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________________ H जन सूत्र भागः1. युवक ने फिर पहला दरवाजा चुना। स्वाभाविक, तुम भी यही तरह, निशाना चूक गया। यह देखकर कि लड़का बहुत ध्यान से करते। उसके समक्ष फिर दो दरवाजे आए, जिन पर लिखा था : | उड़ते पक्षी की ओर देख रहा है, मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, 'देख अच्छा गाने वाली और गाना न गाने वाली। युवक ने पुनः पहले बेटे, देख! आश्चर्य देख! मरकर भी पक्षी उड़ान भर रहा है!' द्वार का सहारा लिया और अब की उसके सामने दो दरवाजों पर मगर कोई मानने को राजी नहीं है कि निशाना अपना चूक गया लिखा था : दहेज लानेवाली और न दहेज लानेवाली। युवक ने है। बाप का निशाना चूक गया है, लेकिन बेटे से कह रहा है, फिर पहला दरवाजा चना। ठीक हिसाब से चला। गणित से 'देख, बेटे देख! निशाना तो लग गया, चमत्कार देख। फिर चला। समझदारी से चला। परंतु इस बार उसके सामने एक कभी मौका मिले न मिले। पक्षी मरकर भी उड़ रहा है।' दर्पण लगा था, और उस पर लिखा था, 'आप बहुत अधिक अगर तुम्हारा निशाना चूक गया हो तो किसी को भूलकर भी गुणों के इच्छुक हैं। समय आ गया है कि आप एक बार अपना यह आभास मत देना कि लग गया है। अपनी हार को स्वीकार चेहरा भी देख लें।' कर लेना। इससे तुम्हें भी लाभ होगा, औरों को भी लाभ होगा। ऐसी ही जिंदगी है : चाह, चाह, चाह! दरवाजों की टटोल। अपनी पराजय को मान लेना, क्योंकि तुम्हारी पराजय ही तुम्हारी भूल ही गए, अपना चेहरा देखना ही भूल गए। जिसने अपना विजय-यात्रा का पहला कदम बनेगी। धोखा मत दिये चले चेहरा देखा, उसकी चाह गिरी। जो चाह में चला, वह धीरे-धीरे जाना। यह अकड़ व्यर्थ है। इस अकड़ अपने चेहरे को ही भूल गया। जिसने चाह का सहारा पकड़ महावीर इस अकड़ को तोड़ने के लिए ही ये सूत्र कह रहे हैं। लिया, एक चाह दूसरे में ले गई, हर दरवाजे दो दरवाजों पर ले हम वही-वही मांगे चले जाते हैं। हर बार हारते हैं, फिर वही गए, कोई मिलता नहीं। जिंदगी बस खाली है। यहां कभी कोई मांगते है। कभी-कभी तो हमारी मांगें ऐसी असंगत और किसी को नहीं मिला। हां, हर दरवाजे पर आशा लगी है कि और | मूढ़तापूर्ण होती हैं, लेकिन चूंकि हमारी मांगें हैं, हम न तो उनकी दरवाजे हैं। हर दरवाजे पर तख्ती मिली कि जरा और चेष्टा मूढ़ता देखते, न असंगति देखते हैं। करो। आशा बंधाई। आशा बंधी। फिर सपना देखा। लेकिन एक भिखारी ने लाटरी का टिकट खरीदा और भगवान से खाली ही रहे। अब समय आ गया, आप भी दर्पण के सामने प्रार्थना की कि हे प्रभु! मझे लाटरी का पहला इनाम दे दो, खड़े होकर देखो। अपने को पहचानो! जिससे मैं कार खरीद सकें। पैदल भीख मांगते-मांगते तो मेरी जिसने अपने को पहचाना वह संसार से फिर कुछ भी नहीं टांगें टूटी जाती हैं। मांगता। क्योंकि यहां कछ मांगने जैसा है ही नहीं। जिसने अपने कार में भी भीख ही मांगेगा। जैसे हमें कोई होश ही नहीं है। को पहचाना, उसे वह सब मिल जाता है जो मांगा था, नहीं मांगा तुम क्या मांग रहे हो? तुम जो मांगते हो, उसमें फिर तुम वही था। और जो मांगता ही चलता है, उसे कुछ भी नहीं मिलता है। मांग रहे हो, वही पुराना ढांचा जिसमें तुम जन्मों-जन्मों से जी रहे इस जिंदगी में तुम न केवल अपने को धोखा दे रहो हो; तुम्हारे, हो; और जिसमें सिवाय दुख, सिवाय पीड़ा और संताप के कुछ जिनको तुम अपने कहते हो, उनको भी धोखा दे रहे हो। घर में भी नहीं पाया है। एक बच्चा पैदा होता है। तुम तो धोखे में जीए ही, तुम यही एक छोटे शहर के चौधरी घूमने के खयाल से दिल्ली पहुंचे। धोखा उसको भी सिखाते हो। तुम तो दुख में जीए ही, तुम इसी तो एक मामूली से परिचित सज्जन के घर जा धमके और बातें दुख का शिक्षण उसे भी देते हो। ऐसे पागलपन हटता नहीं संसार करने लगे। बीमारियां दसरों को दिये चले जाते हैं। बहत देर तक, जब उसने वहां से जाने का नाम न लिया तो घर मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने लड़के पर रौब गांठने के लिए एक वाले सज्जन ने अपने नौकर को आवाज देकर बुलाया और कहा, दिन शिकार पर उसे साथ ले गया। वहां एक पक्षी पर निशाना 'भाई सामान बांधो और चलने की तैयारी करो।' साधते हुए लड़के से बोला, 'देख बेटे! मेरा निशाना कितना चौधरी और नौकर दोनों आश्चर्य में पड़ गए कि एकाएक कहां अचूक होता है।' यह कहकर उसने गोली दागी। हमेशा की जाने की तैयारी है। आखिर में चौधरी के पूछने पर कि इस वक्त 18 Jelin Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.340101
Book TitleJinsutra Lecture 01 Jin Shasan ki Adharshila Sankalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size32 MB
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