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________________ परमात्मा के मंदिर का द्वार : प्रेम तो है ही, लेनेवाला भी दाता बन जाता है। और लेनेवाला जो जैसे-जैसे गहरा गया, वैसे-वैसे पिघलता गया। गहरे नहीं गया, देता है, वह देनेवाले से भी बड़ा है। ऐसा नहीं; खूब गहरे गया। और ऐसा भी नहीं कि उसने गहराई इसलिए प्रेम गणित की सीमा के बाहर पड़ता है, हिसाब के न छू ली; उसने पूर सागर का अंतस्तल छू लिया। लेकिन तब बाहर पड़ता है, अर्थशास्त्र के बाहर पड़ता है, रहस्यमय है। तक खुद खो चुका था, लौटनेवाला न बचा था। घबड़ाना न ! कृपण मत बनना! कायर मत बनना ! प्रेम के द्वार नमक का पुतला जैसा ही आदमी है-प्रेम का पुतला। वह पर दस्तक देना। क्योंकि वही द्वार एक दिन परमात्मा का मंदिर | प्रेम से पैदा हुआ है, प्रेम से बना है। तुम्हारा रो-रोआं, तुम्हारी भी सिद्ध होता है। रत्ती-रत्ती प्रेम से बनी है। तो जब तुम परमात्मा के सागर में डुबकी लगाओगे...नहीं कि तुम पता न लगा लोगे, पता लगा दूसरा प्रश्न: लोगे; लेकिन पता लगाने में खो जाओगे। आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक इब्तिदा में ही मर गये सब यार कौन जीता है तेरे जुल्फ के सर होने तक कौन इश्क की इंतिहा लाया। हमने माना कि तगाफुल न करोगे, लेकिन इसलिए खाक होने की तैयारी रखो। और माना कि बहत बार खाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक। ऐसा लगेगा कि बड़ी देर हुई जा रही है और बहुत बार तड़फ होगी कि अब जल्दी हो, और बहुत बार ऐसी शिकायत उठेगी कि अब प्रेम का रास्ता ही मिटने का रास्ता है। वहां खाक हो जाना ही और पीड़ा क्यों; फिर भीउपलब्धि है। वहां खो जाना ही पा लेना है। वहां बचाने की | क्या उसके बगैर जिंदगानी? चेष्टा से ही बाधा होती है। वहां तो धीरे-धीरे अपने को गलाते। माना वह हजार दिलशिकन है। जाना है और एक ऐसी घड़ी लानी है, जहां प्रेमी तो बचे ही -बहत दिल को दुखानेवाला है. लेकिन उसके बिना जिंदगी न-बस प्रेम का ही सागर लहरें लेता रह जाये। उसी क्षण का कोई अर्थ भी नहीं। परमात्मा अवतरित होता है। जहां तुम मिटे वहीं परमात्मा का | धन्यभागी हैं वे जो परमात्मा के रास्ते पर दुखी और पीड़ित होते प्रवेश है। हैं। अभागे हैं वे जो परमात्मा के विपरीत रास्ते पर सुखी और इब्तिदा में ही मर गये सब यार प्रसन्न हैं। क्योंकि परमात्मा के विपरीत रास्ते पर सुख और प्रसन्न कौन इश्क की इंतिहा लाया। भी राख हो जायेगा। और परमात्मा के रास्ते पर राख हो जाना भी प्रेम के प्रारंभ में ही लोग मर जाते हैं। अंत तक जाने की तो | स्वर्ण हो जाने का उपाय, व्यवस्था है। सुविधा कहां है, बचता कौन है? प्रेम की कोई आज तक गहराई एक तर्जे-तगाफुल है सो वह उनको मुबारक नहीं छू सका। एक अर्जे-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे। रामकृष्ण कहते थे, एक मेला भरा था और लोग सागर के तट -एक उपेक्षा है सो परमात्मा को छोड़ दिया, वह करता रहे। पर विचार करते थे कि सागर की गहराई कितनी है। एक नमक एक तर्जे-तगाफुल है सो वह उनको मुबारक का पुतला भी आया था। एक अर्जे-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे। उसने कहा, 'ठहरो! ऐसे विचार करने से क्या होगा? मैं -एक अभीप्सा है, प्रार्थना है, वह हम करते रहेंगे। एक डुबकी लगाता हूं। मैं अभी पता ला देता हूं।' उसने डुबकी लगा | उपेक्षा है, तू करते रहना! ली, लेकिन लौटा नहीं, लौटा नहीं, लौटा नहीं। सांझ हो गयी, | भक्त कहता है, तू उपेक्षा करना, हम अभीप्सा करेंगे; देखें दूसरा दिन हो गया, मेला उजड़ने का वक्त भी आ गया, लोग कौन जीतता है! राह देखते रहे, लेकिन वह कभी लौटा नहीं। वह लौटता कैसे? एक तर्जे-तगाफुल है सो वह उनको मुबारक वह नमक का पुतला था; सागर में उतरा तो गलने लगा। एक अर्जे-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे। 483 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org
SR No.340122
Book TitleJinsutra Lecture 22 Parmatma ke Mandir ka Dwar Prem
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size40 MB
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