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________________ - जिन सूत्र भाग 1 सुनने गए थे, क्या तुम संन्यास तत्क्षण ले सकते हो?' लगता है अपना है, प्यारा है; कोई लगता है पराया है, दुश्मन वह युवक उठकर खड़ा हो गया। पत्नी ने कहा, 'कहां जाते है। कोई लगता है आज अपना नहीं, तो कल अपना हो जाए, हो? यह तो बातचीत ही थी।' मगर वह तो दरवाजा खोलकर ऐसी आकांक्षा जगती है। कोई दूर है तो आकांक्षा होती है, पास बाहर हो गया। पत्नी ने कहा, 'नग्न हो, कहां जाते हो?' उसने आ जाए, गले लग जाए। और कोई पास भी खड़ा हो तो होता कहा, 'खतम हो गई बात। लेना है—ले लिया।' पत्नी ने है, दूर हटे, विकर्षण पैदा होता है। तुम सारे संसार को राग-द्वेष कहा, 'अंदर आओ! यह मजाक की बात थी।' में बांटते चलते हो। जाने-अनजाने। इसे जरा होश से देखना, 'संन्यास तो', उसने कहा, 'मजाक में भी ले लिया जाए तो | तो तुम पाओगे प्रतिपलः अजनबी आदमी रास्ते पर आता है, बात खतम।' तत्क्षण तुम निर्णय कर लेते हो भीतर, राग या द्वेष का; मित्र कि वह नग्न ही महावीर के पास पहुंचा। सारे गांव की भीड़ लग शत्रु; चाहत के योग्य कि नहीं; प्यारा लगता है कि दुश्मन; गई। महावीर से उसने कहा कि ऐसा-ऐसा हआ। उस क्षण में | भला लगता है, पास आने योग्य कि दर जाने योग्य। झलक भी मुझे लगा कि ठीक है, यह मैं क्या कह रहा हूं। दूसरे के लिए कह मिली आदमी की राह पर और चाहे तुम्हें पता भी न चलता हो, रहा हूं कि सोचे न, सोच तो मैं भी रहा था। मगर तत्क्षण मुझे तुमने भीतर निर्णय कर लिया-बड़ा सूक्ष्म राग का या द्वेष का। बोध हुआ कि अगर लेना है तो ले लूं। कौन रोक रहा है? कौन | यह निर्णय ही तुम्हें संसार से बांधे रखता है। रोक सकता है? एक कार गुजरी, गुजरते से ही एक झलक आंख पर पड़ी, जब मरते वक्त तुम्हें कोई न रोक सकेगा, तो संन्यास के वक्त तुमने तय कर लियाः ऐसी कार खरीदनी है कि नहीं खरीदनी है। कोई तुम्हें कैसे रोक सकता है? जो उतरना चाहता है, उतर जाता | लुभा गई मन को कि नहीं लुभा गई। कोई स्त्री पास से गुजरी। है। लेकिन हम बड़े बेईमान हैं। हम हजार बहाने करते हैं। कोई बड़ा मकान दिखाई पड़ा। सुंदर वस्त्र टंगे दिखाई पड़े, वस्त्र हमारी बेईमानी यह है कि हम यह भी नहीं मान सकते कि हम | के भंडार में। राग-द्वेष पूरे वक्त, तुम निर्णय करते चलते हो। संन्यास नहीं लेना चाहते, कि वैराग्य नहीं चाहते। हम यह भी यह राग-द्वेष की सतत चलती प्रक्रिया ही तुम्हारे चाक को दिखावा करना चाहते हैं कि चाहते हैं, लेकिन क्या करें! चलाए रखती है। किंतु-परंतु बहुत हैं। तुम मंडल में फंसे रहते हो। फिर क्या उपाय है? ‘पापकर्म के प्रवर्तक राग और द्वेष ये दो भाव हैं। जो भिक्षु एक तीसरा सूत्र है। बुद्ध ने उसे उपेक्षा कहा है। वह बिलकुल इनका निषेध करता है, वह मंडल संसार में नहीं रुकता, मुक्त हो | ठीक शब्द है। महावीर इसको विवेक कहते हैं, बिलकुल ठीक जाता है।' शब्द है। वे कहते हैं, न राग न द्वेष, उपेक्षा का भाव। न कोई मेरा रागे दोसे य दो पावे, पावकम्म पवत्तणे। है, न कोई पराया है। न कोई अपना है, न कोई दूसरा है। न कोई जे भिक्खू रूंभई निच्चं, सेन अच्छइ मंडले।। सुख देता है, न कोई दुख देता है। चौबीस घंटे भी एक दफा तुम बस दो बातें हैं—राग और द्वेष, इन दो के सहारे चक्र चलता उपेक्षा का प्रयोग करके देखो, चौबीस घंटे में कुछ हर्जा न हो है। राग, कि कुछ मेरा है। राग, कि कोई अपना है। राग, कि जाएगा। चौबीस घंटे एक धारा भीतर बनाकर देखो कि कुछ भी किसी से सुख मिलता है। इसे सम्हालूं, बचाऊं, सुरक्षा करूं। सामने आएगा, तुम उपेक्षा का भाव रखोगे, न इस तरफ न उस द्वेष, कि कोई पराया है। द्वेष, कि कोई शत्रु है। द्वेष, कि किसी तरफ, न पक्ष न विपक्ष, न शत्रु न मित्र-तुम बाटोगे न, देखते के कारण दुख मिलता है। द्वेष, कि इसे नष्ट करूं, मिटाऊं, रहोगे खाली नजरों से। चौबीस घंटे में ही तुम पाओगेः एक समाप्त करूं। बाहर देखनेवाली नजर हर चीज को राग और द्वेष अपूर्व शांति! क्योंकि वह जो सतत क्रिया चाक को चला रही में बदलती है। | थी, वह चौबीस घंटे के लिए भी रुक गई तो चाक ठहर जाता है। तुमने कभी खयाल किया। राह से तुम गुजरते हो, किसी की ऐसा ही समझो कि तुम साइकल चलाते हो, तो पैडल मारते ही तरफ राग से देखते हो, किसी कि तरफ द्वेष से देखते हो। कोई रहते हो। दोनों तरफ पैडल लगे हैं। दोनों पैडल एक-दूसरे के 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340109
Book TitleJinsutra Lecture 09 Anukaran Nahi Aatm Anusandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size44 MB
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