________________ ESH जिन सूत्र भाग: 1 SNOW उठाना है। इस एकांत में अपने को ही चलाना है। अपनी दिशा 'अप्पा कत्ता विकत्ता य'-तुम ही हो कर्ता, तुम ही हो खोजनी है। भोक्ता। न कोई करनेवाला है, न कोई तुम्हें भुगा रहा है। नीत्से अनाथ हुआ, विक्षिप्त हुआ। महावीर अनाथ होकर परमात्मा कोई लीला नहीं कर रहा है, तुम ही कर रहे हो। यह स्वयं नाथ हो गये, स्वयं भगवान हो गए। खेल सब तुम्हारा है। अगर तुम दुखी हो तो तुम ही जुम्मेवार हो। जैनों का 'भगवान' शब्द हिंदओं के 'भगवान' शब्द से अगर सुखी होना है तो तुम्हें सुख की नींवें रखनी पड़ेगी। और अलग अर्थ रखता है। ध्यान रखना, शब्द तो हम एक ही उपयोग अगर सुख-दुख दोनों के पार जाना है, तो तुम्हें ही जाना पड़ेगा। करते हैं, लेकिन जब हमारी भाव-दशाएं अलग होती हैं तो उनके यहां कोई नाव नहीं है, जिसमें बैठकर तुम उतर जाओ। तैरना अर्थ बदल जाते हैं। हिंदुओं के भगवान का अर्थ होता है, जिसने होगा! प्रत्येक को अलग-अलग तैरना होगा। यहां कोई किसी सृष्टि की, जिसने सब बनाया। जैनों के भगवान का अर्थ होता | को कंधे पर बिठाकर नहीं ले जा सकता है। है, जिसने अपने को जाना। जो जानकर परम महिमा से भर महावीर ने जो द्वार खोला, वह विमुक्ति का द्वार बना। गयाः भगवान। भाग्यवान हो गया जो! जिस पर भाग्य की नीत्से ने जो द्वार खोला, उसमें वह खुद ही पागल हो गया। अतुल वर्षा हुई। जिसने अपने भाग्य को खोज लिया। जिसने द्वार एक ही था। अपनी नियति को खोज लिया। नहीं कि सृष्टि उसने बनाई, ध्यान रखना, जो भी मैं तुमसे कह रहा हूं, अगर तुम ठीक से न बल्कि जो अपना स्रष्टा हो गया। बड़ा फर्क है। इसलिए हिंदू समझे तो बड़ी चूक हो जाएगी। सदा पूछेगा कि भगवान क्यों कहते हो महावीर को, क्या इन्होंने सत्य के साथ संबंध बनाना आग के साथ खेलना है। अगर दुनिया बनाई? वह बात ही नहीं समझ रहा है। वह अपनी जरा भी चूके, कुछ और का कुछ और समझ लिये, तो विक्षिप्तता धारणा बीच में ला रहा है। | हाथ आती है। विमुक्ति तो दूर, जो थोड़ी-बहुत समझ-बूझ थी, महावीर कहते हैं, दुनिया तो कभी बनायी नहीं गयी, कोई | वह भी खो जाती है। बनानेवाला नहीं है। क्योंकि बनाने की बात ही बचकानी है। अभी इंसानों को मानूसे-जमीं होना है भगवान बनाएगा तो फिर सवाल उठेगा, किसने उसे बनाया? महरो महताब के ऐवान नहीं दरकार अभी। यह तो बकवास कहीं रोकनी ही पड़ेगी। इसमें जाने में कुछ सार महावीर ने कहा, पृथ्वी से तो परिचित हो लो! जीवन के सत्य नहीं है। है अस्तित्व है कोई स्रष्टा नहीं है। लेकिन से तो परिचित हो लो। चांद-तारों के सपने छोड़ो। यहां से अस्तित्व कोई अराजकता नहीं है; जैसा कि नीत्से ने कहा। कोई | परिचित हो लो। अपने तथ्य से परिचित हो लो। आकाशों की परमात्मा नहीं है, तो अस्तित्व अराजक है। कोई व्यवस्था नहीं है | आकांक्षाएं छोड़ो! स्वर्ग-नर्कों के जाल छोड़ो। इसमें, तो फिर कर लो जो करना है। यह तो पागलपन है, कर अभी इंसानों को मानूसे-जमीं होना है लो जो करना है। यहां व्यर्थ समय मत गंवाओ, भोग लो जो | -पृथ्वी से परिचित होना है। भोगना है। दौड़ जाओ इच्छाओं में स्वछंद होकर! महरो महताब के ऐवान नहीं दरकार अभी। देखो, एक ही घटना को दो अलग व्यक्ति कैसे अलग लेते हैं! | -अभी इस उलझन में मत उलझो कि चांद-तारों में कौन महावीर ने कहा, वहां कोई व्यवस्थापक नहीं है, इसलिए निवास कर रहा है। सम्हलो, नहीं तो पागल हो जाओगे! जागो! यहां कोई सूत्रधार | महावीर बड़े यथार्थवादी हैं, प्रैगमेटिक, व्यवहारवादी हैं। ठोस नहीं है, तुम्हीं अकेले हो। अगर न जागे तो खो जाओगे, भटक जमीन पर पैर रखने की उनकी आदत है। सपनों को हटा देते हैं, जाओगे, यह अटल अंधेरा है! ये गहन खाइयां हैं। यहां कोई | काट देते हैं। मार्गदर्शक नहीं है, कोई मार्ग-द्रष्टा नहीं है। कोई आगे चल नहीं | तुम्हारा परमात्मा भी तुम्हारा सपना है। तुम्हारा परमात्मा भी रहा है, तुम अकेले हो! किन्हीं झूठे सहारों पर भरोसा मत रखो! तुम्हारा परिपूरक सपना है। जिंदगी में जो तुम नहीं कर पाते, वह जिम्मेवारी अपने हाथ में लो! तुम ही अपने मालिक हो! तुम परमात्मा के बहाने सपने में करते हो। यहां तम्हें जो नहीं 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.