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________________ जिन सूत्र भाग : 1 TIMERA उन ग्रामीण सरल हृदय लोगों में तकनीक तो नहीं है, तकनीक की हर एक रंजो-गम से रिहा हो गये हम। उन्हें कोई शिक्षा नहीं मिली है। लेकिन भाव की बड़ी गहनता है। अब तू जान! और असली चीज तो भाव है, तकनीक में क्या रखा है? कितने दीवाने मुहब्बत में मिटे हैं 'सीमाब' तो जो यहां मेरे पास तीव्रता से काम में लगे हैं, उनकी पीठ में जमा की जाए जो खाक उनकी तो वीराना बने। नहीं थपथपाता। उनसे तो मैं कहता हूं, यह क्या है? बंगाल के कितने प्रेमी उसके प्रेम में मिट गए हैं! जमा की जाये जो खाक पटिये भी इससे बेहतर कर लेते हैं। उनसे तो मैं यही कहे चला उनकी तो वीराना बने। एक मरुस्थल बन जाये, अगर उनकी जाऊंगा, यह भी कुछ नहीं-और-और-और-उस घड़ी तक, | राख इकट्ठी करें। उसी राख के मरुस्थल में अपनी राख को भी जहां कि करने की पराकाष्ठा आ जाये। क्योंकि जहां करने की मिला दो। पराकाष्ठा आती है वहीं अहंकार की भी पराकाष्ठा आ जाती है। गर बाजी इश्क की बाजी है और जब करना-मात्र गिर जाता है, जब तुम्हें लगता है, अब | जो चाहो लगा दो, डर कैसा? आगे करने को कुछ भी नहीं बचा और तुम बैठ जाते हो, उस गर जीत गए तो क्या कहना बैठने में ही पहली दफा परमात्म-तत्व से संबंध होता है। तुम हारे भी तो बाजी मात नहीं। नहीं होते, उस बैठने में तुम नहीं होते; उस बैठने में तुम्हारे भीतर गर जीत गए तो क्या कहना। परमात्मा ही होता है। तो महावीर हो जाता है आदमी, अगर जीत गया। 'क्या मैं कुछ भी नहीं कर पाती हूँ? कोशिश तो हर हाल हारे भी तो बाजी मात नहीं! हार गए तो मीरा पैदा हो जाती है। करती हूं कि आपकी बात समझ में आये। भक्त को अहंकार का अड़चन नहीं है, बाधा नहीं है। कुछ भी पता नहीं। कैसे क्या करूं? मेरी हिम्मत अब टूटी जा गर बाजी इश्क की बाजी है रही है।' जो चाहो लगा दो डर कैसा? बड़े शुभ लक्षण हैं। किए जाओ। गर जीत गए तो क्या कहना हिम्मत को टूट ही जाना है। तुम्हारी हिम्मत ही बाधा हारे भी तो बाजी मात नहीं। है-भक्त के लिए। समर्पण के मार्ग पर तुम्हारी हिम्मत और यह कुछ रास्ता ऐसा है प्रभु का कि जो पहुंचते हैं, वे तो पहुंच तुम्हारा बल ही बाधा है। निर्बल के बल राम! वहां तो जब तुम ही जाते हैं; जो भटकते हैं वे भी पहुंच जाते हैं। संसार के मार्ग बिलकुल निर्बल हो जाओगे, सब टूट जायेगा, उसी क्षण, उसी पर उलटी ही कथा है: जो पहुंचते हैं, वे भी नहीं पहुंचते; जो पल अनिर्वचनीय से मिलन हो जाता है। भटकते हैं, उनका तो कहना ही क्या! परमात्मा के मार्ग पर जो . मुहब्बत में तेरी गिरफ्त हो कर पहुंचते हैं, वे तो पहुंच ही जाते हैं; जो भटकते हैं, वे भी पहुंच हर एक रंजो-गम से रिहा हो गए हम। जाते हैं। इतना ही क्या कम है कि हम उसे खोजने में भटके? उसके प्रेम को तुम्हारे चारों तरफ बंधने दो, उसके प्रेम को | इतना कम है कि हमने उसे खोजना चाहा? इतना कम है कि कसने दो। उसके प्रेम की फांसी में तुम्हारा अहंकार मर जायेगा। अंधेरी रात में हमने उस दीये की आशाएं और सपने संजोए? महब्बत में तेरी गिरफ्त हो कर कैफियत उनके करम की कोई हमसे पूछे हर एक रंजो-गम से रिहा हो गए हम। जिससे खुश होते हैं दीवाना बना देते हैं। . अब तुम छोड़ो अपना रंज भी, अपना गम भी; जो तुम्हारे पास परमात्मा का प्रेम जब तुम पर बरसेगा तो दीवानगी और है उसके चरणों में चढ़ा दो! कुछ और तो है नहीं, कहां से बढ़ेगी, आंसू और बहेंगे, हृदय टूटेगा, बिखरेगा। राख हो लाओगे फूल? जो है...आंसू सही। उसके चरणों में रख दो! जाओगे तुम उस बड़े मरुस्थल में-जहां मीरा भी खो गई है, और उससे कहा दो कि चैतन्य भी खो गए हैं, जहां राबिया खो गई है, जहां कबीर, मुहब्बत में तेरी गिरफ्त हो कर नानक, रैदास खो गए हैं। उस विराट मरुस्थल में तुम भी खो 316 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340114
Book TitleJinsutra Lecture 14 Prem se Muze Prem Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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