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________________ जिन सूत्र भागः1TMETRA तो महावीर कहते हैं, शरीर के साथ संबंध को शिथिल करो, भी अर्थ नहीं है कि महावीर कहते हैं, मन को मार डालो। न, शब्द के साथ, वचन के साथ संबंध को शिथिल करो। और फिर महावीर कहते हैं, तुम अपने को शिथिल कर लो इनसे। जब धीरे-धीरे मन के साथ। | इनकी जरूरत हो, उपयोग कर लो। लेकिन जब इनकी जरूरत न शरीर से शुरू करो, क्योंकि वह स्थूलतम है; उस पर प्रयोग हो तो इनकी जकड़ न रहे। चलना है, कहीं जाना है, तो शरीर का करना आसान होगा। इसलिए महावीर की पूरी प्रक्रिया शरीर से उपयोग करना पड़ेगा। किसी से कुछ बोलना है, कहना है, तो शुरू होती है, मन पर पूरी होती है। वचन का उपयोग करना पड़ेगा। कुछ सोचना है, चिंतन करना जब तुम शरीर से मुक्त होने लगोगे तब तुम्हें दिखाई पड़ेगा है, तो मन का, मनन का उपयोग करना पड़ेगा। लेकिन यह भीतर का बंधन-वचन का। जब तुम वचन से मुक्त होने उपयोग हो। ऐसा न हो कि तुम यह भूल ही जाओ कि तुम इनसे लगोगे तब तुम्हारी आंखें इतनी साफ होंगी, पारदर्शी होंगी कि | अलग हो। और जब इनका उपयोग नहीं करना है तो तुम इनको तुम्हें मन का बंधन दिखाई पड़ेगा। और इन तीनों के पार आत्मा बांधकर एक कोने में रख सको। इतनी क्षमता बनी रहे। है। और उस आत्मा में परमात्मा छिपा है। / तुमने देखा? लोग सिनेमा-घरों में बैठे हैं, होटलों में बैठे हैं _ 'जिनेश्वर देव का यह कथन है कि तुम मन, वचन और काया और टांगें हिला रहे हैं! उनसे पूछो कि टांग किसलिए हिला रहे से बहिरात्मा को छोड़कर, अंतरात्मा में आरोहण कर, परमात्मा हो? चलते, तब सब ठीक था; चलने में टांग हिलनी चाहिए। का ध्यान करो।' मगर यहां कुर्सी पर बैठे-बैठे टांग क्यों हिला रहे हो? कहोगे तो बाहर से भीतर और भीतर से और भीतर...शरीर हमारा सेतु है वे चौंककर रोक लेंगे। वे कहेंगे, हमें कुछ याद न था। लेकिन बाहर से। वचन भी हमारा सेतु है बाहर से। मन भी हमारा सेत् | इसका यह मतलब हुआ कि शरीर के साथ संबंध ऐसा हो गया है है बाहर से। जुड़े हैं हम इस तरह। कि जब जरूरत नहीं होती तब भी टांगें हिलती जाती हैं। इसलिए तुमने देखा, गूंगा आदमी जो बोल नहीं सकता, वह नींद में लोग बड़बड़ाते हैं। पूछो, 'किससे बात कर रहे हो? समाज का हिस्सा नहीं हो पाता! जड़बुद्धि; जिसके पास मन की अब तो यहां कोई भी नहीं, अब तो चुप हो जाओ!' तो वे नींद में बहुत क्षमता नहीं है, वह अकेला रह जाता है। तुमने यह खयाल | बड़बड़ाते हैं। कोई न हो तो भी क्या हुआ; बोलने की आदत किया, इस समाज में वे ही लोग सर्वाधिक मूल्यवान हो जाते हैं | ऐसी पड़ गई है! जो शब्दों का प्रयोग करने में सर्वाधिक कुशल होते हैं! नेता हों, | मनोवैज्ञानिक कहते हैं, अगर किसी आदमी को तीन महीने के धर्मगुरु हों, कवि हों, लेखक हों—जिन लोगों की भी क्षमता | लिए एकांत-गृह में छोड़ दिया जाये जहां सब सुविधा हो, उसे वचन पर गहरी है, वे इस जगत में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो जाते वक्त पर भोजन सरककर मिल जाये मशीन के द्वारा, कोई हैं। जिनकी वचन पर पकड़ गहरी नहीं है, वे पिछड़ जाते हैं। अड़चन न हो, लेकिन बोलने को कोई न हो तो तीन सप्ताह के मनुष्य का असली समाज भाषा में है। इसलिए जो बच्चा देर | बाद उसके ओंठ हिलने लगेंगे। तीन सप्ताह तक वह तक नहीं बोलता, मां-बाप चिंतित हो जाते हैं, घबड़ा जाते हैं कि | भीतर-भीतर बात करेगा। तीन सप्ताह के बाद वह ओंठ अब बड़ा मुश्किल हुआ। क्योंकि यह बच्चा कभी सभ्य न बन | हिलाकर बात करने लगेगा। छह सप्ताह के बाद वाणी बाहर सकेगा। यह समाज का हिस्सा न बन सकेगा। यह अधूरा | आने लगेगी। नौ सप्ताह के बाद वह बड़े खुलकर बोलेगा। पड़ेगा, अकेला पड़ा रह जायेगा। इसकी कोई जीवन की यात्रा, | अकेले। और अब इस तरह बोलेगा कि जैसे किसी से बात कर गति न होगी। रहा है और कोई मौजूद है। बारहवें सप्ताह होते-होते वह ये सेतु हैं जो हमें बाहर से जोड़े हुए हैं। इन सेतुओं से मुक्त हम | बिलकुल पागल हो जायेगा। होना सीखें तो हम भीतर से जुड़ेंगे। इसका यह अर्थ नहीं है कि तुमने पागलखाने में लोग बैठे देखे हैं जो अपने से बातें कर रहे महावीर कहते हैं, तुम बोलो मत। इसका यह भी अर्थ नहीं है कि | हैं? उनको हो क्या गया है? वाणी के साथ, वचन के साथ महावीर कहते हैं, शरीर की आत्महत्या कर डालो। इसका यह | इतना ज्यादा तादात्म्य हो गया है कि अब दूसरे की मौजूदगी भी 1374 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340117
Book TitleJinsutra Lecture 17 Aatma Param Adhar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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