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________________ 1. जिन सूत्र भाग: 1 सापेक्ष होगी। बोलनेवाला, सुननेवाला, दोनों ही अभिव्यक्ति क्योंकि सत्य सभी विरोधों को अपने में समाये हुए है। वहां रात की सीमा बनायेंगे। भी है और दिन भी है। वहां जन्म भी है, मृत्यु भी है। तो कोई मैं वही बोलूंगा जो बोला जा सकता है। तुम वही समझोगे जो | आदमी शायद सत्य की खबर लाये और जन्म के द्वारा समझाने समझा जा सकता है। सत्य तो विराट है। की कोशिश करे। कोई सत्य की खबर लाये और मृत्यु के द्वारा अगर मैं सागर के दर्शन करने जाऊं और तुम मुझसे कहो कि समझाने की कोशिश करे। कोई सत्य की खबर लाये, राग के लौटते में थोड़ा सागर लेते आना, तो पूरा सागर तो न ला द्वारा समझाये; जैसा कि नारद ने किया: परमात्मा का राग, पाऊंगा। हो सकता है, थोड़ा-सा जल सागर का ले आऊं। परमात्मा का प्रेम, परमात्मा की भक्ति ! कोई परमात्मा की खबर लेकिन उस जल में बहुत कुछ बातें नहीं होंगी। सागर का तूफान लाये, विराग के द्वारा समझाने की कोशिश करे: जैसा महावीर ने न होगा, सागर की लहरें न होंगी। वही तो असली सागर था। किया। दोनों उसमें हैं। बड़ा विराट आकाश है। उसमें सब वह तुमुल नाद और घोर गर्जन! शिलाखंडों पर टकराती हुई समाया है। लहरें! वह उठती दूर-दूर मीलों तक फैले हुए विस्तार से भरी | तो जब भी कोई व्यक्ति अभिव्यक्त करेगा तो कुछ तो चुनेगा, लहरें! वह उफान! वह सब तो न होगा। भरकर ले आऊंगा | कहां से अभिव्यक्त करे! तो अपनी-अपनी रुझान, एक बर्तन में थोड़ा-सा सागर का जल। फिर भी थोड़ा तो होगा | अपनी-अपनी पसंद, अपना-अपना ढंग। कुछ। स्वाद लोगे तो खारा होगा। सागर जैसा उस बर्तन में क्या इसलिए सत्य की अभिव्यक्तियां विरोधाभासी भी होगी। होगा? थोड़ा खारापन का स्वाद आ जायेगा, बस। लेकिन विरोधाभासी उन्हीं को दिखाई पड़ती हैं, जिन्होंने समझा सत्य तो सागर से भी विराट है। जब हम उसे शब्दों की | नहीं। विवादास्पद उन्हीं को मालूम पड़ती हैं, जिनकी अभी चुल्लुओं में भरकर लाते हैं किसी को देने, असली तो खो जाता | आंखें केवल शब्दों से भरी हैं, और अर्थों का आविर्भाव नहीं है। थोड़ा-सा स्वाद भी पहुंच जाये, थोड़ा नमक भी तुम्हारी जीभ हुआ। पर पड़ जाये, तो बहुत! इसलिए बोलनेवाला सीमा देगा, फिर | भक्त तो भगवान के समाने जाकर अवाक हो जाता है। वाणी सुननेवाला सीमा देगा। फिर युग-युग की भाषा होगी। युग-युग | ठहर जाती है। कुछ सूझता नहीं। जब लौट आता है भगवान के के भाषा की शैली होगी, प्रचलन होगा, मापदंड होंगे। वह सब उस जगत से, तब सब सूझने लगता है; लेकिन तब तक भगवान सीमाएं देंगे। सत्य को जब भी जाना जाता है तब तो वह निरपेक्ष जा चुका। वह परम महत्ता जिसने घेर लिया था, अब नहीं है। है, लेकिन जब कहा जाता है तब सापेक्ष हो जाता है। इसलिए तो स्मृति से पकड़ने की कोशिश करता है। कई बार भक्त सभी अभिव्यक्तियां सीमित होंगी। सोचकर जाता है, अब की बार पूछ लेंगे। उन्हीं से पूछ लेंगे, . इसलिए महावीर कहते हैं, सभी अभिव्यक्तियां-स्यात! | 'कैसे तुम्हारी खबर दें?' कोई अभिव्यक्ति पूर्ण नहीं। और कोई अभिव्यक्ति पूर्ण निश्चय __ बात भी आपके आगे न जुबां से निकली। से नहीं कही जा सकती, क्योंकि पूर्ण निश्चय से कहने का तो लीजिए आए थे हम सोच के क्या क्या दिल में। अर्थ यह होगा कि इसके पार अब कहने को कुछ भी न बचा। और वहां जाकर ठिठककर खड़ा रह जाता है। साधारण प्रेम में प्रत्येक अभिव्यक्ति एक सीमा तक सच होगी और एक सीमा के तक भाषा लंगड़ाकर गिर जाती है, तो प्रार्थना की तो बात ही आगे गलत हो जायेगी। इसलिए परम ज्ञानी बड़े झिझककर क्या! वहां कोरा अवाक, आश्चर्यचकित, सन्नाटा हो जाता है। बोलते हैं। जानते हुए बोलते हैं कि जो कह रहे हैं, वह बहुत हां, जब वह महिमा बीत जाती है, जब वह महाक्षण गुजर जाता सीमित है; जो कहना था, वह बहुत असीम था। जो जाना, वह है, धूल रह जाती है रथ की उड़ती हुई पीछे-तब होश आता है। बड़ा था; जो जता रहे हैं, वह बड़ा छोटा है। तब बुद्धि लौटती है। तब थोड़ा सम्हालने की कोशिश करता है। फिर स्वभावतः अलग-अलग ज्ञानी अलग-अलग ढंग से | लेकिन तब धूल पकड़ में आती है, रथ तो जा चुका। फिर उसी | जतलायेंगे। और उनकी बातें विरोधाभासी भी मालूम पड़ेंगी, | धूल की खबर देता है। तो फिर जानता भी है कि यह भी क्या 404 ain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340118
Book TitleJinsutra Lecture 18 Dharm Aavishkar Hai Param ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size48 MB
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