SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ HOM अनुकरण नहा-आत्म-अनुसंधान विपरीत लगते हैं, मगर एक-दूसरे के विपरीत नहीं हैं; दोनों | तुम्हारे भीतर समंदर बंद है। एक-दूसरे के सहयोगी हैं। एक पैडल ऊपर होता है तो दूसरा समंदर है एक बूंद पानी में बंद! लेकिन भीतर नजर ही नहीं नीचे होता है। एक बाएं तरफ है तो दूसरा दाएं तरफ है। दोनों | जाती तो समंदर का दर्शन नहीं होता। तुम नाहक छोटे बने हो। दुश्मन मालूम पड़ते हैं, लेकिन दोनों गहरे संयोग में हैं, और दोनों तुम व्यर्थ ही अपने को क्षुद्र समझे हो। तुम अकारण ही हीन माने के कारण ही चाक चल रहा है, गाड़ी चल रही है, साइकिल चल बैठे हो। और हीन मान लिया, इसलिए श्रेष्ठ बनने की कोशिश रही हैं। तुम पैडल रोक दो, तो हो सकता है, थोड़ी-बहुत में लगे हो। थोड़ी आंख भीतर आए, थोड़ी उपेक्षा में दृष्टि दो-चार-दस कदम पुरानी गति के कारण साइकिल चल जाए, सम्हले, थोड़ी तुम्हारी ज्योति यहां-वहां न कंपे, राग-द्वेष के लेकिन सदा न चल पाएगी। पैडल रोकते ही गति क्षीण होने | झोंके न आएं, तो तुम अचानक पाओगेः समंदर है एक बूंद पानी लगेगी, साइकिल लड़खड़ाने लगेगी। दो-चार-दस कदम के में बंद। तब तुम विराट हो जाओगे, विशाल हो जाओगे। यही बाद तुम्हें साइकिल से नीचे उतरना पड़ेगा, नहीं तो साइकल तुम्हें तुम्हारा परमात्म-भाव है। नीचे उतार देगी। किरण चांद में है शरर संग में राग और द्वेष पैडल की भांति हैं। विपरीत दिखाई पड़ते हैं, . यह बेरंग है डूब कर रंग में लेकिन उन दोनों के ही पैडल मारकर तुम जीवन के चके को खुद ही का नशेमन तिरे दिल में है सम्हाले हुए हो। उपेक्षा को साधो! उपेक्षा का अर्थ है : पैडल फलक जिस तरह आंख के तिल में है। मत मारो, बैठे रहो साइकिल पर, कोई हर्जा नहीं। कितनी देर जैसे आंख के छोटे-से तिल में सारा आकाश समाया हुआ बैठोगे? इसलिए तो मैं कहता हूं अपने संन्यासियों को, भागने है...आंख खोलते हो आकाश को देखते हो, कितना विराट की कोई जरूरत नहीं, बैठे रहो जहां हो। साइकिल पर ही बैठना आकाश आंख के छोटे से तिल में समाया हुआ है। है, बैठे रहो। घर में रहना है, घर में रहो। दुकान पर रहना है, खुदी का नशेमन तेरे दिल में है। दुकान पर रहो। थोड़ा ध्यान सधने दो, साइकिल खुद ही फलक जिस तरह आंख के तिल में है। गिराएगी तुम्हें, तुम्हें थोड़े ही छोड़ना पड़ेगा। साइकल खुद ही वह परमात्मा का घर भीतर है। वह तुम छोटे मालूम पड़ते छोड़ देगी। साइकिल कहेगी, अब बहुत हो गया, उतरो! हो...आंख का तिल कितना छोटा है, सारे आकाश को समा जरा उपेक्षा सधे, जरा विवेक सधे, जरा ध्यान सधे, जरा | लेता है! अमूर्छा थोड़ी उठे, कि जीवन में अपने-आप क्रांति घटित होनी | तुम छोटे मालूम पड़ते हो, हो नहीं। जिस दिन तुम्हारा भीतर शुरू हो जाती है। चौबीस घंटे शायद तुम्हें लगे, बहुत मुश्किल | का विस्फोट होगा, उस दिन तुम जानोगे कि तुम सदा-सदा से है, शायद डर भी लगे कि कहीं ऐसा न हो कि साइकिल से गिर अनंत को, निराकार को, निर्गुण को अपने भीतर लिये चलते थे। ही जाएं, हाथ-पैर न टूट जाएं; कहीं ऐसा न हो जाए कि फिर | समंदर है एक बूंद पानी में बंद! साइकिल पर दुबारा चढ़ ही न सकें तो ऐसा करो कि दिन में लेकिन इसकी खोज नियम, मर्यादा, अनुशासन, नीति, एक घंटा ही उपेक्षा साधो। लेकिन फिर एक घंटा परिपूर्ण उपेक्षा सदाचार, इतने से ही न होगी। इतने से तुम अच्छे आदमी बन साधो। वह एक घंटा भी तुम्हें जीवन का दर्शन करा जाएगा। जाओगे-सभ्य। सभ्य शब्द बड़ा अच्छा है। इसका मतलब : क्षणभर को भी अगर राग-द्वेष की बदलियां आंखों में न घिरी हों, सभा में बैठने योग्य। और कुछ खास मतलब नहीं है। जहां चार तो जीवन का सत्य दिखाई पड़ना शुरू हो जाता है। तब न कोई जन बैठे हों, वहां तुम बैठने योग्य हो जाओगे, सभ्य हो मित्र है, न कोई शत्रु है। तब तुम्हीं अपने मित्र हो, तुम्हीं अपने जाओगे। कोई तुम्हें दुतकारेगा नहीं कि हटो यहां से! शत्रु हो। सत्प्रवृत्ति में मित्र हो, दुष्प्रवृत्ति में शत्रु। नीति-नियम सीख जाओगे, शिष्टाचार। लेकिन उस परमात्मा खुदी क्या है राजे-दुरूने-हयात के जगत में इतने से काफी नहीं है। सभा में बैठने योग्य हो जाने समंदर है एक बूंद पानी में बंद। से, तुम अपने में बैठने योग्य न बनोगे। जो तुम्हें सभा में बैठने 2011 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340109
Book TitleJinsutra Lecture 09 Anukaran Nahi Aatm Anusandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy