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________________ RAHUTNERMI उठो, जागो-सुबह करीब है। कहता है! उसने फिर वही कहा कि हे प्रभु! तू भी खूब है। जब सघन भाव! तो तुम पाओगे, सब तरफ से परमात्मा ने नये-नये जो मेरी जरूरत होती है, परी कर देता है। द्वार खोल लिये; हर तरफ से उसकी हवाएं तुम्हें छूने लगीं। एक भक्त ने कहा, 'अब सुनो! तीन दिन से भूखे हैं। क्या __हर एक जल्वा है मेरे लिए कशिश तेरी खाक जरूरत पूरी कर देता है?' हर एक सदा मुझे तेरा पयाम होती है। बायजीद हंसने लगा। उसने कहा, 'तुम समझे ही नहीं; तीन फिर हर आवाज में उसका संदेश और हर रूप में उसका रंग, दिन से भूख मेरी जरूरत थी। तीन दिन उपवास मेरी जरूरत थी। हर फूल में उसकी खुशबू...। तुम तैयार हो जाओ। और यही उसने पूरी की।' | तैयारी का ढंग है। इसे तुम चौबीस घंटे स्मरण रखो। जल्दी ही देखो, ऐसा आदमी दुख नहीं पा सकता। ऐसे आदमी को कैसे दुख भी आयेंगे, स्मरण रखना। सुख भी आयेंगे, स्मरण दुख दोगे? परमात्मा भी बड़ी उधेड़-बुन में पड़ जाता होगा ऐसे | रखना। तुम हर हालत में सभी कुछ उसी को समर्पण किये चले आदमी के साथ कि अब करो क्या! यह आदमी तो जीतने जाना। तुम कहना, सब तेरे हैं, सब तेरे भेजे हैं। और जल्दी ही लगा! यह तो छिया-छी में हाथ आगे मारने लगा। इसको दुखी तुम पाओगे, तुम्हारे जीवन में सुख-दुख की उधेड़-बुन खो गई करने का उपाय न रहा। और एक परम शांति विराजमान हो गई है-ऐसी शांति जो पृथ्वी और सुख तभी उत्पन्न होता है जब दुखी होने का उपाय नहीं रह की नहीं है; ऐसी शांति जो केवल स्वर्ग की है! जाता। अगर तुमने सुख पकड़ा और दुख छोड़ा, तो तुम धीरे-धीरे पाओगे, तुम्हारा सुख भी दुख हो जाता है। आज इतना ही। पकड़नेवाले का सुख भी दुख हो जाता है; क्योंकि वह डरता है, कहीं छिन न जाये। छिनेगा तो ही। कौन सुख स्थायी होता है? आया है, जायेगा! पानी की लहर है। न दुख ठहरता, न सुख ठहरता। जिसने पकड़ा सुख को, वह दुखी होने लगा। पहले सुख की आकांक्षा में दुखी था; अब इस भय से दुखी होगा कि छूटता, अब गया, अब गया, अब जायेगा! और जिसने दुख को स्वीकार कर लिया, वह तो दुख को भी रूपांतरित कर लेता है। सुख तो सुख है ही, वह दुख को भी सख बना लेता है। इस कीमिया को ही धर्म समझना। जुनूं हर रंग में मशरूरो-शादां खिरद! हर हाल में चींबर जबीं है। प्रेमोन्माद, जुनूं हर रंग में मशरूरो-शादा.... -वह जो पागलों की मस्ती है, दीवानों की मस्ती है, वह तो हर हाल में खुश है। खिरद! लेकिन अक्ल, बुद्धि, हर हाल में चींबर जंबी है। वह हर हाल में त्यौरी चढ़ाये हुए है। कुछ भी हो जाये, तृप्ति नहीं होती। कुछ भी मिल जाये, असंतोष बना रहता है। सौभाग्य है, अगर इस तरह की भाव-दशा में रमते जाओ। यह सिर्फ तुम्हारी कविता न हो, तुम्हारा जीवन बने! यह तुमने सिर्फ होशियारी न की हो प्रश्न पूछकर, यह तुम्हारा भाव बने! 361 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340116
Book TitleJinsutra Lecture 16 Utho Jago Subah Karib Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size38 MB
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