________________ जिन सूत्र भागः19 के लिए और आखिर में पाते हैं, कांटे छिद गए। कि मैं सब कुछ देने को तैयार हूं; जो भी तुम्हारी फीस हो ले लो, तुमने भी कितनी बार सुख नहीं चाहा! पाया है? महावीर लेकिन चौबीस घंटे मुझे और जिला लो; जिससे मैं पैदा हुआ हूं कहते हैं, शायद थोड़ा-सा आभास मिला हो, प्रथम क्षण में, | उससे विदा तो ले लेने दो; मां को देखकर जाना चाहता हूं। शायद उल्लास के क्षण में कि मिल गया, तुमने अपने को धोखा | चिकित्सकों ने कहा, असंभव है। सिकंदर ने कहा, अपना आधा दे लिया हो; पर जल्दी ही झूठी पर्ते उघड़ जाती हैं। जल्दी ही पता | साम्राज्य दे दूंगा। उदास खड़े चिकित्सक! उसने कहा, पूरा ले चल जाता है। लो। काश! मुझे पहले पता होता कि पूरा साम्राज्य देकर भी एक मैंने सुना, मुल्ला नसरुद्दीन अपने दफ्तर में अपने मालिक से सांस नहीं मिलती, तो अपने जीवनभर की सांसें इस साम्राज्य के बोला कि शादी की है, हनीमून के लिए पहाड़ जाना चाहता | लिए क्यों खराब करता! हं—दो सप्ताह, तीन सप्ताह की छुट्टी! मालिक ने कहा, लेकिन इसी आपा-धापी में, इसी दौड़-धूप में सब गया। हनीमून कितने दिन चलेगा--एक सप्ताह, दो सप्ताह, तीन एक-एक सांस इतनी बहुमूल्य है, तुम्हें पता नहीं। इसलिए सप्ताह! उतनी छुट्टी ले लो। मुल्ला ने कहा, आप ही बता दें। महावीर कहते हैं, सोच लो, कहां लगा रहे हो अपनी श्वासों मालिक ने कहा, मैंने तुम्हारी पत्नी को अभी देखा ही नहीं, मैं | को! जो मिलेगा, वह पाने योग्य भी है? कहीं ऐसा न हो कि बताऊं कैसे कितनी देर चलेगा? गंवाने के बाद पता चले कि जो मूल्य दिया था, बहुत ज्यादा था, देर-अबेर हो सकती है, पर जल्दी ही घड़ी आ जाती है, जब और जो पाया वह कुछ भी न था। असली हीरों के धोखे में प्रेम राख हो जाता है। कोई थोड़ी देर तक अपने को भुलाए रखता | नकली हीरे ले बैठे! है, कोई थोड़ी जल्दी जाग जाता है। पर देर-अबेर सभी जाग कम से कम मौत से ऐसी मझे उम्मीद नहीं जाते हैं। इस संसार में जो भी प्रेम है, वह चाहे धन का हो, चाहे जिंदगी तूने तो धोखे पे दिया है धोखा! रूप का हो, चाहे पद का हो, वह देर-अबेर उखड़ ही जाता है। जिंदगी सिलसिला है : धोखे पर धोखा। असलियत कब तक छिपाए छिपेगी? 'बहुत खोजने पर भी जैसे केले के पेड़ में कोई सार दिखाई नहीं असलियत दुख है। सख तो ऊपर का रंग-रोगन है: जरा वर्षा देता, वैसे ही इंद्रिय-विषयों में भी कोई सख दिखाई नहीं देता।' पड़ी, बह गया रंग-रोगन। वह तो कागज के फूलों जैसा है; जरा लगता है-लगता है, मुर्छा के कारण। वर्षा पड़ी, बिखर गये, गल गए। / कभी किसी कुत्ते को देखा, सूखी हड्डी को चबाते! चबाता है 'ये काम-भोग क्षणभर सुख और चिरकाल तक दुख देनेवाले कितने रस से! तुम बैठे चकित भी होओगे कि सूखी हड्डी में हैं; बहुत दुख और थोड़ा सुख देनेवाले हैं; संसार-मुक्ति के चबाता क्या होगा! सूखी हड्डी में कोई रस तो है नहीं। सूखी हड्डी विरोधी...' संसार से मुक्त होने के विरोधी हैं, क्योंकि इन्हीं की में चबाता क्या होगा! लेकिन होता यह है कि जब सूखी हड्डी को आशा में तो लोग अटके रहते हैं, क्यू लगाए खड़े रहते हैं : अब कुत्ता चबाता है तो उसके ही जबड़ों, जीभ से, तालू से मिला, अब मिला! अब तक नहीं मिला, मिलता ही होगा! लहू-सूखी हड्डी की टकराहट से लहू बहने लगता है। उसी लोग राह ही देखते रहते हैं, बिना यह सोचे कि जिस क्यू में खड़े लहू को वह चूसता है। सोचता है, हड्डी से रस आ रहा है। हड्डी हैं उसमें किसी को भी कभी मिला? माना कि कुछ लोग क्यू में से कहीं रस आया है! अपना ही खून पीता है। अपने ही मुंह में बिलकुल आगे पहुंच गए हैं-कोई सिकंदर-मगर सिकंदर से घाव बनाता है। भ्रांति यह रखता है कि हड्डी से रस आता है। भी तो पूछो, मिला? / हड्डी से खून आ रहा है। जिन्होंने भी जागकर देखा है, थोड़ा सिकंदर मर रहा था तो उसने अपने चिकित्सकों से कहा कि मैं | अपना मुंह खोलकर देखा है, उन्होंने यही पाया है कि इंद्रिय-सुख अपनी मां को बिना देखे नहीं मरना चाहता हूं। लेकिन मां दूसरे सूखी हड्डियों जैसे हैं, उनसे कुछ आता नहीं। अगर कुछ आता गांव में थी। या तो वह आए या सिकंदर वहां तक पहुंचे। भी मालूम पड़ता है तो वह हमारी ही जीवन की रसधार है। और चौबीस घंटे की कम से कम जरूरत थी। और सिकंदर ने कहा | वह घाव हम व्यर्थ ही पैदा कर रहे हैं। जो खून हमारा ही है, उसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org