________________ जिन सूत्र भाग : 1 खून, हड्डी, मांस का हिस्सा है। लेकिन राजनीतिज्ञ इसी भीड़ में उत्सुक हैं। और जिन्हें तुम धर्म जब घटता है तो नितांत वैयक्तिक है। राजनीति सामहिक | धर्मगुरु कहते हो, वे भी इसी भीड़ में उत्सुक हैं; क्योंकि भीड़ में है। जहां धर्म समूह बनता है, वहां राजनीति हो जाती है। मेरी बल है। जितनी बड़ी भीड़ तुम्हारे पास इकट्ठी होती है, उतने तुम राजनीति में कोई उत्सुकता नहीं। मेरी उत्सुकता व्यक्तियों में है, बलशाली हो जाते हो। लेकिन बलशाली होने की आकांक्षा तो समूहों में नहीं। अहंकार की ही यात्रा है। यहां भी तुम बैठे हो, तो मैं एक-एक से बात कर रहा हूं, समूह निर्बल के बल राम। मैं तो तुम्हें सिखाता हूं: निर्बल हो से नहीं। मेरी नजर तुम पर है—एक-एक पर। तुम्हारी भीड़ से जाओ। कोई ताकत तुम्हारे पास न हो, न पद की, न धन की, न मेरा कुछ लेना-देना नहीं है। मत की। कोई सहारा तुम्हारे पास न हो, तुम बिलकुल बे-सहारे एक मित्र ने पूछा है कि 'सत्य साईंबाबा की सभा में हजारों हो जाओ। जब तुम बिलकुल बे-सहारे हो तब तुम्हें परमात्मा का लोग होते हैं। पांडुरंग महाराज की सभा में हजारों लोग होते हैं। सहारा मिलता है। जब तक तुम्हारा अपना कोई सहारा है, डोंगरे जी महाराज की सभा में हजारों लोग होते हैं। आपकी सभा परमात्मा को सहारा देने की जरूरत भी नहीं है। में थोड़े-से लोग क्यों होते हैं?' __ सुना है मैंने, कृष्ण भोजन को बैठे हैं बैकुंठ में। अचानक बीच मैं आश्चर्यचकित होता हूं कि इतने भी क्यों हैं! इतने भी होने | थाली से उठ पड़े। भागे द्वार की तरफ। रुकमणि ने कहा, 'कहां नहीं चाहिए हिसाब से। जो मैं कह रहा हूं वह इतनों को भी पट जाते हैं?' लेकिन इतनी जल्दी में थे, जैसे घर में आग लग गई जाता है, यह भी आश्चर्य की बात है। और ऐसा नहीं है कि भीड़ हो, कि उत्तर भी न दिया; लेकिन फिर द्वार पर रुक गए, वापिस मेरे पास नहीं थी। भीड़ मेरे पास भी थी। मैंने सारे रास्ते उसके | लौट आए। कुछ उदास मालूम पड़े। रुकमणि ने पूछा, 'क्या लिए बंद कर दिए। वे हजारों लोग मेरे पास भी थे। लेकिन मैंने | हुआ? कुछ समझ में न पड़ा। अचानक भागे। कौर भी जो हाथ पाया, वह हजारों लोगों का मनोरंजन होगा। उनके जीवन में कोई | में लिया था, पूरा न लिया, उसे भी छोड़ दिया। मैंने पूछा तो क्रांति की आकांक्षा न थी। जलसा था, तमाशा था। क्रांति की | जवाब न दिया। फिर लौट क्यों आए?' आकांक्षा भीड़ में नहीं है। भीड़ को मैंने छोड़ा। अब तो हर तरह - कृष्ण ने कहा, 'मेरा एक प्यारा एक राजधानी से गुजर रहा है। के मैंने उपाय किए हैं कि भीड़ का आदमी पहुंच ही न पाए। सब मेरा एक फकीर एकतारा बजाता, गीत गाता। लोग उस पर तरह के द्वार-दरवाजे बिठा दिए कि भीड़ को आने ही न दिया पत्थर फेंक रहे हैं। लहूलुहान, खून उसके माथे से बह रहा है। जाए। वे ही थोड़े-से लोग जो सच में रूपांतरित होना चाहते हैं, लेकिन उसका गीत बंद नहीं होता। वह कृष्ण और कृष्ण की धुन मेरे पास तक पहुंच पाएं। अन्यों में मेरा रस नहीं है। लगाए जाता है। जाना जरूरी हो गया। इतना असहाय, उत्तर भी . इसलिए इतने तुम हो यहां, यह चमत्कार है। तुम गणित के नहीं देता ! पत्थर भी नहीं उठाता। वीणा भी बजे जा रही है। वह सब नियमों को तोड़कर यहां हो। गीत भी गुनगुनाए जा रहा है, खून भी बहा जा रहा है। जिसने भीड़ को इकट्ठा कर लेने से सस्ता कोई काम दुनिया में और इतना मुझ पर छोड़ा, मैं बैठकर भोजन करूं? तो भागा।' है? भीड़ की मूढ़ता को समझो। जहां भीड़ है वहां एक बात रुकमणि ने कहा, 'ठीक! यह समझ में आता है। यह गणित पक्की हो जाती है कि कुछ गलत चल रहा होगा। ठीक के साथ साफ है। फिर लौट क्यों आए?' कृष्ण ने कहा, 'जाने की तो भीड़ हो ही नहीं पाती। इतने लोग कहां कि जहां ठीक चलता जरूरत न रही। जब तक मैं द्वार तक पहुंचा, उसने एकतारा तो हो वहां भीड़ हो जाए? इतने आदमी कहां? नाममात्र के आदमी फेंक दिया है, पत्थर उठा लिया। अब वह खुद ही उत्तर दे रहा हैं। रास्ते पर दो आदमी लड़ रहे हों तो भीड़ इकट्ठी हो जाती है। है; अब मुझे कुछ उत्तर देने की जरूरत न रही।' एक-दूसरे को गाली-गुफ्ता कर रहे हों तो भीड़ इकट्ठी हो जाती धार्मिक व्यक्ति अपने को असहाय करता जाता है। असहाय है। हजार जरूरी काम छोड़कर वहां खड़े हो जाते हैं। इस भीड़ हो जाने में ही उसकी पूजा, उसकी प्रार्थना है। वह धीरे-धीरे को इकट्ठा करके भी क्या होगा? अपने सब सहारे तोड़ता जाता है। वह अपने को एक ऐसे सागर हाहा ain Eucation International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org