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________________ परम आषाधः साक्ष NROENIMAL व अनुभव होगा कि जब तुम बिलकुल स्वीकार कर लेते हो सिरदर्द | महावीर ने यह नहीं कहा था कि तुम विराग करो-और दूसरे | को, तभी वह खो जाता है। और जैसे ही फिर इच्छा उठती है कि आदर करें। नहीं, यह सिरदर्द नहीं होना चाहिए, कितनी तकलीफ हो रही महावीर कहते हैं, तुम आदरपूर्वक विराग करना। जब तुम | है वैसे ही सिरदर्द फिर घना हो जाता है। उपवास करो तो परम आदर से करना। यह बड़ी घड़ी है। यह - इसे तुम छोटे-छोटे प्रयोग करके देखो। कोई भी दुख | बड़ी महिमा की घड़ी है; क्योंकि साधारणतः मनुष्य की आए और दुख तो रोज आ रहे हैं और सभी को आ रहे हैं। जीवन-आकांक्षा भोजन की है, तुम उपवास कर रहे हो। तुम यह तो भवसागर है, यहां तो दुख पैदा हो ही रहे हैं, तरंगें उठ ही बड़ी पवित्र भूमि पर यात्रा कर रहे हो। यह तीर्थयात्रा है। उन दस रही हैं। और नयी तरंगें पैदा करने की जरूरत नहीं है, जो अपने दिनों में तुम जितने सम्मानपूर्वक, जितने अहोभाव से, जितने से आ रहा है, जो तुम्हारे अतीत में किये कर्मों से आ रहा | कृतज्ञता-भाव से उपवास कर सको, उतनी ही उपवास की है-उसके ही तुम साक्षी हो जाओ। तो तुमने तप-संयम-रूपी महिमा होगी। नौका को ग्रहण कर लिया। और इस तपसंयमरूपी नौका में | दूसरों को तो पता भी मत चलने देना; क्योंकि दूसरों से आदर चारों तरफ भवसागर के तूफान उठेंगे और हर तूफान तुम्हें सुदृढ़ पाने की आकांक्षा उपवास का अनादर है। यह तो तुमने उपवास कर जायेगा, और हर तूफान तुम्हें भीतर एकजुट, इकट्ठा कर को भी बाजार में बेच दिया। यह तो तुमने उपवास से भी कुछ जायेगा। और हर तूफान, और हर तूफान की चुनौती तुम्हारे और खरीद लिया-समाज का सम्मान, रिस्पेक्टेबिलिटी। यह भीतर आत्मा को जन्म देनेवाली बनेगी। तो तुमने उपवास को भी बाजार की चीज बना दिया। इसको भी तूफां से खेलना अगर इंसान सीख ले बेच दिया, इसको तो कम से कम चुपचाप करते। मौजों से आप उभरें किनारे नये-नये। मुहम्मद ने कहा है : जब तुम प्रार्थना करो तो तुम्हारी पत्नी को एक बार तूफान से जूझना, एक बार तूफान से खेलना, एक भी पता न चले। जीसस ने कहा है: एक हाथ से दान दो, दूसरे बार तूफान के साक्षी बन जाना—फिर लहरों में ही नये-नये हाथ को खबर न हो। तो सम्मान है। किनारे उठने लगते हैं। सुख खोजकर किसी ने कभी कुछ नहीं सम्मान का अर्थ है : तुम जो कर रहे हो, वही साध्य है; उसका पाया; लेकिन जिसने दुख का साक्षी बनना सीख लिया, उसने तुम साधन की तरह उपयोग न करोगे। अगर तुमने उपवास और महासुख पाया है। तप का भी साधन की तरह उपयोग कर लिया कि अखबार में _ 'जिससे विराग उत्पन्न होता है, उसका आदरपूर्वक आचरण फोटो छपेगी, चलो किसी तरह दस दिन गुजार दो-तो तुम करना चाहिए। विरक्त व्यक्ति संसार बंधन से छूट जाता है और उपवास से वंचित रह गये। तुमने अनशन किया, उपवास नहीं। आसक्त व्यक्ति का संसार अनंत होता चला जाता है।' तुम भूखे मरे, लेकिन तुम उपवास के आनंद से वंचित रह गये। 'जिससे विराग उत्पन्न हो उसका आदरपूर्वक आचरण करना | यह तो किसी को कानों-कान खबर न हो। चाहिए!' महत्व है 'आदरपूर्वक' पर। तुम जबर्दस्ती भी विराग | तुम्हारी तपश्चर्या साध्य बने, साधन नहीं। तुम्हारी कर सकते हो। तुम बेमन से भी विराग कर सकते हो। तुम पूजा-प्रार्थना, अर्चना, तुम्हारा ध्यान, सामायिक; साध्य बने। दिखावे के लिए भी विराग कर सकते हो। जैसे समझो, उपवास | रात के अंधेरे में जब सारा जगत सोया हो, चुपचाप उठकर कर कर लेते हो तुम–पर्युषण आए, आठ या दस दिन के उपवास लेना अपनी सामायिक। लेकिन तुमने देखा, लोग मंदिर में कर लिये। अब कैसी चीजें विकृत हो जाती हैं! तुम उपवास जाकर करेंगे! लोगों को तुमने सामायिक और ध्यान करते देखा! करते हो, फिर तुम्हारा आदर किया जाता है, शोभा-यात्रा करते भी जायेंगे, माला भी फेरते जायेंगे—चारों तरफ देखते निकलती है, बैंड-बाजे बजते हैं, लोग प्रशंसा करने आते हैं कि जायेंगे, कोई देख रहा है कि नहीं। अगर कोई न देख रहा हो तो बड़ा काम किया, समाज में बड़ा सम्मान मिलता है। यह तो बड़ी जल्दी माला फिर जाती है, दो-दो गुरिए एक साथ चले जाते हैं। चूक हो गई। कोई अगर देख रहा हो तो आहिस्ता-आहिस्ता चलती है। यह 1051 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org
SR No.340105
Book TitleJinsutra Lecture 05 Param Aushadhi Sakshi Bhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size37 MB
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