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________________ प्रेम से मुझे प्रेम है Boss गए, इतिहास न रहे। ऐसा कभी-कभी होता है, जब बहुत महावीर को पूजोगे तो मोक्ष मिल जायेगा। स्वयं को जानोगे तो प्रतिभाशाली व्यक्ति पैदा होता है तो वह चाहे बीच में पैदा हो, मोक्ष मिलेगा, महावीर की पूजा से नहीं। स्वयं को जगाओगे तो चाहे पहले हो, चाहे अंत में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता–सभी मोक्ष मिलेगा, महावीर की अनुकंपा से नहीं। कोई गुरुप्रसाद की चीजें उसके आसपास वर्तुलाकार चक्कर काटने लगती हैं। जगह जैनों के पास नहीं है। क्योंकि वे कहते हैं, सत्य अगर आज तम जिस जैन-धर्म को जानते हो, पक्का नहीं है कि किसी के प्रसाद से मिल जाये तो सस्ता हो गया। फिर तो सत्य ऋषभ का वही रहा हो, पार्श्वनाथ का वही रहा हो, नेमीनाथ का भी वस्तु की तरह हो गया; किसी ने दे दिया; उधार हो गया। वही रहा हो, जरूरी नहीं है। आज तो तुम जिस जैन-धर्म को | अपने जीवन को गलाओ। अपने जीवन को गला-गलाकर ही जानते हो, उसकी सारी रूप-रेखा महावीर ने दी है। वह सत्य ढाला जायेगा। यह सत्य कहीं बाहर नहीं है कि कोई दे दे। रूप-रेखा इतनी गहन हो गई कि अब तुम उसी बात को ऋषभ में | इसलिए यह समझ लेना जरूरी है कि महावीर को जब स्वीकार भी पढ़ लोगे, क्योंकि महावीर को तुमने समझ लिया है। किया गया चौबीसवें तीर्थंकर की तरह, तो इसीलिए स्वीकार समझो कि जो मैं तुमसे कह रहा हूं महावीर के संबंध में, जरूरी | किया गया कि उनसे ज्यादा बगावती आदमी उस समय में कोई नहीं कि महावीर उससे राजी हों। लेकिन अगर तुमने मुझे ठीक | भी न था। और भी लोग थे। और भी दावेदार थे। क्योंकि क्रांति से समझा, तो फिर मैं तुम्हारा पीछा न छोड़ सकंगा; फिर तुम जब किसी की बपौती थोड़े ही है। जब महावीर जिंदा थे तो बड़े तूफान भी महावीर को पढ़ोगे, तुम मुझे ही पढ़ोगे। जो मैं कह रहा हूं, के दिन थे भारत में; बड़ी बौद्धिक जागृति का काल था; बड़े वह तुम्हें सुनाई पड़ने लगेगा। अर्थ तुम्हारे भीतर प्रविष्ट हो जाये, शिखर पर लोग, आकाश में परिभ्रमण कर रहे थे। जैसे आज तो बाहर के शब्दों में वही अर्थ दिखाई पड़ने लगता है। अगर विज्ञान समझना हो तो कहीं पश्चिम में शरण लेनी पड़ेगी; महावीर इस क्रांतिकारी परंपरा में सबसे ज्यादा महिमावान, उस दिन अगर धर्म का कोई भी रूप समझना था, तो भारत में सबसे बड़े मेधावी व्यक्ति हुए। इसलिए उनके शब्द समझने शरण लेनी पड़ती। भारत के पास सभी धर्म की परंपराओं के बड़े जैसे हैं, विचार करने जैसे हैं, क्रांतिकारी तो अनूठे रहे होंगे; जाग्रत पुरुष थे। और उन सभी के शिष्यों की आकांक्षा थी कि वे क्योंकि जैनों के दो संप्रदाय हैं-दिगंबर और श्वेतांबर। दिगंबर चौबीसवें तीर्थंकर की तरह घोषित हो जायें। प्रबुद्ध कात्यायन तो मानते हैं, महावीर का कोई भी वचन बचा नहीं, कोई शास्त्र था, मक्खली गोशाल था, संजय विलेट्ठीपुत्त था, और भी लोग बचा नहीं। यह भी क्रांति का हिस्सा है। वे कहते हैं, कोई शास्त्र थे। अजित केशकंबली था। ये सभी बड़े महिमाशाली पुरुष थे। महावीर का वचन नहीं। ये जो वचन हैं, यह श्वेतांबरों के संग्रह लेकिन इन सबके बीच से वह जो सर्वाधिक क्रांतिकारी था, से लिये गये हैं। दिगंबरों के पास कोई संग्रह नहीं है। यह बड़े महावीर, वह श्रमणों की परंपरा में चौबीसवां तीर्थंकर बना। बद्ध आश्चर्य की बात है कि दिगंबरों ने बचाया क्यों नहीं! यह भी | भी थे। उसी गहरी क्रांति का हिस्सा है। क्योंकि अगर बचाओ शब्दों | बुद्ध की तो अलग ही परंपरा बन गई; अलग ही धर्म का जन्म को, तो आज नहीं कल वे शास्त्र बन जाएंगे। बचाओ तो शास्त्र | हुआ। लेकिन यह सोचने जैसा है कि बुद्ध की मौजूदगी में भी आज नहीं कल वेद बन जाएंगे। इसलिए दिगंबरों ने तो महावीर | क्रांतिकारियों की धारा ने महावीर को चुना था। महावीर की के वचन बचाए ही नहीं। यह शास्त्र के प्रति बगावत की बड़ी क्रांति बुद्ध से ज्यादा गहरी है। बहुत जगह बुद्ध थोड़ा समझौता अनूठी कहानी है। मानते हैं महवीर को, लेकिन कुछ शास्त्र नहीं करते मालूम पड़ते हैं; ज्यादा व्यवहारिक हैं। महावीर बिलकुल बचाया है। व्यक्तिगत, गुरु से शिष्य को कहकर जो बातें आयी अव्यवहारिक हैं। क्रांतिकारी सदा अव्यवहारिक रहा है। उसके हैं, बस वही; उनको लिखा नहीं है। | पैर जमीन पर नहीं होते, आकाश में होते हैं। वह आकाश में और इसलिए कोई भी शास्त्र महावीर के संबंध में दिगंबरों के | उड़ता है। हिसाब से प्रामाणिक नहीं है। न शास्त्र बचाया कि कहीं उसके कुछ उदाहरण के लिए समझना जरूरी है। बुद्ध के पास स्त्रियां साथ परिग्रह न हो जाए, न इस तरह के कोई आश्वासन दिये कि आयीं, दीक्षा के लिए, तो बुद्ध ने इनकार कर दिया। यह 301 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340114
Book TitleJinsutra Lecture 14 Prem se Muze Prem Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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