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________________ जिन सूत्र भाग: 1UETERESARIRI करना; जैसा कि जैन मुनियों ने समझ लिया है। अकर्म का अर्थ | मुसीबत। भारी खर्च का मामला है। तो बड़े मुनियों को छोटे यह नहीं है कि तम बस बैठ गये। क्योंकि तुम्हारे बैठने से भी | गांव तो बुला ही नहीं सकते। कोई उपाय नहीं है। क्योंकि उतना क्या होगा? खर्च कौन उठायेगा? एक संन्यासी मुझे मिलने आये। काश्मीर में एक शिविर मैंने | अब यह थोड़ा सोचना! अगर तुम खाली बैठ गये तो तुम्हारी लिया था। उसके पहले ही वे मुझसे मिलने आये थे, तो मैंने जरूरतें कोई और पूरी करेगा। लेकिन जब तक जरूरतें उनसे कहा कि अच्छा हो काश्मीर आ जायें। उन्होंने कहा, यह | हैं-और तब तक जरूरतें है जब तक जीवन है तो कर्म तो जरा मुश्किल है। चलो, मैंने कहा, जाने दो। बंबई में जहां मैं | जारी रहेगा। यह कर्म दूसरे के कंधे पर रख देने से, यह दूसरे के था, जहां वे मिलने आये थे, मैंने कहा, कल सुबह फला-फलां कंधे पर रखकर गोली चलाने से तुम बचोगे न। इसमें तुम पर जगह, कुछ मित्र ध्यान करने को इकट्ठे हो रहे हैं, वहां आ दोहरा पाप लग रहा है। तुम जो कर रहे हो वह तो कर ही रहे हो जाओ। उसने कहा, यह भी बड़ा मुश्किल है। मैंने कहा, | और इस आदमी के कंधे पर रख रहे हो। इस आदमी को भी तुम मुश्किल क्या है? मैं समझू। तो उन्होंने कहा, मुश्किल यह साधन बना रहे हो। यह भी गलत है। है—उनके साथ एक सज्जन और थे—कि मैं पैसा खुद नहीं जो करना है जरूरी, वह करना। फिर साक्षी-भाव रखना। रखता; पैसे को छूने का मैंने त्याग कर दिया है। तो टैक्सी में शरीर की जरूरत पूरी कर देनी है। जरूरत से ज्यादा की आकांक्षा बैठना पड़े, तो पैसे की तो जरूरत पड़ेगी। ट्रेन में बैठना पड़े तो नहीं करनी है। मूल जरूरत पर रुक जाना है। और जो भी हो रहा पैसे की जरूरत पड़ेगी। तो ये सज्जन को साथ रखना पड़ता है। है, उसके प्रति साक्षी-भाव रखना है। जहां इनको सुविधा हो, वहीं मैं आ सकता हूं। और कल इनको 'धीर पुरुष अकर्म के द्वारा कर्म का क्षय करते हैं। मेधावी पुरुष सुविधा नहीं है। तो मैंने कहा, यह भी बड़ा मजा हआ। पैसा तुम लोभ और मद से अतीत तथा संतोषी होकर पाप नहीं करते।' इनकी जेब में रखे हुए हो...। यह तो उलझाव और बढ़ गया। | मेधावी! महावीर उन्हीं को मेधावी कहते हैं, इंटेलीजेंट, जो तुम समझ रहे हो, तुम पैसा नहीं छूते। तुम सोच रहे हो, तुम पैसे साक्षी होने में समर्थ हैं। और मेधा मेधा नहीं। जिसको तुम से मुक्त हो गये। तुम पैसे से मुक्त नहीं हुए, इस आदमी से और मेधावी कहते हो, वह तुम जैसा ही है—मूछित। हो सकता है, बंध गये। इससे तो पैसा ही ठीक था, अपने ही खीसे में रख किसी दिशा में कुशल है। कोई तकनीक उसने सीख लिया है। लेते, अपने ही हाथ से निकाल लेते। इसके हाथ से तुम कहते हो, कोई चित्रकार है बड़ा मेधावी; क्योंकि तुम जैसा निकलवाया। काम तो तुम्हारा ही होना है। बिना पैसे के भी नहीं चित्र बनाते हो, उससे बहुत अच्छा चित्र बनाता है। लेकिन होता, यह भी तुम्हें पता है। तो यह किसको धोखा दे रहे हो जीवन का चित्र तो तुम जैसा बना रहे हो, वैसा ही वह भी बना तुम? यह तुम्हारे हाथ में ऐसी कौन-सी खराबी है या तुम्हारे हाथ रहा है। तुम कहते हो, कोई कवि है, बड़ा मेधावी। क्योंकि जो में ऐसा कौन-सा गुण है, जिसके कारण अपने हाथ को बचा रहे| तुम नहीं कह सकते, जो तुम नहीं गा सकते, वह गा देता है। हो, इसका हाथ डलवा रहे हो? तुम अगर पाप कर रहे हो तो ठीक है। लेकिन जीवन का अंतिम चित्र तो तुम्हारे जैसा ही वह कम से कम अकेले ही कर रहे थे; अब तुम इससे भी करवा रहे बना रहा है। उसमें कोई फर्क नहीं है। क्रोध तुम्हें है, उसे है। हो। तुम पर दोहरा जुर्म होगा। तुम फंसोगे बुरी तरह। तुम यह लोभ तुम्हें है, उसे है। मत्सर तुम्हें घेरता है, उसे घेरता है। मत सोचो कि तुम त्यागी हो। महावीर कहते हैं, जिसने जीवन के चित्र को और जीवन के अब जैन मुनि है। बैठ गया है दूर सिकुड़कर। वह कहता है, | गीत को सम्हाल लिया, जिसने वहां बुद्धिमत्ता का उपयोग कर हम कुछ नहीं करते। लेकिन कोई उसके लिए रोटी कमायेगा। | लिया, वही मेधावी है; बाकी सब मेधा तो कहने की मेधा है। कोई उसके लिए वस्त्र कमायेगा। लज्जते-दर्द के ऐवज दौलते-दो जहां न लूं जो बड़े जैन मुनि हैं, उनको लोग बुलाने में गांव में डरते हैं; | दिल का सकून और है, दौलते-दो जहां है और। क्योंकि उनका गांव में आने का मतलब हैः सारे श्रावकों की | सारे संसार की संपत्ति भी मिलती हो उस आदमी को जिसने 334 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.340115
Book TitleJinsutra Lecture 15 Manushyo Satat Jagrat Raho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size44 MB
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