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________________ - - जिन-शासन की आधारशिला : संकल्प मालूम हुआ। यह भी कोई बात हुई! ओंठ, झूठे ओंठ, गंदे फिर से तो विचार करो! फिर से एक बार पुनर्विचार करो। ओंठ, लार और थूक से सने ओंठ, एक-दूसरे पर रगड़ रहे हैं तटस्थ भाव से, वैज्ञानिक दृष्टि से निरीक्षण करो। तुम बहुत और कहते हैं, मजा आ रहा है। उन्होंने कभी सदियों में चुंबन हैरान हो जाओगे, तुम्हारे सुख तुम्हारी मान्यताओं के सुख हैं। जो नहीं लिया। उन्हें पता ही न था। वे जो करते हैं, अगर तुम करोगे मान लिया, जो पकड़ लिया अचेतन में, वही सुख मालूम हो रहा तो बहुत हैरान होओगे। वे एक-दूसरे से नाक रगड़ते हैं। तुमने | है। जैसे ही जागोगे, वैसे ही तुम्हारे सुख विदा हो जाएंगे। तुम कभी रगड़ी नाक? रगड़ोगे तो पागल मालूम पड़ोगे, यह क्या | इस जीवन में दुख ही दुख पाओगे। कर रहे हो। कोई देख न ले! अपनी प्रेयसी से भी नाक न महावीर का सारा साधना-शास्त्र इस अनुभूति पर निर्भर है कि रगड़ोगे, क्योंकि वह भी सोचेगी कि तुम्हारा दिमाग खराब है, तुम्हें जीवन में परम दुख का अनुभव हो जाए। नाक रगड़ते हो! लेकिन वह कबीला सदियों से नाक रगड़ता रहा खुदा की देन है जिसको नसीब हो जाए है। वही उनका चुंबन है। ज्यादा हाइजिनिक! अगर हर एक दिल को गमे-जाविंदा नहीं मिलता चिकित्साशास्त्रियों से पूछो तो तुमसे बेहतर है। कम से कम नाक -यह जो परम दुख है, यह परमात्मा की अनुकंपा से मिलता ही रगड़ते हैं, कोई कीड़ों का और कीटाणुओं का आदान-प्रदान है। यह परम दुख, यह स्थायी दुख का बोध कि यहां सब दुख तो नहीं करते। अब चुंबन में तो कोई लाखों कीटाणुओं का है-'गमे-जाविंदा'-यह स्थायी गम... आदान-प्रदान हो जाता है। खुदा की देन है जिसको नसीब हो जाए मैंने सुना, एक आदमी अपने डाक्टर के पास गया। बड़ा हर एक दिल को गमे-जाविंदा नहीं मिलता घबड़ाया हुआ था। और उसने कहा कि यह चेचक की बीमारी महावीर को मिला। तुम्हें भी मिल सकता है। है तो, मिला तो बड़े जोर से फैल रही है। और मेरे लड़के को भी लग गई है। है। तुम देखते ही नहीं। तुम छिटकते हो। तुम देखने से बचना डाक्टर ने कहा, 'घबड़ाने की कोई बात नहीं है। फैली है। चाहते हो। महाकोप उसका है। सावधान रहो, संक्रामक है, पर घबड़ाने की लोग अपने जीवन के सत्य को देखने से बचना चाहते हैं, कोई बात नहीं। लड़का भी ठीक हो जाएगा।' उसने कहा, क्योंकि डरते हैं। और डर उनका स्वाभाविक है। डरते हैं कि 'ठीक हो जाएगा जब, बात अलग। लड़का मेरी नौकरानी को कहीं जीवन का सत्य देखा तो कहीं दुख ही दुख हाथ में न रह चूमता है, इससे मुझे घबड़ाहट हो गई है।' जाए। इसलिए पीठ किए रहते हैं। इसलिए आंख बचाए चले 'और तुम समझाये नहीं?' जाते हैं। इसलिए आंख बंद कर लेते हैं। मगर ऐसे तुम किसे उसने कहा कि अब समझाने का क्या है, मैं भी उसको चूम धोखा दे रहे हो? यह धोखा स्वयं को ही दिया गया धोखा है। लिया हूं। और इतना ही नहीं है...।' | एक कहानी मैंने सुनी है। एक शहर में एक नई दुकान खुली। फिर भी डाक्टर ने कहा, 'घबड़ाओ मत, ठीक हो जाएगा।' जहां कोई भी युवक जाकर अपने लिए एक योग्य पत्नी ढूंढ़ पर उसने कहा, 'इतना ही मामला नहीं है, मैंने पत्नी को भी सकता था। एक युवक उस दुकान पर पहुंचा। दुकान के अंदर चूम लिया है।' डाक्टर घबराया। उसने कहा कि 'रुको जी, उसे दो दरवाजे मिले। एक पर लिखा था, युवा पत्नी और दूसरे बकवास बंद करो! पत्नी को भी चूमा है? पहले मैं अपनी जांच पर लिखा था, अधिक उम्र वाली पत्नी! युवक ने पहले द्वार पर करवाऊं, क्योंकि तुम्हारी पत्नी को मैं भी चूम बैठा हूं!' धक्का लगाया और अंदर पहुंचा। फिर उसे दो दरवाजे मिले। अब तक शांत था। बीमारियां...लेन-देन हो रहा है! लोग पत्नी वगैरह कुछ भी न मिली। फिर दो दरवाजे! पहले पर कह रहे हैं, बड़ा सुख मिल रहा है। चुंबन जैसा सुख...! पर लिखा था, सुंदर; दूसरे पर लिखा था, साधारण। युवक ने पुनः कभी तुमने सोचा, कभी जागकर देखा? सुख क्या हो सकता | पहले द्वार में प्रवेश किया। न कोई सुंदर था न कोई साधारण, है? तुम भी चौंकोगे, क्योंकि तुमने कभी जागकर सोचा नहीं, वहां कोई था ही नहीं। सामरे फिर दो दरवाजे मिले, जिन पर ध्यान नहीं किया। तुमने जिन-जिन बातों में सुख माना है, उनमें लिखा था : अच्छा खाना बनानेवाली और खाना न बनानेवाली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrar corg
SR No.340101
Book TitleJinsutra Lecture 01 Jin Shasan ki Adharshila Sankalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size32 MB
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