SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ RE HARASH TRA धमः निजी आर वैयक्तिक प्रयोगशाला में। फूल को देखेगा भी नहीं। फूल को थोड़ा मौका अगर परमात्मा से थोड़ा दिल लग गया तो वही स्वर्ग है। भी न देगा कि फूल थोड़ा गुनगुना ले। भागेगा प्रयोगशाला में। और क्या देखने को बाकी है, जल्दी ही तुम पाओगे, पंखुड़ियां बिखर गईं। विच्छेद कर डाला आप से दिल लगा के देख लिया। उसने फूल का। जल्दी ही तुम पाओगे, लेबिल लगा दिये गये, पर अब बद्धि को मत दौड़ाओ। अब बुद्धि के जाल मत बनो। अलग-अलग बोतलों में उसने फूल से निकालकर रस संजो छोड़ो भी। बुद्धि विरस कर देगी। बुद्धिमान स्वर्ग भी चला दिये। बता देगा, कितना लवण है, कितनी मिट्टी है, कितनी जाये, नर्क को निर्मित कर लेगा; क्योंकि वह स्वीकार नहीं कर शक्कर है, कितना क्या है। सब बता देगा, लेकिन कोई भी ऐसी सकता है। घटना घट भी जाये तो भी पूछता है, 'क्यों!' बोतल न होगी जिसमें सौंदर्य होगा, और सब चीजें पकड़ में आ 'क्यों' का कोई उत्तर नहीं है। ऐसा है। जब भी तुम्हारा दिल जायेंगी। पार्थिव पकड़ में आ जायेगा, अपार्थिव छूट जायेगा। खुला होता है और प्यारे को तुम उपलब्ध होते हो, घट जाता है। तुम पूछोगे, ‘सौंदर्य कहां है? हमने फूल दिया था, एक सुंदर तुमने किसी को भी प्रेम किया, वहीं से परमात्मा की किरणें फूल दिया था—यह फूल का विश्लेषण हुआ, सौंदर्य कहां उतरनी शुरू हो जाती हैं, वही खिड़की हो जाता है, वही वातायन है?' वह कहेगा, ‘सौंदर्य था ही नहीं। मैंने बड़े गौर से हो जाता है। तुमने अगर मुझे प्रेम किया तो यहां स्वर्ग बन काटा-पीटा, कोई भी चीज बाहर नहीं जाने दी है। जितना वजन जायेगा। जिनका मझ से प्रेम नहीं है, वे तम्हें पागल समझेंगे। फूल का था-उतना ही इन चीजों का है, तुम तौल ले सकते हो।। उन्हें सोचने दो कि क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ! यह काम सौंदर्य कहीं गया नहीं। था ही नहीं। होगा ही नहीं। तुम किसी उन पर छोड़ दो, जिनको नहीं हुआ है। कुछ काम उनके लिए भी भ्रांति में पड़े होओगे। तुमने कोई सपना देखा होगा।' तो छोड़ो। समझ खंड-खंड करती है। समझ यानी विश्लेषण। और और क्या देखने को बाकी है, सत्य उपलब्ध होता है संश्लेषण से, जोड़ से, अखंड से। तो मैं | आप से दिल लगा के देख लिया। तुमसे कहता हूं, अगर लगता है कहीं, यहीं स्वर्ग है, तो अब समझने की फिक्र छोड़ो ! स्वर्ग में तो समझ मत लाओ! समझ आज इतना ही। से संसार चलता है। समझ से संसार बनता है। स्वर्ग में तो समझ मत लाओ! अगर काव्य उठा है, अगर हृदय अभिभूत हुआ है तो नाचो! अब स्वर्ग आ गया है, तुम पूछते हो कि ऐसा क्यों हुआ! जो हुआ, हुआ। 'क्यों' में जाने का अर्थ है : अतीत में जाओ। 'क्यों' में जाने का अर्थ है : कारण में जाओ। 'क्यों' में जाने का अर्थ है: विज्ञान में जाओ। विज्ञान पछता है, 'क्यों?' नहीं, धर्म स्वीकार करता है। धर्म पूछता ही नहीं। धर्म कोई प्रश्न नहीं है। धर्म एक आश्चर्यभाव है। धर्म कहता है, अहा! यही स्वर्ग है, तो नाच लें, तो गीत गा लें। सुनो इस कोयल को। स्वर्ग अगर आ गया तो आखिरी दरवाजा आ गया! तेरी उम्मीद छुट नहीं सकती तेरे दर के सिवाय दर ही नहीं। और क्या देखने को बाकी है, आप से दिल लगा के देख लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340104
Book TitleJinsutra Lecture 04 Dharm Niji aur Vaiyaktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy