________________ मनुष्यो, सतत जाग्रत रहो तम्हें अपनी चाह का भी कोई पता नहीं। इस बेहोशी को तोड़ो। ठीक-ठीक साफ कर लो, क्या चाहना है, ठीक-ठीक दिशा खोज लो, कहां खोजना है? और दो ही दिशायें हैं, ज्यादा उलझन नहीं है। या तो आदमी बाहर की तरफ खोजता है या भीतर की तरफ खोजता है। बाहर की तरफ खोजकर तुमने देख भी लिया है। थोड़ा भीतर को भी मौका दो! और ध्यान रखना, सांसारिक आदमी को तो एक ही अनुभव है-बाहर की तरफ का; धार्मिक आदमी को दोनों अनुभव हैं-बाहर का भी, भीतर का भी। इसलिए धार्मिक आदमी की बात जरा गौर से सुन लेना। इसलिए महावीर की, कृष्ण की, बुद्ध की बात को जरा गौर से सुन लेना। तुम जहां खोज रहे हो वहां तो उन्होंने भी खोजा था। नहीं पाया। फिर उन्होंने वहां खोजा जहां तुमने अभी नहीं खोजा है। और वहां पाया। तो एक बार थोड़ा-थोड़ा समय, थोड़ी-थोड़ी शक्ति निकालो। तेईस घंटे संसार को दे दो, एक घंटा स्वयं के लिए बचा लो। जिस आदमी के पास अपने लिए एक घंटा भी नहीं है, उससे बड़ा दरिद्र कोई भी नहीं है। उसे ध्यान कहो, प्रार्थना कहो, जो कहना हो कहो, लेकिन एक घंटा अपने लिए बचा लो। तुम आखिर में मरते वक्त पाओगे कि बाकी तेईस घंटे व्यर्थ गये, वही एक घंटा असली बचाया हुआ सिद्ध हुआ। और वह एक घंटा तुम्हारे तेईस घंटों को जीत लेगा, हरा देगा। क्योंकि जब तुम्हें रस आने लगेगा, रसधार बहेगी, तो फिर तुम कैसे धोखा दोगे अपने को? जब असली सिक्के दिखाई पड़ने लगेंगे तो नकली सिक्कों के धोखे में तुम आओगे कैसे? तोड़ो इस बेहोशी को। और तुम्हारे बिना तोड़े कोई और तोड़ न सकेगा। उठ कि खुर्शीद का सामाने-सफर ताजा करें। -उठो! थोड़ा आत्मविश्वास जगाओ! मरहबा ऐ जज्बए-खुद ऐतबादी मरहबा वो हिला तूफां का दिल, किश्ती रवां होने लगी। आज इतना ही। 339 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org]