________________ SEIAS / जिंदगी नाम हे रवानी का निजी है, वैयक्तिक है। एक-एक जाता है उसकी तरफ, पंडे-पुरोहित हैं-बातें धर्म की हैं; भीतर अगर थोड़ा गहरे अकेला-अकेला जाता है। और जब भी कोई जाता है तो भीड़ उतरोगे, राजनीति पाओगे। संसार की दौड़ है, पद की, प्रतिष्ठा को छोड़कर जाना पड़ता है; क्योंकि भीड़ चलती है राजपथ पर, की, संपदा की, साम्राज्य की। ईसाइयत चाहती है, सारे संसार चौड़े सीमेंट-पटे पथ पर, सुरक्षित। और परमात्मा बड़ा जंगली पर छा जाए। परमात्मा पाने में उतना रस नहीं है, जितना संसार है। परमात्मा अभी भी सभ्य नहीं हुआ, सौभाग्य है कि सभ्य | पर छाने में रस है। इस्लाम चाहता है, सारी दुनिया को नहीं हआ। परमात्मा अभी भी सरल और प्राकृतिक है। मुसलमान बना ले। तलवार के बल तो तलवार के बल सही। तो जिसे परमात्मा को खोजना है उसे सरल और प्राकृतिक होना चाहे काटने पड़े लोग, लेकिन उनके हित में उन्हें काटना ही पड़ता है। उसे उतरना पड़ता है राजपथ से, अपनी पगडंडी पड़ेगा! जलाने पड़ें गांव, बस्तियां उजाड़नी पड़ें; लेकिन आदमी खोजनी पड़ती है झाड़-झंखाड़ में, काटों-भरे रास्ते पर। न कोई को मुसलमान बनाना ही पड़ेगा! मार्गदर्शक, न कोई हाथ में नक्शा, न कोई किताब-अकेले, यह क्या पागलपन है? आदमी आदमी होने से पर्याप्त है। सिर्फ जीवन पर भरोसा! उसे हिंदू और मुसलमान और ईसाई बनाने की कोई जरूरत नहीं मैं तुम्हें जीवन पर भरोसा दे रहा हूं और सारे भरोसे छीन रहा है। लेकिन सब राजनीतियां हैं। हूं। तुम्हारे और सारे भरोसों ने तुम्हें नपुंसक बना दिया है। इधर हिंदू परेशान रहते हैं। मेरे पास आ जाते हैं लोग। वे तुम्हारा आत्मविश्वास खो गया है। जीवन पर तुम्हारी श्रद्धा खो कहते हैं, 'आप कुछ करिए ! ईसाई मिशनरी हिंदुओं को ईसाई गई है। बना रहे हैं।' मैं उनसे कहता हूं, अगर वे जितने अच्छे आदमी मैं कहता हूं, एक ही श्रद्धा करने योग्य है और वह जीवन की पहले थे उससे अच्छे आदमी ईसाई होकर हो रहे हैं, तो क्या हर्जा श्रद्धा है। तुम यह मानकर चलो कि जिसने तुम्हें जन्माया है, जो | है? हां, अगर जैसे पहले थे, उससे बुरे हो रहे हैं तो कुछ करें। तुम्हारे भीतर जन्मा है, वह तुम्हें मंजिल की तरफ भी ले जाएगा। अगर वे वैसे के वैसे ही रह रहे हैं, जैसे हिंदू थे वैसे ईसाई होकर तुम सुनो उसकी, गुनो उसकी। डरो मत। भीड़ को मत पकड़ो। रहेंगे, तो क्या चिंता है? होने दो! इससे क्या फर्क पड़ता है? जो तुम्हें यहां तक ले आया है, वह वहां भी पहुंचा देगा। लेकिन नहीं, लेकिन वे कहते हैं, फर्क पड़ता है, हमारी संख्या कम डर के कारण हम भीड़ से चिपटते हैं। अगर तुम हिंदू नहीं हो, होती जाती है। संख्या कम होती है तो राजनीति में बल कम होता जैन नहीं हो, मुसलमान नहीं हो तो तुम्हें डर लगेगा, तुम हो | चला जाता है। संख्या कम होती है तो मत कम हो जाते हैं। कौन! कोई सहारा चाहिए, कोई नाम-पट चाहिए, कोई | अगर ऐसा ही होता रहा तो ईसाइयों का राज्य हो जाएगा। गौर से व्याख्या-परिभाषा चाहिए। हिंदू होने से लगता है, मैं कुछ हूं। देखो तो धर्म के भीतर तुम राजनीति छुपी पाओगे। हिंदू कहता मुसलमान होने से लगता है, मैं कुछ हूं। शुद्र, ब्राह्मण, क्षत्रिय | है. हिंद धर्म को बचाना है। धर्म से कुछ लेना देना नहीं-हिंद होने से लगता है, मैं कुछ हूं। त्याग किया, मंदिर गए, पूजा राजनीति को बचाना है! ईसाई कहता है, ईसाइयत को फैलाना की—लगता है, मैं कुछ हूं। | है। ईसाइयत से क्या लेना देना है? ईसा से क्या ईसाइयत का मैं तुम्हें यहां सिखा रहा हूं कि तुम कुछ भी नहीं हो, परमात्मा | संबंध रहा है। वह यह कह रहा है, अपनी राजनीति को फैलाना है। तुम हो ही नहीं, तुम जगह दो। तुम जगह खाली करो। तुम है, अपने साम्राज्य को, शक्ति को फैलाना है। कोई भी बहाना सिंहासन पर बहत बैठ चुके हो, उतरो। तो मेरी पुकार तो केवल हो, आदमी राजनीति में डूबा है। उनके लिए है, जो अतिदुस्साहसी होंगे। धर्म आत्यंतिक साहस ध्यान रखना, जहां तुम्हारा भीड़ में रस हुआ, वहां राजनीति है--कमजोरों का रास्ता नहीं। इसलिए कमजोर धर्म के नाम पर | आई। तुम अपने में रस लो। धर्म नितांत वैयक्तिक घटना है। भी राजनीति चलाते हैं। हिंदू हैं, मुसलमान हैं, जैन हैं, ईसाई हैं, परमात्मा घटेगा तुम्हारे अंतर्तम में, तुम्हारे एकांत में। किसी को ये सब राजनीतियां हैं। नाम धर्म के हैं; पताकाएं धर्म की कानों-कान खबर भी न होगी। तुम्हारी पत्नी भी पास होगी, उसे हैं-भीतर राजनीति है। चर्च हैं, मंदिर हैं, पुजारी हैं, | भी पता न चलेगा। तुम्हारे बेटे को पता न चलेगा, जो तुम्हारा ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org