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________________ F परमात्मा दूर है, ऐसा तो सोचना ही नहीं। क्योंकि जो दूर हो एक बड़ा बुखार सारे जगत में फैला है-तेजी, जल्दी, स्पीड! सकता है, वह तो परमात्मा न होगा। परमात्मा तो वही है जिसने तो जैसे इंस्टेंट काफी, ऐसा सारा जीवन, सभी कुछ अभी हो तुम्हें सब तरफ से घेरा है, बाहर और भीतर सब तरफ से भरा है। जाये, इसी क्षण हो जाये, आज ही हो जाये! तो मनुष्य के जीवन उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। परमात्मा सर्वस्व है। की कुछ गहराइयां खो ही गयीं, क्योंकि कुछ चीजें धीरे-धीरे होती परमात्मा सब कुछ का नाम है। परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है, हैं। कुछ चीजें मौसमी फूलों की तरह होती हैं—आज लगायीं, परमात्मा समष्टि है। इसलिए उससे दूर तो हम नहीं हैं, लेकिन तीन सप्ताह में पौधे हो जायेंगे, छह सप्ताह में फूल आ जरा हम बेहोश हैं। जायेंगे लेकिन आये नहीं कि गये भी नहीं। लेकिन देवदार अल्ला रे बेखुदी कि तेरे पास बैठकर और चीड़ के वृक्ष वर्षों लेंगे, वर्षों लगेंगे, बड़े धीरे-धीरे बढ़ेंगे। तेरा ही इंतजार किया है कभी-कभी। और यह तो परमात्मा की खोज तो शाश्वत वृक्ष है; इसको रोपना हम बेहोश हैं, बस इतनी ही बात है। और हम बेहोश तब तक अपने हृदय में, तो बड़ी अनंत प्रक्रिया है। अब यह अभी इसी रहेंगे, जब तक हम हैं। हमारा होना हमारा बेहोश होना है। तो क्षण नहीं हो सकता। खाक तो होना पड़ेगा। जलना तो पड़ेगा। राख तो होना पड़ेगा। कल मैं एक किताब पढ़ रहा था। उसमें एक अमरीकी प्रार्थना मगर यही वास्तविक होने का उपाय है। करता है कि हे प्रभु! सुनते हैं धीरज की बड़ी जरूरत है, तो धीरज अभी तो हम नाममात्र को हैं, कहने मात्र को हैं। अभी हमारे दे–लेकिन अभी और यहीं! धीरज की बड़ी जरूरत है! तो दे, होने में क्या है? कोई सत्व नहीं, कोई सार नहीं। धीरज दे--लेकिन अभी और यहीं! तो घबड़ाओ मत। और यह भी माना कि जीवन में कुछ चीजें समय मांगती हैं और जितनी महत्वपूर्ण 'आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक हों उतना ज्यादा समय मांगती हैं। अगर किसी व्यक्ति से केवल कौन जीता है तेरे जुल्फ के सर होने तक वासना का संबंध बनाना हो तो अभी और यहीं बन सकता है, हमने माना कि तगाफुल न करोगे, लेकिन प्रेम का बनाना हो तो समय लगेगा। और प्रार्थना का बनाना हो खाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक।' तो अनंत काल लग जायेंगे। और परमात्मा का बनाना हो तो हो जाओ! शाश्वतता चाहिए। इसका यह मतलब नहीं है कि तुम्हें प्रतीक्षा तमाम उम्र तेरा इंतजार कर लेंगे करनी पड़ेगी शाश्वतता तक। क्योंकि शाश्वतता ने अभी और मगर ये रंज रहेगा कि जिंदगी कम है। यहां भी तुम तक अपना हाथ पहुंचाया है। तुम शाश्वत के लिए करो! उम्र छोटी पड़ जाये, इंतजार बड़ा हो जाये। अनेक उमें तैयार हुए कि अभी और यहीं भी घट सकता है। इसमें जरा समा जायें, इंतजार इतना बड़ा हो जाये। प्रतीक्षा ऐसी घनी हो विरोधाभास लगेगा। इसे स्पष्ट करके कहूं। जाये कि जन्म और जीवन पलक के झपने जैसे बीतने लगें। अगर तुम शाश्वत प्रतीक्षा करने को राजी हो तो अभी और यहीं लेकिन इंतजार का सिलसिला जारी रहे। शरीर बदलें, जीवन घट सकता है; क्योंकि शाश्वत प्रतीक्षा का अर्थ हुआ अब कोई बदलें, योनि बदले, रूप बदलें, रंग बदलें, नाम बदलें, सब जल्दी नहीं; तुम शांत हुए; शिथिल तुमने छोड़ा; तनाव हटा। बदलता जाये-लेकिन भीतर की प्रतीक्षा का एक सूत्र अनस्यूत | अब तुम्हारी कोई मांग नहीं है-हो, जब हो। अब कोई जल्दी न रहे, एक धागा पिरोया रहे सारे मनकों में। रही। बस इस शिथिल और शांत मन में अभी और यहीं घट घटना तो इस क्षण भी घट सकती है, लेकिन प्रतीक्षा अनंत सकता है। चाहिए। और घटना बहुत देर होगी घटने के लिए, अगर प्रतीक्षा तुमने मांगा अभी और यहीं घट जाये तो तुम इतने तन गये, में थोड़ी कमी रही। जल्दबाजी न करना। इतने परेशान हो गये कि कहीं न घटा और समय बीत गया तो नये यग ने बड़ी जल्दबाजी की है। इसलिए प्रतीक्षा के गहरे कहीं समय फिजूल न चला जाये। तुम्हारे तनाव के कारण ही न रूप खो गये हैं। कोई प्रतीक्षा करने को राजी नहीं है। पश्चिम से घट पायेगा। मांग में तनाव है। यही अभीप्सा शब्द की खूबी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340122
Book TitleJinsutra Lecture 22 Parmatma ke Mandir ka Dwar Prem
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size40 MB
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