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________________ 2. जिन सूत्र भागः 11 देखता हूं गौर से फूलों को मुरझाने के बाद। 'और मोक्ष के बिना आनंद कहां, निर्वाण कहां।' ऐसे गौर से देखने से कुछ लाभ न होगा। जब नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं। फिर देखने से कुछ सार नहीं। बड़े सीधे-सरल, लेकिन बड़े वैज्ञानिक सूत्र हैं! बुढ़ापे में लोग कामवासना के संबंध में विचार शुरू करते हैं। 'दर्शन के बिना ज्ञान नहीं।' जब फूल मुर्झ गए, जब जीवन में ऊर्जा खो गयी, जब थक गये, इसलिए और कैसा भी ज्ञान तुमने इकट्ठा किया हो, उसे ज्ञान जब जीवन जवाब देने लगा, जब जिंदगी खुद ही उन्हें छोड़ने | मत समझना। और कितना ही ज्ञान तुम्हारे पास हो, उसे तुम लगी और रद्दी के ढेर पर फेंकने लगी-तब वे त्यागने की बात अज्ञान का आभूषण ही समझना; उससे अज्ञान ही सज गया है, सोचते हैं। संवर गया है, ज्ञान पैदा नहीं हुआ। उससे अज्ञान ढंक गया है, इसलिए महावीर ने एक बहुत अनूठा सूत्र भारत को ज्ञान पैदा नहीं हुआ। दिया-और वह था: जब तुम जवान हो, जब जीवन की ऊर्जा | 'ज्ञान के बिना चरित्र नहीं।' भरी-पूरी है, तभी अगर तुम जीवन के दुख को देख लो और दर्शन, ज्ञान, चरित्र। और ज्ञान की परीक्षा यही है कि वह उससे छूट जाओ, भरी जवानी में त्याग का फल लग जाये, तो | तुम्हारे आचरण में उतर आये। बड़ा शुभ है। क्योंकि तब ऊर्जा है। तो जिस ऊर्जा से तुम संसार मैंने सुना है, प्रसिद्ध शहीद चंद्रशेखर आजाद को तीन ही की तरफ जाते थे, वही ऊर्जा तुम्हें मोक्ष की तरफ ले जाने का | गालियां आती थीं। और जब वह बहुत क्रोध में भी आ जाते तो साधन बन जायेगी। ऊर्जा तो वही है। लेकिन जब ऊर्जा जा उन्हीं तीन गालियों को बार-बार दोहराने लगते। गधा, चुकी, थक गये, हाथ-पैर कमजोर पड़ गये, उठते नहीं बनता, नालायक, उल्लू के पट्टे-बस तीन ही गालियां आती थीं। बैठते नहीं बनता-तब तुम त्याग का सोचने लगे। यह त्याग न किसी मित्र ने कहा कि अगर तुम्हें गालियां देने में ऐसा रस आता हुआ, यह तो अपने को धोखा देना हुआ। जिंदगी खुद ही तुम्हें / है और क्रोध के वक्त गालियां कम पड़ जाती हैं तो और क्यों नहीं त्यागे दे रही है। अब तुम्हारे त्याग का कोई अर्थ नहीं है। यह तो | सीख लेते? कोई गालियों की कमी है?...कि गधा, | ऐसे ही हआ कि जब दांत टट गये तब तमने बहत-सी चीजें खाने | नालायक, उल्ल के पट्टे फिर गधा, नालायक, उल्ल के का त्याग कर दिया। अब तुम उन्हें खा ही नहीं सकते। पढे-बार-बार वही दोहराने लगते हो, अच्छा भी नहीं मालूम ध्यान रखना, जो बीत रहा है अभी, आज, यहां, उसके प्रति | होता! जैसे टूटा हुआ रिकार्ड दोहराने लगता है। जागना! दर्शन की क्षमता को वहां सजग करना। जैसे-जैसे तो चंद्रशेखर आजाद ने कहा, 'चौथी गाली की जरूरत नहीं दर्शन जागता जायेगा-क्रोध में, काम में, लोभ में, मोह है।' कोट के खीसे से पिस्तौल निकाली और कहा, 'गाली, में वैसे-वैसे तुम पाओगे मोह, काम, क्रोध, लोभ गिरने लगे, फिर गोली। तीन गाली काफी हैं। फिर इसके बाद गोली।' और एक नयी ऊर्जा का भीतर आविर्भाव हुआ। क्योंकि जो कहा कि मैं इस सूत्र को मानकर चलता हूं कि विचार आचरण में ऊर्जा क्रोध में लगी है वही मुक्त होकर करुणा बन जाती है। लाने चाहिए। तो गाली तो केवल विचार है, गोली आचरण है। दर्शन के माध्यम से क्रोध करुणा बन जाता है। और काम की मगर मजा यह है कि अगर गाली है तो गोली अपने-आप आ यात्रा राम की यात्रा बन जाती है। जायेगी। गाली कब तक देते रहोगे? अगर क्रोध है तो हिंसा पैदा 'सम्यक दर्शन के बिना ज्ञान नहीं।' होगी। उससे बच न सकोगे। क्योंकि जिसको हम विचार में नांदसणिस्स नाणं। सम्हालते हैं, वह आज नहीं कल आचरण में झलक जाता है। 'ज्ञान के बिना चारित्र्य नहीं।' क्योंकि आचरण कुछ भी नहीं है—निरंतर विचार, पर्त-पर्त नाणेण विणा न हंति चरणगुणा। विचार का ही जम जाना है। विचार ही तो वस्तुएं बन जाते हैं। 'चरित्रगुण के बिना मोक्ष नहीं।' जो तुमने सोचा है, कल वही तुम्हारा आचरण बन जायेगा। जो अगुणिस्स नत्यि मोक्खो तुम्हारा आज विचार है वह कल आचरण होगा। और जो आज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340125
Book TitleJinsutra Lecture 25 Darshan Gyan Charitra aur Moksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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