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________________ ने, श्रमण संस्कृति के दोनों आधार हैं, अपने पिछले जन्मों की का समर्पण करता है। कथा कही है। वह कहता है, 'यह रहे। बुरे-भले जैसे भी हैं, त स्वीकार किसी भक्त ने फिक्र नहीं की : क्या करना, हिसाब क्या रखना कर! पत्र-पुष्पम्। यह जो कुछ हमारे पास है; पत्ते, फूल, फूल उसका! महावीर और बुद्ध ने कही है। दोनों ने जाति-स्मरण, की पंखुड़ी सही, यह तू सम्हाल! ज्यादा कुछ है नहीं!' पिछले जन्मों के स्मरण को एक खास विधि माना, खास विधि वह अपने अहंकार को सीधा रखता है। बनाया कि पीछे जन्मों में जाओ; क्योंकि हिसाब पूरा देखना ज्ञानी के मार्ग पर, संकल्प के मार्ग पर कर्म को काट-काटकर पड़ेगा, कहां-कहां भूल-चूक की है, वहां-वहां सुधार करना है; कर्ता मिटाया जाता है। भक्ति के मार्ग पर कर्ता को छोड़कर ही जहां-जहां गलत किया, उसके मुकाबले ठीक करना है; सारे कर्म मिट जाते हैं। जहां-जहां पाप हुआ वहां-वहां पुण्य रखना है। धीरे-धीरे-धीरे तराजू को बराबर करना है, दोनों पलड़े जब बराबर हो जायेंगे आखिरी सवाल : सुनता था कि इस जहां से आगे जहां और और कांटा जब बीच में सम्यकत्व पर खड़ा हो जायेगा तब तुम भी हैं, इस मकां से आगे मकां और भी हैं; लेकिन अब आप से मुक्त हो सकोगे। बड़ा हिसाबी-किताबी मामला है। मगर कुछ मिलने पर ऐसा प्रतीत होता है: हैं जिनको इस में रस है। जरूर वे वैसा करें। गर बर रूए जमीं बहिश्त अस्त लेकिन भक्तों ने कभी पिछले जन्मों का हिसाब नहीं किया। हमीं अस्त हमीं अस्त हमीं अस्त। उन्होंने कहा, 'हिसाब कौन रखे! तू ही रख! तू ही सम्हाल! तूने -यदि इस पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो वह यहीं है, यहीं है, भेजा, हम आये। तूने चलाया, हम चले! तूने जैसा रखा, हम यहीं है। ऐसा क्यों हुआ, कृपापूर्वक समझायें! राजी रहे!' भक्त की तो पूरी बात ही इतनी है कि मैं नहीं हूँ, तू ही है। छोड़ो भी समझ को! समझ के पीछे क्यों इतना लट्ठ लेकर पड़े इसलिए भक्त को कोई सवाल नहीं है। हो? समझ से ऐसा क्या लेना-देना है? समझ को खाओगे कि / दोनों मार्ग पहंचा देते हैं। भक्त छलांग से पहंचता है. ज्ञानी पीयोगे कि ओढोगे? जो हआ है उसके बीच में समझ को मत इंच-इंच काटकर पहुंचता है। भक्त एकबारगी पहुंच जाता है। लाओ। समझ बाधा डालेगी। समझ ने सदा ही बाधा डाली है। एक साथ छोड़ देता है अपने 'मैं' को। वह पूरा का पूरा उसके | विश्लेषण तोड़ देता है उन चीजों को, फोड़ देता है उन चीजों चरणों में अपने सिर को रख देता है—एक साथ! ज्ञानी काटता | को-जो विश्लेषण के पार हैं। है, पाप को छोड़ता है, पुण्य को पकड़ता है—फिर एक ऐसी जैसे मैं एक सुंदर फूल तुम्हें दं, भोगो इसे! संघो इसे! पीयो घड़ी आती है, तब पुण्य को भी छोड़ता है। नहीं तो पुण्य ही इसके रस को आंखों से। नाच लो थोड़ी देर इसके साथ! जल्दी अहंकार बन जाता है। | ही यह फूल कुम्हला जायेगा। जल्दी ही फूल फिर जैसे अदृश्य वीर के मार्ग पर जो चलते हैं, पहले पाप को काटो से आया, अदृश्य में लीन हो जायेगा। विश्लेषण मत करो, पुण्य से, फिर एक घड़ी आयेगी तब पुण्य को भी काटो, क्योंकि अन्यथा तुम भागोगे, काटोगे-पीटोगे फूल को, सोचोगे कहां वह सोने की जंजीरें हैं। पहले पाप को मिटाओ पुण्य से, एक सौंदर्य है, कहां छिपा है! उस काट-पीट में फूल भी खो जायेगा, कांटे को दूसरे से निकालो; फिर दोनों कांटों को फेंक दो, फिर सौंदर्य भी खो जायेगा। पाप भी पुण्य भी दोनों चले जायें। जब सारे कर्म शून्य हो जायेंगे। विश्लेषण से सौंदर्य का पता नहीं चलता, न सत्य का पता तो कर्ता मिट जाता है। जब कर्म ही न बचे तो कर्ता कौन! यह चलता है; क्योंकि जो है, वह अखंड में है। इसलिए मैं कहता महावीर का मार्ग है। | हूं, छोड़ो समझ को! समझ खंडित करती है चीजों को। वह भक्त का मार्ग यह है, वह कहता है: हम कर्ता को ही रखे आते कहती है. काटो-पीटो. जांचो, तोड़ो। सारा विज्ञान तोड़-फोड हैं उसके चरणों में। कर्म से शुरू नहीं करता भक्त। भक्त कर्ता से चलता है। तुम दे दो वैज्ञानिक को फूल, वह फौरन भागेगा Jain education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340104
Book TitleJinsutra Lecture 04 Dharm Niji aur Vaiyaktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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