुई दिखायी पड़े। रुई सही; कभी-कभी उठती है कि तुम अगर जनम भर कुंवारी रहती तो मगर कौन देख रहा है भीतर आकर! बाहर से चलते तो छाती | बड़ा अच्छा होता।' उभरी दिखायी पड़ती है। हम छिपाये जाते हैं। जहां प्रेम नहीं है, वहां प्रेम दिखलाए जाते स्त्रियां स्तनों को हजार तरह से उभारकर दिखलाने की कोशिश हैं। जहां सदभाव नहीं है, वहां सदभाव दिखलाए चले जाते हैं। में लगी रहती हैं। न मालूम कितने तरह के इंतजाम कर रखे हैं। और जैसे हम नहीं हैं वैसा हम अपने चारों तरफ रूप खड़ा करते जैसा नहीं है वैसा दिखाने की चेष्टा चल रही है। रहते हैं। धीरे-धीरे दूसरे तो धोखे में आते ही हैं, हम भी धोखे में महावीर नग्न खड़े हुए—सिर्फ इस अर्थ में। यह प्रतीकात्मक आ जाते हैं। अपने ही प्रचारित असत्य अपने को ही सत्य मालूम है कि जैसा हूं, ठीक हूं। अब इसको अन्यथा दिखाने की क्या होने लगते हैं। तब एक बड़ी दुविधा पैदा होती है। उसी दुविधा जरूरत; अन्यथा दिखाने से अन्यथा हो तो न जाऊंगा। किसको | में लोग फंसे हैं। धोखा देना है और क्या सार है? महावीर कहते हैं, क्रियाविहीन ज्ञान व्यर्थ, अज्ञानियों की क्रिया दर्शन हो तो ज्ञान होता, ज्ञान हो तो एक चरित्र आना शुरू व्यर्थ। तो न तो आचरण करना जबर्दस्ती। क्योंकि जो तुम्हारे होता। लेकिन वह चरित्र बड़ा नैसर्गिक होता। उसमें आरोपण, ज्ञान में न उतरा हो वह तुम्हें पाखंडित करेगा, तुम्हें पाखंडी चेष्टा, श्रम जरा भी नहीं होता। एक नैसर्गिक दशा होती है। बनाएगा। और अगर कोई तुम्हारे ज्ञान में उतरा हो तो उसकी मुल्ला नसरुद्दीन के घर मैं मेहमान था। सुबह-सुबह उसकी परीक्षा यही है कि वह आचरण में उतरे। इससे तुम गलत अर्थ पत्नी से किसी बात पर झंझट हो गयी। तो मुझे देखकर उसने मत लेना, जैसा कि आमतौर से जैन अनुयायी लेते हैं। वे सोचते थोड़ा ज्यादा रौब बांधना चाहा पत्नी पर। और उसने कहा कि हैं कि जो ज्ञान में आ गया, अब इसको आचरण में उतारना है। देखो, मौलवी के सामने, समाज के सामने तुमने कसम नहीं नहीं, यह तो सिर्फ परीक्षा, कसौटी है। महावीर यह कह रहे हैं खायी थी कि सदा मेरी आज्ञा का पालन करोगी? कि जो ज्ञान में आ गया है, वह आचरण में आना ही चाहिए। मैं मौजूद था तो उसने सोचा कि शायद पत्नी थोड़ी झुकेगी और अगर ज्ञान में आ गया है तो आचरण में आने से बच नहीं झंझट ज्यादा न करेगी। सकता। लेकिन एक शर्त है कि ज्ञान में दर्शन के माध्यम से लेकिन पत्नी ने कहा, 'हां, खायी थी, मुझे याद है। लेकिन आया हो। अगर दर्शन के माध्यम से न आया हो तो ज्ञान की वह सिर्फ इसीलिए खायी थी कि मैं उस वक्त पहली-पहली | तरह पड़ा रहेगा—तुमसे दूर, संबंध न जुड़ेगा; तुम्हारे हृदय और मुलाकात में तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी।' तुम्हारे ज्ञान में कोई सेतु न होगा। अब ऐसी कसम का क्या अर्थ, जो इसीलिए खायी गई हो कि 'जैसे पंगु व्यक्ति वन में लगी आग को देखते हुए भी भागने में 547 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340125
Book TitleJinsutra Lecture 25 Darshan Gyan Charitra aur Moksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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