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________________ मनुष्यो, सतत जाग्रत रहो -और फिर होता क्या है परिणाम? सिर्फ आवारा होकर | झंझटें खड़ी हो जाती थीं। भटक जाती है। तुम जरा सोचो! तुम्हारी जिंदगी की कितनी झंझटें तुम्हारे मनुष्य होना बड़ी लंबी यात्रा है। इस देश में हम कहते रहे हैं, | बोलने के कारण खड़ी हो गई हैं! घर आये, कुछ बोल दिए पत्नी चौरासी करोड़ योनियां! अनंत-अनंत काल, यात्रा करते-करते, | से। तब खयाल में नहीं था कि यह बोलने का क्या परिणाम निखारते-निखारते यह फूल खिला है, जो मनुष्य है, जिसको हम होगा। जब बोला था तो कोई भाव भी न था बुरा; लेकिन बोले, मनुष्य कहते हैं। यह मनुष्यता का फूल खिला है। और अब तुम फंसे। तुम भी बेहोश हो। तुम बेहोशी में बोल गये। पत्नी ने कर क्या रहे हो? यह गंध आवारा हुई जा रही है। यह ऐसे ही बेहोशी में सुना। उसने कुछ का कुछ सुना। लड़ने-झगड़ने पर व्यर्थ भटकी जा रही है और खोई जा रही है। इतने श्रम से जिसे खड़ी हो गई। अब तुम लाख समझाते हो कि यह मेरा मतलब न पाया है, उसे तुम ऐसे चुपचाप बेहोशी में गंवाए दे रहे हो। था, इससे क्या होता है? अब मतलब न था, यह समझाने के 'अज्ञानी साधक कर्म-प्रवृत्ति के द्वारा कर्म का क्षय होना मानते | लिए तुम कुछ बोल रहे हो, उसमें से भी पत्नी कुछ पकड़ेगी। हैं: किंतु वे कर्म के द्वारा कर्म का क्षय नहीं कर सकते। धीर पुरुष अब यह सिलसिला कहां अंत होगा? अकर्म...(संवर या निवृत्ति) के द्वारा कर्म का क्षय करते हैं। थोड़ा सोचो, तुम्हारी जिंदगी की कितनी विपदाएं कम न हो मेधावी पुरुष लोभ और मद से अतीत तथा संतोषी होकर पाप जायें, अगर तुम थोड़े चुप रहो! सोच के बोलो! अत्यंत. जरूरी नहीं करते।' हो तो बोलो। जैसे एक-एक शब्द के लिए मूल्य चुकाना पड़ेगा, 'अज्ञानी साधक कर्मप्रवृत्ति के द्वारा ही कर्म का क्षय सोचते इस तरह बोलो। तुम न केवल यह पाओगे कि तुम्हारे बोलने में हैं...।' वे सोचते हैं, कर्म को काटना है तो और कर्म करो। बल आ गया, तुम यह भी पाओगे कि तुम्हारे बोलने के कारण ज्ञानी साधक कर्म के द्वारा कर्म का क्षय नहीं मानते। अड़चनें कम हो गईं; न तुम अपने लिए पैदा करते हो, न औरों के 'अकर्म के द्वारा...' अकर्म का क्या अर्थ है? पहला—जो लिए अड़चनें पैदा करते हो। और तुम्हारे जीवन में एक प्रसाद व्यर्थ कर्म हैं उन्हें जाने दो। त्याग करने को नहीं कह रहा अभिव्यक्त होना शुरू हो जायेगा। क्योंकि जो चुप रहता है, हूँ-बोध से समझो कि व्यर्थ हैं, वे अपने से गिर जायेंगे, चले उसके पास ऊर्जा इकट्ठी होती है। बोल-बोलकर तुम उसे चुकता जायेंगे, विदा हो जायेंगे। तुम्हारा लगाव टूट जायेगा। थोड़ा | कर लेते हो। जागकर अपने जीवन-चर्या को गौर से देखते रहो: सुबह से रात | अकर्म की तरफ पहला कदम है : व्यर्थ कर्म के प्रति जागो। तक क्या कर रहे हो? उसमें क्या-क्या व्यर्थ है? तो पहले व्यर्थ | फिर, जो सार्थक बच रहे—बचेगा, कुछ तो बचेगा; क्योंकि को जाने दो। यह पहला कदम होगा कि धीरे-धीरे तुम व्यर्थ को | जब तक जीवन है, कुछ कर्म रहेगा, जीवन कर्म है—फिर जो हटा दो। और तुम नब्बे प्रतिशत व्यर्थ पाओगे। यह मैं सार्थक बचे, उसके प्रति साक्षी-भाव रखकर करो, कर्ता रहकर अतिशयोक्ति नहीं कर रहा हूं। निन्यानबे प्रतिशत पाओगे। नब्बे मत करो। ऐसे करो जैसे तुम करनेवाले नहीं हो। भूख लगी है प्रतिशत कह रहा हूं, ताकि तुम एकदम से घबड़ा न जाओ। शरीर को, तुम आयोजन कर देते हो; लेकिन तुम भूख से भी दूर एक मित्र को मैंने कहा कि तम दिन में इस तरह बोलो, जैसे कि हो, आयोजन से भी दूर हो। न तो भूख तुम्हें लगी है और न हर शब्द के लिए मूल्य चुकाना है; जैसे टेलीग्राम कर रहे हो; आयोजन तुम करते हो। तुम अकर्ता-भाव में डूबे रहते हो। तुम | जैसे एक-एक शब्द के लिए मूल्य चुकाना पड़ेगा। उन्होंने कुछ कहते हो, साक्षी हूं, देखता हूं। शरीर को भूख लगती है, रोटी दिन प्रयोग किया और मुझे आकर कहा, यह बड़ी हैरानी की बात जुटा देता हूं। प्यास लगती है, सरोवर के पास चला जाता हूं। है। तब तो दस-बीस शब्दों से ही दिन में काम हो जाता है। जहां | | लेकिन तुम अब फर्ता नहीं हो। 'हां' और 'ना' कहने से भी काम हो जाता है, वहां पहले मैं यह जो कर्ता-भाव का चला जाना है और साक्षी-भाव से, कितना बोले जा रहा था! और इसके बड़े लाभ हुए, उन्होंने जागकर, अप्रमाद से कर्म को करना है-उसको महावीर अकर्म कहा। क्योंकि कुछ गलत बोलकर, कुछ व्यर्थ बोलकर हजार कहते हैं। अकर्म का मतलब तुम यह मत समझना कि कुछ न 3331 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.340115
Book TitleJinsutra Lecture 15 Manushyo Satat Jagrat Raho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size44 MB
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