________________ MARRERNEL परमात्मा के मंदिर का द्वार के प्रेम || वासना का अर्थ है : मांग है, तनावपूर्ण। अभीप्सा का अर्थ है: | सुनकर कोई महत्वाकांक्षा तो जगती नहीं कि पाना है, उठना है, मांग है, तनावशून्य। मांगते भी हैं, जल्दी भी नहीं है; देना, जब जागना है। तो जब जहां कोई महत्वाकांक्षा नहीं उठती तो आदमी तुझे देना हो! तेरी मर्जी! न देना हो, उसके लिए भी राजी हैं! सो जाता है, करेंगे भी क्या और? / तुमने देखा, जब तुम्हारे पास कुछ भी करने को नहीं होता, तब तीसरा प्रश्न: आपके प्रवचन के समय मैंने संन्यासियों के तुम सो जाते हो। करोगे क्या और? जब तक कुछ करने को चेहरे का अवलोकन किया है। ऐसा लगता है कि वे गहरी नींद होता है, तब तक तुम करते रहते हो। और तुमने यह भी देखा में पहुंच गये हैं। और मेरा अपना अनुभव भी यही है कि जैसी होगा जब तुम्हारे पास करने को इतना कुछ होता है कि तुम बिस्तर मीठी, गहरी और लुभावनी नींद प्रवचन के समय लगती है पर भी पड़ जाते हो, लेकिन मन में काम जारी रहता है, तो नींद वैसी और कभी अनुभव में नहीं आती। क्या कारण है? नहीं आती। तो जहां काम है वहां नींद में बाधा है। परमात्मा तुम्हारा कोई काम तो है नहीं। वहां कुछ करने को तो है नहीं। अलग-अलग लोगों के अलग-अलग कारण होंगे। एक तुम्हारे भीतर कोई अभीप्सा तो है नहीं; उसे पाने की कोई कारण तो बताया नहीं जा सकता, क्योंकि यहां बहुत लोग हैं। आकांक्षा तो है नहीं। सुन लिया, नींद आ गयी। लेकिन फिर भी प्रश्न विचारणीय है। __ तो एक तो ऐसे लोग हैं। दूसरे ऐसे लोग हैं जो वस्तुतः नींद में पहली बात, कछ लोग तो निश्चित ही सभी धर्म-सभाओं में चले जाते हैं आकांक्षा के रहते भी। परमात्मा को पाने की प्यास सो जाते हैं। यह बचने की एक तरकीब है। यह मन की एक बड़ी भी है, किसी को धोखा देने नहीं आये हैं; लेकिन फिर भी नींद में | सक्ष्म व्यवस्था है। जिससे तुम बचना चाहते हो तो बीच में एक चले जाते हैं। अपने को भी धोखा नहीं दे रहे हैं, लेकिन नींद नींद का पर्दा डाल लेते हो। सुना ही नहीं, तो अपने साथ ही बरबस पकड़ लेती है। उसका कारण है-जन्मों-जन्मों की मन कूटनीतिक खेल खेल गये। सुनने भी गये तो रस भी ले लिया की आदत। जिस दिशा में मन कभी गया नहीं है, उस दिशा में कि धार्मिक व्यक्ति हैं और सो भी गये तो सुना भी नहीं। तो जाने से मन इनकार करता है, जिस दिशा में मन को कभी ले नहीं दुनिया को दिखाई भी पड़ा कि धार्मिक हैं और झंझट भी न हुई। गये हो पहले, अनभ्यस्त है, रास्ता अपरिचित है, वह वहां जाने धार्मिक होने की झंझट में भी न पड़े। से बिलकुल इनकार कर देता है। वह जमीन पर ही बैठ जाता है। तो एक तो वर्ग ऐसे लोगों का है, जो धर्म की बात पड़ी नहीं वह आंख ही बंद कर लेता है। वह कहता है, हम सो ही जायेंगे। उनके कान में कि उन्हें नींद आई नहीं। यह उनके भीतर यह मन का इनकार है। करीब-करीब यांत्रिक हो गया है। मंदिरों में, चर्चों में तुम उन्हें तो दूसरा वर्ग है जो निष्ठापूर्वक समझना चाहता है। लेकिन सोता हुआ पाओगे। | उसका मन इनकार कर रहा है। एक पादरी पूछ रहा था अपने एक भक्त को; क्योंकि पादरी फिर एक तीसरा वर्ग है, जिसकी नींद बड़े और कारण से पैदा देखता था, जब भी वह आता है, सोया ही रहता है चर्च में। हो रही है। अगर तुम हृदयपूर्वक मेरी बातों को सुन रहे हो तो उसने उससे एक दिन पूछा कि क्या रात नींद ठीक से नहीं होती? एक तरह की तंद्रा उतर ही आयेगी। पर वह नींद नहीं है। उसको उस आदमी ने कहा, रात तो नींद लगती ही नहीं। हजार चिंताएं हैं योग अलग नाम देता है—तंद्रा। वह नींद जैसी है, निद्रा जैसी संसार की, मगर उसकी कोई चिंता नहीं। जब आपका प्रवचन है, लेकिन निद्रा नहीं है। वह तंद्रा है। तंद्रा का अर्थ है: जब तुम सुनता हूं तो खूब गहरी नींद लग जाती है। कोई मधुर संगीत सुनते हो तो एक ताल बंध जाती है भीतर, एक संसार की तो चिंता है, परमात्मा की तो कोई चिंता है नहीं। सुर बंध जाता है, एक सन्नाटा खिंच जाता है, विचार शांत हो संसार के तो विचार हैं, परमात्मा का तो कोई विचार है नहीं। जाते हैं। एक बड़ी झपकी, जिसको तुम जागना भी नहीं कह संसार की तो भाग-दौड़ है, तो नींद को खलल डालती है। सकते, सोना भी नहीं कह सकते; जो दोनों के मध्य परमात्मा की कोई भाग-दौड़ तो है नहीं। तो परमात्मा की बात है-तंद्रा-ऐसी घड़ी आ जाती है। न बाहर न भीतर, देहली 4851 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org