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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 वही तुम्हारा वास्तविक स्वरूप है; जो दिखाई नहीं पड़ता / और जब तक तुम उसे न जान लोगे, तब तक तुम अज्ञानी ही रहोगे / केवलज्ञान ही एकमात्र ज्ञान है / वस्तुतः, बाकी सब ज्ञान अज्ञान की टटोलें हैं / अज्ञानी आदमी टटोल रहा है; कुछ खोज रहा है; बना रहा है; सिद्धांत निर्मित कर रहा है। ज्ञानी का अर्थ है, जहां दोनों खो गये। द्वन्द्व खो गया और बीच की अदृश्य धारा प्रगट हो गयी / उस अदृश्य धारा का नाम केवल है। 'जब केवलज्ञानी जिन लोक-अलोक को, समस्त संसार को जान लेता है, तब मन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति का निरोध हो जाता है; शैलेशी (अचल-अकंप) अवस्था प्राप्त होती है।' उस तीसरे में थिर होते ही सारी अथिरता खो जाती है। फिर कोई कंपन नहीं है। फिर कोई चीज हिला नहीं सकती, क्योंकि कोई चीज आकर्षित नहीं कर सकती। फिर कोई चीज डिगा नहीं सकती, क्योंकि कोई चीज आंदोलित नहीं कर सकती। कोई आमंत्रण सार्थक न रहा, फिर कोई निमंत्रण बाहर नहीं बुला सकता। फिर कुछ भी नहीं है जगत में, जो मैनगेट हो। फिर आप अपने ही मैनगेट पर केंद्र थिर हो गये। अब आप अपने पर हैं—केंद्रित हो गये। आप खड़े हो गये अपनी जगह / आप उस जगह आ गये... / गाड़ी का चाक चलता है, लेकिन चाक के बीच में एक कील है, जो नहीं चलती। और बड़ा मजा यह है कि कील नहीं चलती, इसलिए चाक चल पाता है। कील भी चलने लगे, तो चाक गिर जाये। कील ठहरी रहती है। ___ जब तक हम मन के साथ जुड़े होते हैं, हम चाक के साथ जुड़े हैं और जब हम मन से पीछे हटते हैं, शांत और मौन और शून्य हो जाते हैं, तो हम कील पर ठहर गये। कील पर ठहरा हुआ व्यक्ति, सेंटर्ड, स्वयं में ठहरा हुआ व्यक्ति-महावीर कहते हैं-शैलेशी है। वह हिमालय बन गया चेतना का। अब उसमें कोई कंपन नहीं है। अब उसे कोई चीज दुख नहीं दे सकती। क्योंकि अब उसे किसी से सुख की कोई आकांक्षा नहीं है। ऐसा व्यक्ति आनंद को उपलब्ध हो जाता है; या चाहें तो कहें, ब्रह्म को उपलब्ध हो जाता है। महावीर कहते हैं, ऐसा व्यक्ति परमात्मा हो गया। परमात्मा का अर्थ है, ऐसी शैलेशी अवस्था को पा लेना। 'जब मन, वचन और शरीर के योगों का निरोधकर आत्मा शैलेशी अवस्था पाती है; पूर्ण रूप से स्पंदन-रहित हो जाती है, तब सब कर्मों का क्षयकर सर्वथा मल-रहित होकर सिद्धि को प्राप्त होती है।' ___ महावीर के लिए 'सिद्ध' अंतिम शब्द है। सिद्ध का अर्थ है : वन हू हैज रीच्ड / सिद्ध का अर्थ है, जो पहुंच गया। सिद्ध का अर्थ है, जिसे मंजिल मिल गयी / सिद्ध का अर्थ है, जिसकी यात्रा का अंत हुआ। सिद्ध का अर्थ है, जिसे अब कहीं जाने को न बचा / सिद्ध का अर्थ है, जिसे अब कुछ पाने को न बचा / सिद्ध का अर्थ है, जिसे अब कुछ जानने को न बचा / जो हो सकता था आखिरी इस जीवन में, वह घट गया / बीज फूल तक आ गया। इसके पार कोई यात्रा नहीं है। चेतना अपनी पूरी संभावनाओं को वास्तविक कर ली / जो-जो हो सकता था, वह हो गया। अब चेतना में कोई और बीज नहीं बचा, सब बीज प्रगट हो गये। __इस पूर्ण प्रगटावस्था को महावीर कहते हैं, परमात्मा की अवस्था। इसलिए महावीर के लिए परमात्मा नहीं है, जितनी चेतनाएं हैं-अनंत चेतनाएं हैं-उतने ही परमात्मा हैं-अनंत परमात्मा हैं। कुछ हैं, जो बीज में बंद हैं। कुछ हैं, जो तड़प रहे हैं और बीज को तोड़ रहे हैं। कुछ हैं, जो अंकुरित हो गये हैं और फूलों की तरफ बढ़ रहे हैं। और कुछ हैं, जो फूल हो गये और आखिरी अवस्था को पहुंच गये हैं। सभी परमात्मा हैं-कुछ बीज में, कुछ अंकुर में; कोई वृक्ष में, कोई फूल में। लेकिन उनके स्वभाव में कोई अंतर नहीं है; स्वरूप 564 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340054
Book TitleMahavir Vani Lecture 54 Sanyas Prarambha hai Siddhi Ant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
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