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________________ दूसरा प्रश्न: कल आपने समझाया कि महावीर ने बड़ी पकड़कर उतारता नहीं। ऊबड़-खाबड़ जंगल पहाड़ में उतरना कुशलता से, बड़ी अहिंसा के साथ ईश्वर, पूजा, प्रार्थना, प्रेम | मुश्किल होता है। वह घाट बना देता है। वह सब व्यवस्थित कर आदि शब्दों का इनकार किया। उसके पहले भी आपने बताया देता है। ठीक जगह-जहां से दूसरा किनारा करीब से करीब है, था कि उन्होंने शरण और भक्ति का भी इनकार किया। कृपया ऐसी जगह, जहां जलधार बहुत खतरनाक नहीं है; ऐसी जगह, समझाएं कि तब उनका स्वयं एक सदगुरु, तीर्थंकर बनना व जहां जलधार छिछली है, तुम चलकर भी पार हो सकोगे; ऐसी शिष्यों को दीक्षा व आशीर्वाद देना क्या उनके ही सिद्धांत के जगह, जहां कम से कम डूबने का भय है-वह घाट बना देता विपरीत नहीं है? है। वह घाट के ऊपर सारे नक्शे रख देता है कि बाएं जाओ कि दाएं जाओ, कि कितने कदम चलने पर पानी गहरा होगा और पहली बात–महावीर तीर्थंकर हैं, सदगुरु नहीं। सदगुरु कितने कदम चलने पर दूसरा किनारा करीब आ जायेगा। वह भक्तों का शब्द है। इसलिए महावीर के लिए सदगुरु शब्द का दूसरे किनारे का वर्णन कर देता है। वह सारी बात कर देता है, उपयोग मत करना। और तीर्थंकर का बड़ा अलग अर्थ होता है। घाट निर्मित कर देता है, सारे उपकरण यात्रा के मौजूद कर देता सदगुरु का बड़ा अलग अर्थ होता है। | है-बस, वहीं छोड़ देता है। फिर तुम जाओ, यात्रा तुम्हीं को सदगुरु का अर्थ होता है जो तुम्हारा हाथ पकड़ ले; जैसे बाप करनी है। बेटे का हाथ पकड़ लेता है और ले चलता है। और बेटा अपनी तीर्थंकर सदगुरु नहीं है। तीर्थंकर से तुम्हारा कोई व्यक्तिगत सारी श्रद्धा बाप को दे देता है; वह जानता है कि हम ठीक जा रहे संबंध नहीं है। तीर्थंकर से तुम्हारा बड़ा अव्यक्तिगत संबंध है। हैं—चाहे बाप खतरे में भी जा रहा हो, भयंकर जंगल से गुजर महावीर के पास तुम जाओ तो तुम्हारा जो प्रेम महावीर के प्रति है रहा हो। बाप डरता हो तो डरता रहे, बेटा मस्ती से चलता है। वह एकतरफा है। तुम्हारा होगा। महावीर तो कहते हैं, उसे भी बाप के हाथ में हाथ है, अब और क्या चाहिए! बेटा आनंदित छोड़ो, क्योंकि वह भी बंधन बनेगा। महावीर का तो बिलकुल होकर देखता है जंगल। वह हजार प्रश्न उठाता है। बाप कहता नहीं है। तुम भला अपनी कल्पना से सोचते होओ कि हम दीवाने है, चुप रहो! बाप घबड़ा रहा है। बाप अकेला है। बेटे को क्या हैं महावीर के, लेकिन महावीर तुम्हारे दीवाने नहीं हैं। तुम चले फिक्र है। जब बाप साथ है तो सब बात हो गई। जाओगे तो वे बैठकर रोएंगे नहीं कि कहां खो गया। सदगुरु का अर्थ होता है: समर्पण किसी के प्रति; उसके हाथ भक्त और सदगुरु की बात अलग है। जीसस ने कहा है: में हाथ दे देना, बस। फिर भक्त कहता है, अब हम छोटे बच्चे सदगुरु ऐसा है...वह धारणा है पैगंबर की, सदगरु की, कि जैसे की तरह हो गए; अब तुम्हें जहां ले चलना हो ले चलो; हम गडरिये की कोई भेड़ भटक जाये। सांझ हो गई, सारी भेड़ें आ शिष्य हो गए। | गईं, लेकिन एक भेड़ जंगल में भटक गई, तो सारी भेड़ों को 'तीर्थंकर का बड़ा अलग अर्थ है। तीर्थकर तुम्हारे हाथ को खतरे में छोड़कर वह उस एक भेड़ की तलाश में जाता है। वह अपने हाथ में नहीं लेता। तीर्थंकर तुम्हें सहारा नहीं देता। जंगल में उतरता है फिर अंधेरी रात में, चिल्लाता है, पुकारता है। तीर्थंकर शब्द का अर्थ होता है: तीर्थ बनानेवाला, घाट जब भेड़ को खोज लेता है तो उसे कंधे पर रखकर लौटता है। बनानेवाला। नदी के किनारे घाट बना देता है, फिर जिसकी मौज | भटकी भेड़ को कंधे पर रखकर लौटता है। और भटकी भेड़ के हो उस घाट से उतर जाये। लेकिन वह तुम्हें इस नाव में बिठाकर लिए जो भेड़ें साथ थीं, उनको खतरे में छोड़ जाता है। इस बीच ले नहीं जाता। वह माझी नहीं है। वह तुम्हें नाव में बिठाकर उस | जंगली जानवर हमला भी कर सकते हैं! पार नहीं ले जाता, न वह तुम्हारा हाथ पकड़कर नदी में तैराता है। यह ईसाइयों की मसीहा की धारणा है, सदगुरु की। उसका वह सिर्फ घाट बना देता है। संबंध वैयक्तिक है। वह तुम्हारी तरफ व्यक्तिगत ढंग से तीर्थ का अर्थ होता है: घाट। तीर्थंकर का अर्थ होता है | सोचता-विचारता है। तीर्थंकर निर्वैयक्तिक है। वह सिर्फ जिन्होंने घाट बनाये। तो सुगम कर देता है उतरना, लेकिन हाथ | सिद्धांत बता देता है। वह कहता है, दो और दो चार होते हैं, तुम 306 ain Eucation International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340114
Book TitleJinsutra Lecture 14 Prem se Muze Prem Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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