________________ - जिन सूत्र भागः 1 MARRHERI कोई वर्षा नहीं होती तो कसूर किसका है, उत्तरदायित्व | सबको मरना भी पड़े तो भी उचित है। मेरे सुख के लिए अगर किसका है? | सबको दुखी भी होना पड़े तो भी ठीक है। क्योंकि मैं साध्य हूं, * 'क्रोध, प्रीति को नष्ट करता है...।' और सब साधन हैं। सबके कंधों पर मेरे पैर रखने पड़ें मझे और अगर तुम्हारे जीवन में प्रेम नहीं है तो जानना कि क्रोध सबके सिरों से मुझे सीढ़ियां बनाकर चढ़ना पड़े राजमहलों तक, होगा-चाहे बहुत-बहुत करने की वजह से तुम्हें याद भी न चढूंगा। क्योंकि और सब सीढ़ियां होने को ही बने हैं। आती हो अब, ऐसे रग-पग गये होओ क्रोध में कि अब तुम्हें अहंकारी अपने को अस्तित्व का केंद्र मान रहा है। विनम्र का पहचान भी नहीं पड़ता कि क्रोध है। किसी क्रोधी को कहो। वह | क्या अर्थ है ? विनम्र कहता है: मैं कैसे केंद्र हो सकता हूं? मैं फौरन कहता है, 'कौन कहता है, मैं क्रोध में हूं? मैं क्रोध में नहीं नहीं था, तब भी अस्तित्व था। मैं नहीं हो जाऊंगा, तब भी हूं।' क्रोधी भी यही कहे चला जाता है, मैं क्रोध में नहीं हूं। तुम अस्तित्व होगा। मेरे होने न होने से क्या फर्क पड़ता है? एक भी जब क्रोध में पकड़े जाते हो तो तुम स्वीकार नहीं करते कि मैं | तरंग हूं माना, मैं भी एक लहर हूं इस विराट की, पर बस एक क्रोध में हूं। क्रोध को कोई स्वीकार ही नहीं करता और प्रेम की लहर हूं। विराट सत्य है। मेरा होना तो एक सपना है; रात लोग मांग किये जाते हैं। देखा, सुबह खो जायेगा। यह मेरा होना कोई ठोस पत्थर की अगर क्रोध है तो स्वीकार करो, क्योंकि स्वीकार निदान तरह नहीं है, पानी की लकीर है। बनेगा। क्रोध है तो स्वीकार करो कि है, तो मिटाने का कोई तो विनम्र सीख पाता है जीवन के सत्यों को। और अंततः उपाय हो सकता है। जिसे तुम स्वीकार ही न करोगे, उसे | परमात्मा को भी सीख पाता है, क्योंकि उसने पहली शर्त पूरी कर मिटाओगे कैसे? और अगर प्रेम न हो तो महावीर का सूत्र यह दी। उसने झूठ को अंगीकार न किया। उसने सत्य से ही कह रहा है: अगर तुम्हारे जीवन में प्रेम न हो तो निश्चित जानना शुरुआत की। सत्य से शुरुआत हो तो सत्य पर अंत होता है। कि क्रोध है, चाहे तुम्हें पता चलता हो न पता चलता हो, पुरानी असत्य से ही शुरुआत हो जाये, तो फिर सत्य कहां मिलेगा? आदत हो, मजबूत आदत हो, खून में घुल-मिल गई हो, क्रोध | फिर तो असत्य बढ़ता चला जायेगा। तुम्हारा स्वभाव जैसा हो गया हो कि अब तुम्हें याद भी न आता अहंकारी धीरे-धीरे मद में चूर होता जाता है। आंखें देखने की हो कि अक्रोध क्या है, तो भेद करना मुश्किल हो गया क्षमता खो देती हैं। बोध विलुप्त हो जाता है। एक तंद्रा और हो लेकिन अगर जीवन में प्रेम न हो तो क्रोध है। निद्रा में जीता है। 'क्रोध, प्रीति को नष्ट करता है। मान, विनय को नष्ट करता 'मान, विनय को नष्ट करता है...।' और अगर तुम्हारे है...।' जीवन में विनम्रता न हो तो तुम जान लेना कि कहीं अहंकार का अहंकार, तुम्हारी विनम्रता को नष्ट कर देता है। और विनम्रता शत्रु घात लगाये छिपा बैठा है। नष्ट होती है, बड़ा बहुमूल्य कुछ तुम्हारे भीतर समाप्त हो जाता | 'माया, मैत्री को नष्ट करती है...।' कपट, छल-छिद्र मैत्री है। सीखने की क्षमता खो जाती है। विनम्र सीखने में सक्षम होता को नष्ट करता है। मैत्री का अर्थ ही होता है कि तुम किसी के है। विनम्र खुला होता है। विनम्र तत्पर होता है। कुछ भी नया साथ ऐसे हो जैसे अपने साथ। मैत्री का अर्थ होता है तुम्हारे आये, उसके द्वार बंद नहीं होते। और विनम्र जीवन के सत्य को और मित्र के बीच कोई रहस्य नहीं, कोई छुपाव नहीं, कोई दुराव पहचानता है कि मैं एक खंड मात्र हूं इस विराट का। नहीं। मैत्री का अर्थ होता है : तुम अपने को अपने मित्र के सामने अहंकारी एक बड़ी भ्रांति में जीता है। अहंकारी की भ्रांति यह है बिलकुल नग्न करने में समर्थ हो। तुम जानते हो, तुम्हें भरोसा है कि जैसे मैं केंद्र हूं सारे विश्व का, जैसे सब मेरे लिए हैं और मैं प्रेम का। तुम जानते हो कि तुम जैसे हो, तुम्हारा मित्र तुम्हें किसी के लिए नहीं; जैसे सब मेरे साधन हैं और मैं साध्य हूं। स्वीकार करेगा। उसका प्रेम बेशर्त है। अगर मित्र से भी तुम्हें अहंकार को अगर हम ठीक से समझें तो उसका अर्थ होता है | कुछ छिपाना पड़ता हो, तो तुम मित्र को भी शत्रु मान रहे हो। सारा जगत साधन है और मैं साध्य हं। मेरे जीवन के लिए अगर | मैक्यावली ने लिखा है...। ठीक महावीर से उलटा है 2361 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org