________________ हाहा हला प्रश्न H परंपरा-भंजक महावीर ने स्वयं को भिन्नता पैदा होती है। विरोध से दूसरे को खोजने की आकांक्षा प्राचीनतम जिन-परंपरा का चौबीसवां तीर्थंकर पैदा होती है। स्त्री-पुरुष लड़ते रहते हैं और प्रेम करते रहते हैं। क्योंकर स्वीकार किया होगा? कृपया समझाएं। | लड़ाई और प्रेम कुछ इतने विपरीत नहीं हैं। जिस पति-पत्नी में लड़ाई बंद हो चुकी हो, समझना कि प्रेम भी परंपरा की तो परंपरा है ही, परंपरा-भंजन की भी परंपरा है। मर चुका। जब तक प्रेम की चिंगार रहेगी, तब तक थोड़ा-बहुत परंपरा तो प्राचीन है ही, क्रांति भी कुछ नवीन नहीं। क्रांति उतनी झगड़ा, थोड़ी-बहुत कलह भी रहेगी। लड़ने से प्रेम नहीं मरता ही प्राचीन है जितनी परंपरा। है। लड़ना प्रेम का ही अनिवार्य हिस्सा है। इस पृथ्वी पर सब कुछ इतनी बार हो चुका है कि नया हो कैसे जैनों की परंपरा उतनी ही प्राचीन है जितनी हिंदुओं की। जैनों सकेगा? जिसको तुम नया कहते हो, वह भी बड़ा पुराना है; के पहले तीर्थंकर ऋषभ का नाम वेदों में उपलब्ध है-बड़े जिसे पुराना कहते हो, वह तो है ही। जब से परंपरावादी रहा है, सम्मान से उपलब्ध है। उस जमाने के लोग बड़े हिम्मतवर रहे तभी से क्रांतिवादी भी रहा है। जब से रूढ़िवादी रहा है, तभी से होंगे। अपने विरोधी को भी सम्मान से याद किया है। रूढ़ि को तोड़नेवाला भी रहा है। जब प्रतिमाएं बनानेवाले लोग | जिस दिन दुनिया समझदार होती है, उस दिन ऐसा ही होगा। पैदा हुए, तभी से प्रतिमाओं को तोड़नेवाले लोग भी पैदा हो तुम अपने विरोधी को भी सम्मान से याद करोगे, क्योंकि विरोधी गये। वे साथ-साथ हैं। वे अलग-अलग हो भी न सकेंगे। वे के बिना तुम भी नहीं हो सकते हो। विरोधी तुम्हें परिभाषित दिन और रात की तरह साथ-साथ हैं। | करता है। उसकी मौजूदगी तुम्हें त्वरा देती है, तीव्रता देती है, क्रांति और परंपरा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। न परंपरा जी गति देती है। उसका विरोध तुम्हें चुनौती देता है। उसके विरोध सकती है बिना क्रांति के, न क्रांति जी सकती है बिना परंपरा के। के ही आधार पर तुम अपने को निखारते हो, सम्हालते हो, जिस दिन परंपरा मर जायेगी, उसी दिन क्रांति भी मर जायेगी। मजबूत करते हो। इसे थोड़ा समझना; क्योंकि साधारणतः हम जीवन में जहां भी अडोल्फ हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है : जिस राष्ट्र विरोध देखते हैं—सोचते हैं, दोनों दुश्मन हैं। ऐसा देखना अधूरा को शक्तिशाली रहना हो, उसे शक्तिशाली दुश्मन खोज लेने है। जहां-जहां विरोध है, वहां गौर से खोजोगे तो गहराई में | चाहिए। अगर दुश्मन कमजोर होगा, तुम कमजोर हो जाओगे। पाओगे, दोनों परिपूरक हैं। विरोध भी एक भांति कि मैत्री है और जिससे लड़ोगे, वैसे ही हो जाओगे। अगर दुश्मन शक्तिशाली शत्रुता भी एक ढंग का प्रेम है। पुरुष हैं, स्त्रियां हैं उनमें प्रेम भी होगा तो उससे लड़ने में तुम शक्तिशाली होने लगोगे। मित्र तो है, विरोध भी है। विरोध के कारण ही प्रेम है। क्योंकि विरोध से कैसे भी चन लेना, लेकिन शत्र जरा सोच-समझकर चनना। 299 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org