SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र है, उनके लिए महावीर का मार्ग है। कहानी सुंदर है, अर्थपूर्ण आसान होता जाएगा। है। इतना कहती है कहानी कि 'ब्राह्मण के घर कभी कोई योद्धा | जब परमात्मा ने सोचा कि अकेला हूं, थक गया हूं, बहुत हो पैदा हुआ? योद्धा पैदा होने के लिए रोएं-रोएं में, खून-खून में, जाऊं, तो जीवन पैदा हुआ। निश्चित ही महावीर मृत्यु का साधन हड्डी-मांस-मज्जा में युद्ध का स्वर चाहिए। करेंगे। उलटे लौटना है। तो जिस तरह परमात्मा ने जीवन के दूसरी मजे की बात है कि चौबीस ही जैनों के तीर्थंकर क्षत्रिय धागे फैलाए थे, उसी तरह उनको मृत्यु के धागे फैलाने हैं, या घर में पैदा हुए और चौबीस ही तीर्थंकर अहिंसक हो गए, उन्होंने जीवन के धागे काटने हैं। वृक्ष खड़ा है, तो वासना की जड़ें हिंसा छोड़ दी। तलवार लेकर भी क्या लड़ना! वह कमजोर के फैलती हैं पृथ्वी में, तो ही खड़ा है। रस लेता है, आकाश में लड़ने का ढंग है; कमजोरी को तलवार से पूरा कर लेता है। फैलाता है शाखाओं को, सूरज की किरणें पीता है। वृक्ष को | इसलिए आदमी जितना कमजोर होता गया है, उतने ही उसके मरना हो, वृक्ष को सिकड़ना हो, बीज में बना हो, वापिस | शस्त्र मजबूत होते चले गए हैं। अब आज तो लड़ने के लिए लौटना हो, तो फिर जड़ों को खींच लेगा, फिर शाखाओं को झुका कमजोर और ताकत का कोई सवाल ही नहीं है; एटमबम गिराना | लेगा, क्योंकि फिर सूर्य की ऊर्जा की कोई जरूरत न रही। फिर हो, बच्चा भी गिरा दे सकता है। एक बटन दबा देगा हवाई पृथ्वी के रस की कोई जरूरत न रही। जहाज में से, एटमबम गिर जाएंगे। जिस आदमी ने एटम महावीर के सारे सूत्र एक गहन अर्थ में आत्मघात के सूत्र हैं। गिराया हिरोशिमा, नागासाकी पर, वह कोई बलशाली आदमी इसलिए तुम चकित होओगे कि महावीर अकेले जाग्रत पुरुष हैं थोड़े ही था; साधारण आदमी! और एक लाख आदमी क्षण में | जिन्होंने अपने संन्यासी को आत्मघात की भी आज्ञा दी है। मार डाले! यह कमजोर की बात हो गई। दुनिया में किसी ने नहीं दी। आत्मघात की भी आज्ञा ! दुनिया का महावीर कहते हैं, जो जितना ही योद्धा होता जाएगा उतने ही कोई कानून और दुनिया का कोई शास्त्र स्वीकार नहीं करता कि शस्त्र छोड़ देगा; उसका खुद होना ही पर्याप्त है। फिर वह आदमी को हक है कि वह मरना चाहे तो मर जाए; महावीर मारेगा भी नहीं, क्योंकि मारने की भाषा भी कमजोर की भाषा है। स्वीकार करते हैं—करना ही पड़ेगा। यह तर्कयुक्त है, क्योंकि वे तुम दूसरे को मिटाना चाहते हो, क्योंकि तुम दूसरे से डरते सिकुड़ने की तरफ जा रहे हैं, लौट रहे हैं वापिस, तो जीवन के हो-कहीं उसे जीवित छोड़ दिया, हानि न करे; कहीं तुम्हें न | सब तरफ से संबंध तोड़ देने हैं। अगर कोई यह भी चाहे कि मुझे मार डाले! तुम उसी को मारते हो जिससे तुम्हें डर है कि कहीं पूरे संबंध अभी छोड़ देने हैं, तो कौन दूसरा उसे रोकने का हकदार तुम्हारी मौत न आ जाए। महावीर ने कहा, वह भी कमजोर की है! महावीर ने आखिरी स्वतंत्रता आदमी को दी है कि वह भाषा है, हम किसी को मारेंगे नहीं। अगर कोई मारने भी आएगा | आत्मघात करना चाहे तो भी निर्णायक स्वयं है। अगर वह तो हम मरने को राजी रहेंगे, भागेंगे नहीं, लड़ेंगे भी नहीं। मरना चाहे तो भी हक है उसका! मृत्यु मनुष्य का जन्म-सिद्ध साधारणतः दो उपाय हैं : जब भी तुम पर कोई हमला करे तो या अधिकार है। लेकिन ये सब बातें संगत हैं उनके साथ। और तो भागो या जूझो-दोनों ही कमजोर के हैं। जो बहुत कमजोर उनके सारे सूत्र, कैसे जीवन से हमारे संबंध छिन्न-भिन्न हो जाएं, है, वह भाग जाता है; जो उतना कमजोर नहीं है, वह लड़ता है। कैसे यह फैलाव बंद हो जाए, कैसे हम वापिस घर की तरफ लौट लेकिन हैं दोनों ही कमजोर। | पड़ें, इसके ही सूत्र हैं। यह सारा शास्त्र मृत्यु का शास्त्र है। महावीर कहते हैं, जो सच में कमजोरी के पार हो गया, अभय तबीबों से मैं क्या पूछू इलाजे-दर्दे-दिल। हो गया, वह न तो भागता है न लड़ता है। वह कहता है, 'खड़े मरज जब जिंदगी खुद हो तो फिर उसकी दवा क्या है! हैं! हम यहीं खड़े हैं। तुम्हें मारना हो मार डालो।' वह मर जाता | महावीर के लिए जीवन ही रोग है। और रोग तो गौण हैं। और है, लेकिन उसके हृदय में हिंसा का भाव नहीं उठता। वह मर रोग तो मूल रोग की छायाएं हैं। जीवन ही रोग है। जीवन ही जाता है, लेकिन उसके हृदय में प्रतिहिंसा नहीं उठती। बंधन है। उसी से मुक्त हो जाना है। . यहां एक बात और समझ लें, क्योंकि फिर सूत्रों को समझना तो महावीर का जो मोक्ष है, वह महामृत्यु है—जहां तुम 10 Jair Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340101
Book TitleJinsutra Lecture 01 Jin Shasan ki Adharshila Sankalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy