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________________ EARRAHA RESUHAATH आत्मा परम आधार है / पुरुष स्त्रियों के साथ खेल में लग गये; यह भूल ही गये कि शब्द बैठता जाता है, यह बैठता जाता है। यह तुम्हारा वचन बन गुरजिएफ को मिलने आये हैं। गुरजिएफ चुप होकर बैठ गया जाता है। फिर कल तुम जब बाजार में खरीदने जाते हो और और वह सारी रासलीला चलने लगी। तब ठीक जब वे दुकानदार पूछता है, कौन-सा टुथपेस्ट, तो तुम्हें याद भी नहीं रासलीला में बड़े डूबने के ही करीब थे, वह खड़ा हुआ। उसने रहता कि तुम होश में कह रहे हो कि बेहोशी में। तुम कहते हो, कहा, 'सावधान! मेरी तरफ देखो! सिर्फ शब्दों के आधार पर बिनाका टुथपेस्ट। और तुम यही सोचते हो कि तुमने स्वयं ही मैंने तुम्हारी बेहोशी को प्रगट कर दिया है। सिर्फ कुछ शब्द | सोचकर तय किया है। तुमने सोचकर तय नहीं किया है। यह बोलकर मैंने तुम्हारे मनों को तरंगित कर दिया है। यह स्थिति | विज्ञापित है। अखबारों में पढ़ा, दीवालों पर लिखा देखा, रेडियो देखो अपनी। तुम शब्दों के इतने गुलाम हो! और मैंने सिर्फ पर सुना, टेलीविजन पर देखा, सुंदर स्त्रियों की तस्वीरें देखीं, तुम्हारी बेहोशी दिखाने के लिए ही यह प्रयोग किया है। और मैं हंसते हुए मोतियों की तरह उनके चमकते हुए दांत देखे-और एक संस्था बना रहा हूं, जहां मैं होश सिखाना चाहता हूं; उसके | बिनाका टुथपेस्ट, और बिनाका टुथपेस्ट, और हर जगह सुंदर लिए रुपये चाहिए।' स्त्रियों की तस्वीरें देखें विज्ञापनों में। उन्होंने कहा कि मेरे पति को उसने हजारों डालर इकट्ठे कर लिये उसी क्षण। यह बात तो कौन-सी दो चीजें पसंद हैं? –'मैं और बिनाका टुथपेस्ट!' इतनी साफ थी। लोग चौंककर बैठ गये एकदम घबड़ाकर कि वे सब तरफ से शब्द की एक पर्त तुम्हारे भीतर बनायी जाती है। यह क्या कर रहे थे! भूल ही गये थे-शिष्टाचार, समाज, राजनीतिज्ञ वही करते हैं, दुकानदार वही करते हैं। एक शब्द नीति, धर्म। इस आदमी ने सिर्फ शब्दों के जाल पर...। | | बिठाया जाता है। बहुत बार दोहराने से तुम्हारे भीतर लकीरें तुमने कभी खयाल किया? पर्दे पर फिल्म में कामोत्तेजना के | खिंच जाती हैं। समाजवाद, समाजवाद, समाजवाद! धीरे-धीरे चित्र आने शुरू होते हैं, तुम कामोत्तेजित हो जाते हो! तुमने कभी धीरे-धीरे यह लकीर बैठ जाती है। जब लकीर मजबूत होकर सोचा कि धूप-छाया का खेल है? लेकिन तुम इतने उद्विग्न हो बैठ जाती है तो वही लकीर तुम्हें आंदोलित करने लगती है, तुम्हें जाते हो...! गतिमान करने लगती है। शब्दों के आधार पर, वचनों के आधार पर हम जीते हैं। कोई तुम समाज से बंधे हो शब्दों के कारण। जरा शब्दों को तुमसे कह देता है, 'बड़े प्यारे हैं आप', फूल खिल जाते हैं! हिला-डुलाकर देखो और तुम पाओगे, तुम समाज से मुक्त होने कोई जरा घृणा से देख देता है, नर्क प्रगट हो जाता है। कोई जरा लगे। हिंदू हूं, मुसलमान हूं, ईसाई हूं-क्या हैं ये? ये सिर्फ सम्मान से नहीं पूछता, मन उदास हो जाता है। कोई नमस्कार | शब्द हैं! जैन हूं, बौद्ध हूं-ये क्या हैं? सिर्फ शब्द हैं! लेकिन कर लेता है, उदास थे, उदासी खो जाती है। बचपन से दोहराया गया कि तुम जैन हो; इतनी बार दोहराया तुमने कभी देखा कि तुम कितने शब्दों के हाथ में हो? | गया है कि अब तुम्हें याद भी नहीं आता कि कब शुरू किया गया शब्द तुम्हारी बेहोशी हैं। इसको महावीर कहते हैं वचन। था दोहराना। यह विज्ञापन, यह कंडीशनिंग, यह संस्कार ऐसा इससे जागना जरूरी है। ऐसी घड़ी लानी जरूरी है कि कोई डाला गया है कि अब तुमसे कोई नींद में भी पूछे, तो भी तुम प्रशंसा करे कि निंदा, बराबर हो जाये। ऐसी घड़ी लानी जरूरी है कहोगे, जैन हूं। शराब भी पीकर सड़क पर गिर पड़े होओ और कि शब्द इतने बलशाली न रह जायें कि तुम्हारे प्राणों को | कोई हिलाकर पूछे कि कौन हो, तुम कहोगे, जैन। इतना गहरा आंदोलित कर दें, अन्यथा तुम्हारी आत्मा का क्या होगा? चला गया है! विज्ञापन की कला में कुशल जो विशेषज्ञ हैं वे इस बात को मगर यही शब्द तुम्हें आंदोलित करता है। फिर अगर कोई कह समझ गये हैं कि आदमी शब्दों से जीता है, तो शब्दों को दोहराये देता है, 'इस्लाम खतरे में है', तो तुम मरने-मारने को उतारू हो चले जाते हैं। तुम्हारे मन पर पर्ते बना देते हैं। बिनाका टुथपेस्ट, जाते हो। 'इस्लाम' एक शब्द है। शब्द सत्य नहीं है। कोई बिनाका टुथपेस्ट दोहराये चले जाते हैं। तुम शायद सोचते भी शब्द सत्य नहीं है। नहीं कि तुम्हारा कुछ बिगड़ रहा है; लेकिन तुम्हें पता नहीं है, यह शब्द के साथ संबंध को शिथिल करो। 373 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340117
Book TitleJinsutra Lecture 17 Aatma Param Adhar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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