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________________ HC अनुकरण नहीं- आत्म-अनुसंधान / मिलता, वह स्वर्ग में मांग लेते हो। लेकिन तुम्हारा मालूम होता है। कौन दुखी होना चाहता है! साफ है कि कोई परमात्मा-तुम्हारा परमात्मा है। तुम गलत हो-तुम्हारा | और शरारत कर रहा है। परमात्मा गलत होगा। जब तुम्हें प्रत्यक्ष कोई कारण न मिल पाए तो तुम अप्रत्यक्ष सोचो, विक्षिप्त आदमी का परमात्मा भी विक्षिप्त होगा! अंधे | कारण खोजते हो-समाज, अर्थव्यवस्था, राजनीति। अगर आदमी का परमात्मा भी अंधा होगा। क्योंकि जिसने खुद प्रकाश वहां भी कोई निमित्त न मिल पाए, तो भाग्य विडंबना, विधि, नहीं देखा, वह कल्पना भी नहीं कर सकता कि प्रकाश क्या है भगवान। मगर कोई, तुम नहीं। यह मन का जाल है। मन तुम्हें और प्रकाश को देखना क्या है और आंखें क्या हैं! एक सत्य देखने से अपरिचित रख रहा है कि तुम ही हो अपने बहरे आदमी का परमात्मा भी बहरा होगा। जिसने खुद ध्वनि दुख के कारण। नहीं सुनी कभी, वह कल्पना भी कैसे करेगा कि परमात्मा ध्वनि कोई मर गया-ऐसा उदाहरण लें जिसमें साफ ही दूसरा सुनता है, ध्वनि है क्या? दुख का कारण मालूम होता हो। पत्नी मर गई। अब तो साफ है तुम्हारा परमात्मा तुम्हारी प्रतिछवि है। मंदिरों में तुमने मूर्तियां | कि पत्नी न मरती तो पति दुखी न होता! इसलिए पत्नी मरकर नहीं बनाई हैं, दर्पण लगाए हैं। उन दर्पणों में तुम अपने को ही दुखी कर गई। यह भी कैसा वक्त चुना! यह कोई समय था, देखकर अपने ही चरणों में झुक जाते हो, घुटने टेककर अपने से अभी तो जवान थी! अभी तो विवाह करके, अभी तो फेरे ही बातचीत कर लेते हो। यह एकालाप है। यहां कोई उत्तर रचाकर लाये थे! तो पति रो रहा है। देनेवाला भी नहीं है। तुम जो चाहते हो, वहीं अपने को मना लेते | इसको कैसे समझाओ कि दुख के कारण तुम ही हो? वह तो हो, वही उत्तर अपने को समझा लेते हो। और इस तरह जीवन के कहेगा, यह तो बात साफ ही है कि पत्नी न मस्ती तो मैं सुखी था; क्षण व्यर्थ जाते हैं। पत्नी मर गई, इसलिए दुखी हूं। महावीर कहते हैं, हाथ में लो बागडोर अपनी। बहुत भटक | महावीर कहते हैं, पत्नी का मरना तो निमित्त है। तुम मृत्यु को चुके दूसरों के द्वारों पर। बहुत हाथ फैलाए भिक्षा के, अब स्वीकार नहीं कर पाते, वहां से दुख आ रहा है। जीवन में मृत्यु मालिक बनो! उत्तरदायित्व लो! यह बचकानापन छोड़ो। इस तो होगी ही। जन्म है तो मौत है। जन्म के साथ ही मौत हो गई बचपन के बाहर आओ, प्रौढ़ बनो! है। थोड़े समय की बात है। जन्म के साथ ही घटना घटनी शुरू 'आत्मा ही सुख-दुख का कर्ता है।' हो गई। थोड़ा समय लगेगा और घटना पूरी हो जाएगी। मरना इससे मन में बड़ी पीड़ा होती है। इसलिए तो महावीर को बहुत जन्म के साथ ही शुरू हो गया। तुम जन्म के साथ मृत्यु को अनुयायी न मिले। मन हमारा मानता है कि सुख के तो हो भी स्वीकार नहीं कर पाते हो; वहां तुम्हारे अस्वीकार में दुख है। सकते हैं कि हमने निर्माण किया हो; लेकिन दुख, वह तो दूसरों. फिर, महावीर कहेंगे, यह स्त्री तुम्हारी पत्नी न होती, और मर ने किया है। जब भी तुम दुखी होते हो, तुम तत्क्षण आसपास जाती, तो तुम दुखी होते? तुम कहोगे, फिर मैं क्यों दुखी होता? कारण खोजने लगते होः कौन दुखी कर रहा है? पति दुखी होता इतनी स्त्रियां मरती रहती हैं। ऐसे अगर हर स्त्री के लिए दुखी है तो सोचता है, पत्नी दुखी कर रही है। बाप दुखी होता है तो होने बैलूं तो फिर सुखी होने का मौका ही न आएगा; फिर तो कोई सोचता है, बेटे दुखी कर रहे हैं, तुम जरूर कोई न कोई बहाना न कोई मरेगा, और रो रहे हैं; कोई न कोई मरेगा, रो रहे हैं। अर्थी खोजने लगते होः कौन दुखी कर रहा है ? क्योंकि दुख जब आ तो रोज ही उठती है। कितनी स्त्रियां दुनिया में मरती हैं रोज! अब रहा है तो कोई न कोई दुखी कर रहा होगा। और यह तो तुम मान | इसका कहां हिसाब रखेंगे, नहीं तो मर गए। ही नहीं सकते कि मैं अपने को दुखी कर रहा हूं; क्योंकि यह बात / नहीं, तो महावीर कहते हैं, यह तुम्हारी पत्नी, यह 'मेरी' है, तो बड़ी मूढ़ता की होगी। जब तुम दुखी नहीं होना चाहते तो क्यों उस 'मेरे' में से दुख आ रहा है। यही पत्नी किसी और की कर रहे हो? जरूर कोई और कर रहा है, मैं तो कभी दुखी होना होती, मर जाती, तुम्हें कुछ भी न होता, कोई रेखा भी न खिंचती। ही नहीं चाहता! इसलिए मैं क्यों करूंगा! यह तो सीधा तर्क तो पत्नी 'मेरी' है, इस 'मेरे' में से दुख आ रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340109
Book TitleJinsutra Lecture 09 Anukaran Nahi Aatm Anusandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size44 MB
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