________________ जिन सूत्र भागः1 जो तेरी रहगुजर में गुजरी है। बस इतना ही तुम खयाल रखना, तुम्हारी तरफ से पूरा हो, एक दफा पहुंचकर पता चलता है कि और सब प्रामाणिक हो, तुम्हारी तरफ से हार्दिक हो—फिर यह न होगा कि खुशबुओं के सफर में गुजरी है मैं न जानूं। जो भी हो रहा है, मैं जानता रहूंगा। चांदनी के नगर में गुजरी है। तुम्हारी प्रार्थना जरूरी नहीं कि पुरी करूं, क्योंकि तुम तो जल्दी भीख है-और सब भीख है—चाहे खुशबुओं का रास्ता हो, ही घबड़ा जाते हो। तुम कहते हो, अब मत रुलाओ, अब बहुत चाहे चांद की नगरी हो। हो गया! तुम तो कहते हो, अब मत जलाओ, अब बहुत हो ...बाकी जिंदगी है वही। गया! तुम तो जल्दी ही उकता जाते हो, जल्दी ही घबड़ा जाते जो तेरी रहगुजर में गुजरी है। हो। मेरा उपयोग ही यही है तुम्हारे साथ कि तुम्हें हिम्मत बंधाऊं, जो परमात्मा को खोजने में गुजरी है, वही जिंदगी है। बाकी | कि बस थोड़ी दूर और, ज्यादा नहीं चलना है। जिंदगी का नाममात्र है। बुद्ध एक बार एक गांव के पास से गुजरे, दूसरे गांव जा रहे तो एक तरफ से तो तुमसे कहता हूं, सब गंवाना होगा। लेकिन थे। गांव में लोगों से पूछा, कितनी दूर है? गांव के लोगों ने धन्यभागी हैं वे जो गंवाने को राजी हैं। क्योंकि वे ही सभी कुछ कहा, यही कोई दो कोस। फिर कोई दो कोस चल चुके जंगल पाने के अधिकारी हो जाते हैं। एक तरफ से तो लगेगा, तुम खोने में। लकड़हारा आता था, उससे पूछा कि भई दूसरा गांव कितनी लगे; दूसरी तरफ से तुम पाओगे, पाने लगे। दर? उसने कहा, बस यही कोई दो कोस। बुद्ध मुस्कुराए। खोया हुआ-सा रहता हूं अक्सर मैं इश्क में आनंद जरा क्रोध में आ गया। उसने कहा, गांव के बदतमीज या यूं कहो कि होश में आने लगा हूं मैं। बेईमान लोग! दो कोस हम चल भी चुके और अभी भी दो कोस संसार छूटने लगेगा सत्य मिलने लगेगा। जुआरी चाहिए। है, यह कहता है! अपने को दांव पर लगानेवाले चाहिए। अगर तुमने अपने को फिर कोई दो कोस चल चुके, अब तो सांझ भी होने लगी, दांव पर लगा दिया तो तुम फिक्र मत करो। तुमने अगर संबंध | सूरज भी ढलने लगा और एक आदमी से पूछा, तो उसने कहा, बनाने की हिम्मत कर ली है तो कुछ उत्तरदायित्व मेरा भी है। जब यही कोई दो कोस, बस अब पहुंचते ही हैं। आनंद ने कहा कि तुम मुझसे जुड़ते हो, तुम अकेले ही थोड़े ही जुड़ रहे हो; मैं भी इस तरह के झूठ बोलनेवाले लोग मैंने कभी नहीं देखे। यात्रा तुमसे जुड़ रहा हूं। इतना ही खयाल रखना कि 'तुम मुझसे जुड़े करते जिंदगी हो गई! हो?' कहीं ऊपर-ऊपर तो नहीं है बात? कहीं कहने भर की तो बुद्ध ने कहा, ये झूठ बोलनेवाले लोग नहीं हैं; ये मेरे जैसे लोग नहीं है बात? क्योंकि बहुत लोग आ जाते हैं। कोई आता है, हैं। ये बड़े अच्छे लोग हैं। ये हिम्मत बंधाते हैं। ये कहते हैं, मुझसे कहता है, बस अब आपके चरणों में सब समर्पण है। तो बस, जरा दो कोस! ये तुम्हें चलाए जा रहे हैं। देखो, छह कोस मैं कहता हूं, ठीक, तो अब संन्यास ले लो! वह कहता है, यह तो चला ही चुके! जरा मुश्किल है। सब समर्पण है! यह जरा कठिन है। अब मैं भी तुमसे कहता हूं, दो ही कोस है। क्या कह रहे थे अभी क्षणभर पहले? सब समर्पण है! सब तुम कई बार थक जाते हो, बैठ जाना चाहते हो, तुमसे कहना समर्पण का तो अर्थ यह था कि संन्यास की तो छोड़ो, अगर मैं पड़ता है, बस होने को ही है। कहता कि जाओ, डूब मरो नदी में, तो भी चले गए होते। अगर / सबा ने फिर दरे-जिंदा पे आ के दी दस्तक बचाना होता तो मैं भागा हुआ आता। तुम्हें चिंता की जरूरत न सहर करीब है दिल से कहो न घबराए। थी। लेकिन लोग शब्दों का उपयोग करते हैं, शायद अर्थ का भी उन्हें बोध नहीं। औपचारिक बातें लोग सीख गए हैं। उपचार आज इतना ही। निभाते हैं। सब समर्पण है! सब में संन्यास समाविष्ट न था? सब में तो मौत भी समाविष्ट थी। 224 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org