________________ ENTERTA धर्म आविष्कार है-स्वयं का BAR अर्जुन के बीच समय था भी नहीं। कृष्ण की जो गीता है, वह एक लेकिन दोनों ही हालत में एक ही घटना घटती है। अंतिम विशेष परिस्थिति में कही गई है। महावीर अपने शिष्यों से बोल परिणाम एक है। इसलिए जो ऐसा पूछता है कि दोनों में कौन रहे थे चालीस साल तक। कृष्ण की गीता तो क्षणों में हो गई। ये श्रेष्ठ है, वह गलत पूछता है। वह दोनों में से किसी को भी नहीं कोई साधारण क्षण न थे, बड़े असाधारण क्षण थे। बड़ी संकट समझा। तुम अगर महावीर को समझ लो, कृष्ण समझ में आने की स्थिति थी। यहां अगर एक-एक कर्म को छोड़ने के लिए ही चाहिए। अगर तम कृष्ण को समझ लो और महावीर समझ में कृष्ण कहें, समय ही न था। युद्ध द्वार पर खड़ा था। युद्ध सामने | न आयें, तो कृष्ण समझ में नहीं आये। मेरे देखे जिसने एक खड़ा था। शंख बज गये थे। युद्ध की घोषणा हो गई थी। योद्धा | अनुभवी को समझ लिया, उसने सब अनुभवियों को समझ एक-दूसरे के सामने अड़े थे। अर्जुन ने भी कहा था, मेरे रथ को लिया। फिर उसे भाषा, ढंग, अभिव्यक्ति, अभिव्यंजना के ले चलो बीच युद्ध में। और कृष्ण युद्ध के बीच में रथ को ले प्रकार, उलझाव में न डाल सकेंगे। फिर कोई चीज उसकी आंखों आये थे। ठीक उस क्षण में जब युद्ध सामने था, क्षणभर की देर को धुंधला न कर सकेगी। लेकिन मैं देखता हूं कि जो महावीर के न थी, शंख फूंके जा रहे थे, युद्ध शुरू होने के करीब था, जल्दी पक्ष में हैं, वे कृष्ण के विपक्ष में हैं। जो कृष्ण के पक्ष में हैं, वे ही मार-धाड़ होगी-तभी अर्जुन को दिखाई पड़ा, रोमांचित हो | महावीर के विपक्ष में हैं। जो महावीर के पक्ष में है, वह मुहम्मद आया, एक पुलक हुई। उसे लगा, यह तो व्यर्थ है। इतना युद्ध, | के पक्ष में तो हो ही कैसे सकता है? जो मुहम्मद के पक्ष में है, इतनी हिंसा-क्या सार है? उसके हाथ ढीले पड़ गये, गात | वह कैसे महावीर की बात को बरदाश्त कर सकता है? शिथिल हुए, गांडीव हाथ से छूट गया। वह थका-मांदा, डरा साफ है, इनमें से कोई भी समझा नहीं। इन्होंने शब्द पकड़ हुआ रथ में बैठ गया। उसने कृष्ण से कहा, मैं तो सोचता हूं कि लिये हैं। ये लड़ रहे हैं एक-दूसरे से; क्योंकि एक कहता है सब छोड़कर चला जाऊं। | गिलास आधा खाली है, और दूसरा कहता है गिलास आधा भरा यह बड़े संकट का क्षण था। यहां कोई ऐसी प्रक्रिया जिसमें है। ये सिर काटने-कटवाने को तैयार हैं। स्वभावतः भाषा में जन्मों-जन्मों लगते, साधना करनी पड़ती हो, काम की नहीं हो | दोनों अलग-अलग मालूम पड़ते हैं। एक कहता है, आधा सकती थी। तो कृष्ण ने जो कहा, वह ऐसा था कि तत्क्षण हो खाली है, तो जोर मालूम होता है खाली पर; एक कहता है आधा सके, एक छलांग में हो सके। भरा है, तो जोर मालूम होता है भरे पर। अब खाली और भरा! संकल्प तो धीरे-धीरे होता है। संकल्प यात्रा है-सीढ़ी दर विरोधाभासी हो गये। लेकिन जरा आधे का खयाल रखना। उस सीढ़ी, इंच-इंच, रत्ती-रत्ती। वह फुटकर काम है। समर्पण आधे में ही सारा सार है। छलांग है-थोक, इकट्ठा। एक क्षण में भी हो सकता है। मेरे देखे दोनों की बातों में कोई गहरा अंतर नहीं है-हो नहीं महावीर जिन शिष्यों को बोल रहे थे, वे युद्ध के स्थल पर न सकता। तुम्हें न दिखाई पड़े तो अपनी आंखों पर थोड़े पानी के थे। इस विशेष परिस्थिति को खयाल में रखना। तो कृष्ण यह तो छींटे मारना। थोड़ा जागने की कोशिश करना। कह नहीं सकते कि तू अपने कर्म बदल! कृष्ण यही कह सकते हैं जल्दी निर्णय मत लेना।। सी घडी में त अपने कर्ता को ही रख दे। और कर्ता को जब भी तम्हें दो सत्परुषों में कोई विरोध दिखाई पडे. तो पहली रखने से भी वही हो जाता है। क्योंकि अंततः कर्मों को बदलने से बात तो तुम यही सोचना कि मेरे देखने में कहीं भूल हुई जा रही कर्ता ही गिरेगा; तो जब कर्ता को ही गिराना है तो सीधा ही गिरा है। इसे तुम गांठ में बांधकर रख लो। जब भी तुम्हें दो सत्पुरुषों दो। कर्ता को ही छोड़ दो। | में कोई विरोध दिखाई पड़े, तो पहली बात तो तुम यही सोचना समर्पण भक्त का मार्ग है। वह कहता है, परमात्मा के चरणों कि मुझसे कहीं भूल हुई जा रही है; कहीं मेरे देखने, समझने में, में रख दो; कह दो कि मैं कुछ हूं नहीं, अब जो हो तेरी मर्जी! बुरा कहीं मेरी चिंतना में, परिभाषा में, व्याख्या में, चूक हुई जा रही करवायेगा, बुरा करेंगे; अच्छा करवायेगा, अच्छा करेंगे। अब है। क्योंकि दो सत्पुरुष विपरीत बातें तो कह नहीं करना हमारा नहीं है। सकते–विपरीत कहें तो भी विपरीत कह नहीं सकते। उनकी 3951 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org