________________ BBORANASS अध्यात्म प्रक्रिया है जागरण की खुद ही चक्कर लगाकर किताबों की दुकानों पर जाता था खोजी जीवन की रत्ती-रत्ती का होश रखता है। सब चीजें बड़ी पूछने-'जार्ज बर्नार्ड शा की किताब है?' दुकानदार पूछता, हैं। वही करता है जो करना जरूरी है। उसी तरफ जाता है जहां 'कौन जार्ज बर्नार्ड शा?' जाना जरूरी है। व्यर्थ को काटता है, ताकि सार्थक ही बचे। जो ...अरे! तुम्हें जार्ज बर्नार्ड शा का पता नहीं? क्या खाक नहीं करना है, उसे नहीं ही करता है। खिलवाड़ नहीं करता किताबों का धंधा करते हो? इस-इस नाम की किताब छपी जिंदगी के साथ। है।' ऐसा वह खुद ही दुकानों पर चक्कर लगाता। पता बता जिंदगी उसकी एक साधना है, एक उपक्रम है, एक सोपान है। आता उनको। तरकीब से समझा आता। और जब उसने अपने उसकी जिंदगी में एक दिशा है। वह कहीं जा रहा है। मित्रों को भी कह दिया कि तुम जब निकलो कहीं से, कोई विशेष अगर ऐसे तुम सब दिशाओं में भागते रहे, तो तुम कहीं भी न रूप से जाने की जरूरत नहीं, लेकिन रास्ते में अगर किताब की पहुंचोगे। अगर तुम कहीं नहीं पहुंचे हो तो कारण तो खोजो! दुकान पड़ जाये, इतनी कृपा मुझ पर करना, पूछ लेना-जार्ज | कारण यही है कि दो कदम चलते हो बायें तरफ, फिर दिल बदल बर्नार्ड शा की फला-फलां किताब है? कई ग्राहक आने लगे, गया; फिर दो कदम चलते हो दायें तरफ, तब तक फिर दिल रोज आने लगे-कि है कौन जार्ज बर्नार्ड शा?' दुकानदारों ने बदल गया। तुम्हारा दिल है कि पारा है? छितर-छितर जाता पता लगाया, किताबें खरीदकर लाये। जार्ज बर्नार्ड शा ने कहा, | है। जितना पकड़ो उतना ही छितरता जाता है। सब दिशाओं में ऐसे मेरी किताबों का बिकना शुरू हुआ। बिखर जाता है। ऐसे तुम बिखर गये हो। इस बिखरेपन के चीज होनी चाहिए, फिर चीज के आसपास कांटा, कांटे के कारण ही आत्मा का तुम्हें कोई अनुभव नहीं होता। आसपास आटा होना चाहिए। फिर कोई न कोई फंस जायेगा। महावीर कहते हैं, छोटे को छोटा मत जानना। छोटा बड़ा हो संसार बड़ा मूढ़ है। तुम जरा जागो! जाता है। इसलिए जिससे बचना हो, उसके बीजारोपण के पहले महावीर का इतना ही प्रयोजन है कि तुम जरा जागो, अन्यथा | ही जागना। ऐसे तो यह रास्ता बड़ा ही होता चला जायेगा। इसका कोई अंत 'क्रोध प्रीति को नष्ट करता है। मान विनय को नष्ट करता है। न होगा। माया मैत्री को नष्ट करती है। लोभ सब कुछ नष्ट करता है।' अजल से गर्म-सफर हं, मगर मझे अब तक कोहो पीइं पणासेइ, माणो विणयनासणो। बिछुड़ गया था मैं जिससे वोह कारवां न मिला। माया मित्ताणि नासेइ, लोहो सव्वविणासणो।। तुम अपने स्वभाव से छूट गये हो। संयोग में उलझ गये हो। 'क्रोध प्रीति को नष्ट करता है...।' बिछड़ गया था मैं जिससे वोह कारवां न मिला! अब लोग हैं, प्रेम चाहते हैं। कौन है जो नहीं चाहता! ऐसा अजल से गर्मे-सफर हूं, मगर मुझे अब तक आदमी खोजा, ऐसे प्राण तुमने कभी पाये जो प्रेम न मांगते हों? -शुरू से, जगत के प्रारंभ से खोज रहा हूं अपने को-और सभी तो प्रेम के भूखे हैं। निरपवाद रूप से सभी प्रेम के लिए मिल नहीं पाता हूं। क्योंकि और दूसरी चीजें बीच में मिल जाती | प्यासे हैं। फिर प्रेम खो कहां गया है? जहां सभी लोग प्रेम हैं जो अटका लेती हैं। कभी धन, कभी पद, कभी प्रतिष्ठा, कभी चाहते हैं और जहां सभी लोग सोचते हैं कि प्रेम दें, वहां प्रेम के यश, कभी रूप, कभी रंग, कभी शब्द, कभी गंध-इंद्रियों के फूल खिलते दिखायी नहीं पड़ते। प्रेम खो कहां गया है? तो हजार जाल हैं! कोई न कोई मिल जाता है। अपने घर तक पहुंच महावीर कहते हैं, प्रेम प्रेम की बात करने से क्या होगा? क्रोध, ही नहीं पाते। कोई न कोई अटका लेता है। प्रीति को नष्ट करता है। तुम क्रोध के बीजों को तो जगह देते जाते ध्यान रखना, कोई तुम्हें अटकाता नहीं। तुम अटकने को तैयार हो और प्रेम की पुकार और गुहार मचाये रखते हो। चिल्लाते ही बैठे हो। कोई न भी अटकाये, तो भी अटकने की कोई रहते हो, प्रेम, प्रेम, प्रेम और क्रोध के बीज पनपाये जाते हो! तरकीब खोज लोगे। बोते हो जहर, अमृत की मांग करते रहते हो! फिर अगर जहर छोटे को छोटा मत मानना। सब चीजें बड़ी हैं। सत्य का का झाड़-झंखाड़ तुम्हारे जीवन को भर देता है और अमृत की 2351 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibray.org