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________________ धर्म आविष्कार है-स्वयं का गलत और सही की बात नहीं है-तुम्हें जो रास पड़ जाये। का मार्ग खोज लेता है। मार्गों की फिक्र छोड़ो, अपनी फिक्र ऐसी तकलीफ बनी ही रहेगी, जब तक तुम संस्कारों और अपने करो। मार्गों के लिए तुम नहीं बने हो, तुम्हारे लिए मार्ग हैं। हृदय के बीच जो विरोध है उसको ठीक से पहचानकर शास्त्रों में मत उलझो। शास्त्रों के लिए तुम नहीं हो कि तुम्हारी कुर्बानी उनके लिए हो जाये, जैसा कि हो रहा है। शास्त्रों पर 'गुणा' को अपने संस्कार छोड़ने पड़ेंगे। उसे अपने हृदय की | कुर्बान हैं करोड़ों लोग। शास्त्र तुम्हारे लिए हैं। अगर शीत-सर्दी भाषा को पहचानना पड़ेगा। नहीं तो वह तकलीफ में ही रहेगी। लगती हो, जला लो, ताप लो। शास्त्र तुम्हारे लिए हैं; नींद जो न बन पायी तुम्हारे गीत की कोमल कड़ी आती हो, तकिया बना लो। शास्त्र तुम्हारे लिए हैं; ओढ़ लो, तो मधुर मधुमास का वरदान क्या है? सर्दी लगती हो तो। शास्त्र साधन हैं, मनुष्य साध्य है। इसे ध्यान तो अमर अस्तित्व का अभिमान क्या है? में रखो, तो जो अड़चन मालूम हो रही है, वह मिट जायेगी। 'बहुत समय से आपके पास हूं...' लेकिन वह संस्कार कहां तुम नहीं आए? न आओ, याद दे दो पास होने देते हैं ? बिलकुल पास है...'गुणा' काफी दिन से फैसला छोड़ा, फकत फरियाद दे दो मेरे पास है। लेकिन संस्कार बीच में एक बड़ी सख्त दीवाल है। मति नहीं कहती, चरण का स्वाद दे दो टटोलता हूं मैं। मेरे हाथ तुम तक नहीं पहुंच पाते। तुम्हारी बस प्रहारों का अनंत प्रसाद दे दो दीवाल है। लगता है पास-पास खड़े हैं, क्योंकि यह दीवाल पारदर्शी है, शब्दों की है। पत्थर की होती तो मैं तुम्हें दिखाई भी न देख ले जग, सिसककर आराधना सुली चढ़ी पड़ता। यही तो खूबी है शब्दों की दीवाल की : पारदर्शी है, कांच जो न बन पायी तुम्हारे गीत की कोमल कड़ी की है। आर-पार दिखाई पड़ता है, इसलिए लगता है बिलकुल तो मधुर मधुमास का वरदान क्या है? पास खड़े हैं। तो अमर अस्तित्व का अभिमान क्या है? कभी तुमने खयाल किया? कांच की खिड़की के उस तरफ अगर 'गुणा' जागती नहीं, समझती नहीं, तो व्यर्थ ही समाप्त इस तरफ खड़े हो जाओ; जरा-सा कांच का फासला है, मगर होगी। किसी दिन जीवन के अंतिम पहर में उसे ऐसा ही कहना | उतना फासला काफी है। हम पास हैं, एक-दूसरे से बहुत दूर पड़ेगा हैं। अनंत फासला है। जो न बन पायी तुम्हारे गीत की कोमल कड़ी यह कांच की दीवाल तोड़ो। और अकसर ऐसा हो जाता है जो तो मधुर मधुमास का वरदान क्या है? बहुत दिन से पास हैं, वह इस भ्रांति में पड़ जाते हैं कि पास हैं। -जीवन आया और गया। व्यर्थ ही गया! कांच दिखाई ही नहीं पड़ता, धीरे-धीरे आर-पार दिखाई पड़ता गाओ, नाचो! ध्यान नहीं, प्रार्थना तुम्हारे लिए मार्ग होगा। है, बात भूल जाती है। पर कांच अभी है। मतवालापन। होश नहीं, बेहोशी तुम्हारी दवा है। 'और मैं बहत अज्ञानी और निर्बुद्धि हूं, यह आप भलीभांति तुम नहीं आये? न आओ, याद दे दो जानते हैं।' फैसला छोड़ा, फकत फरियाद दे दो बिलकुल भलीभांति जानता हूं। इसीलिए तो कह रहा हूं: मति नहीं कहती... अज्ञानी और निर्बुद्धि के लिए भक्ति मार्ग है, प्रेम मार्ग है। -बुद्धि और ज्ञान की आकांक्षा नहीं है। मति नहीं, चरण का स्वाद दे दो मति नहीं कहती, चरण का स्वाद दे दो! फैसला नहीं, फरियाद दे दो। बस प्रहारों का अनंत प्रसाद दे दो! उतना काफी है। -तो तृप्ति होगी। 'आपकी कही अनेक बातें मेरे सिर पर से गजर जाती हैं।' अपने को जिसने ठीक से पहचाना वह जल्दी ही अपनी तृप्ति जो-जो तुम्हारे काम की हैं, वह सिर पर से गुजर रही हैं। मैं 401 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340118
Book TitleJinsutra Lecture 18 Dharm Aavishkar Hai Param ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size48 MB
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